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________________ विषाणिन प्राचीन चरित्रकोश विष्णु होंगे। ये उन्होंके समान उत्तरपश्चिम भारत में रहनेवाले लोग होती जा रही थी। इस अवस्था में, जिस प्रकार वेदों में निर्दिष्ट रुद्र- शिव का परिवर्धित मानवी स्वरूप व उपासना पद्धति के द्वारा साकार हुआ, उसी प्रकार पेड़ों में निर्दिष्ट विष्णु देवता का परिवर्धित मानवी रूप वैष्णव उपासना सांप्रदायों के द्वारा आविष्कृत हुआ । " विष्णु देवता के इस नये परिवर्धित स्वरूप में, वैदिक साहित्य में निर्दिष्ट विष्णु को नाचत लोगों के द्वारा पूजित वासुदेव से, एवं ब्राह्मणादि ग्रंथों में निर्दिष्ट संचालन के नारायण देवता से सम्मिलित करने का यशस्वी प्रयत्न किया गया। आगे चल कर पौराणिक साहित्य में विष्णु के अनेकानेक अवतारों की कल्पना प्रसृत हुई, जिसके | अनुसार कृष्ण, राम दाशरथि आदि देवतातुल्य पुरुषों को विष्णु के ही अवतार मान कर व उपासना की कक्षा और भी संवर्धित की गयी। इस प्रकार ऋग्वेद में चतुर्थ | श्रेणि का देवता माना गया विष्णु पौराणिक काल में एक सर्वश्रेष्ठ देवता बन गया। ' ' । 'विपाणिन् का शब्दशः अर्थ 'सांगयुक्त है ये लोग संभवतः सींग के आकार का अथवा सींगों से अलंकृत शिरखाण चारण करते होंगे, जिस कारण इन्हें 'विपाणिन्' नाम प्राप्त हुआ था। विश्व-विराम राज की पत्नी, जिससे इसे सौ पुत्र एवं एक कन्या उत्पन्न हुई थी ( भा. ५. १५.१५ ) । इसे विष्वक्सेन की माता भी कहा गया (मा. ८.१३.२३ ) । २. ब्रह्मावर्णि मन्वंतर के श्रीविष्णु की माता । विकर - एक राक्षस, जो पूर्वकाल मे पृथ्वी का शासक था (म.श. २२०.५२ ) । विष्टराश्व-इश्वाकुवंशीय विश्वगश्व राजा का नामान्तर (विश्वगश्व देखिये ) । विष्णु के अनुसार इसके पुत्र का नाम चंद्राथ था। विष्टि-- धर्मसावर्णि मन्वंतर का एक ऋषि । २. विवस्वत् एवं छाया की एक कन्या, जो दिखने में अत्यंत भयंकर थी। इसी कारण नष्टृपुत्र विश्वरूप राक्षस से इसका विवाह हुआ। विष्णा एक ऋषिकुमार विश्वकय नामक अश्रियों के कृपापात्र ऋपि का पुत्र था। एक बार यह -खो गया था, जिस समय अधियों ने इसे इसके पिता के पास पहुँचा दिया था (ऋ. १.११६.२२१ ११७.७९ ८. ८६२: १०.६५.१२ ) 1 , वैदिक साहित्य में -- इस साहित्य में निर्दिष्ट इन्द्र, वरुण, अग्नि आदि देवताओं की तुलना में विष्णु का स्थान काफी कनिष्ठ प्रतीत होता है। ऋग्वेद के केवल पाँच हि सूक्त विष्णु को उद्देश्य कर रचे गये है। इन सूक्तों में इसे स्वतंत्र अस्तित्व अथवा पराक्रम प्रदान नहीं किये गये है, बल्कि सूर्यदेवता का ही एक प्रतिरूप इसे माना गया है, एवं इन्द्र के सहायक के नाते इसका वर्णन किया गया है। 6 , उरुक्रम स्वरूपवर्णन एक वृहदाकार शरीरवाले नवयुवक के रूप में ऋग्वेद में इसका स्वरूपवर्णन प्राप्त है । इसे 'उरुगाय' (विस्तृत पादप्रक्षेत्र करनेवाला ) एवं (चौड़े पग रखनेवाला) कहा गया है, एवं अपने इन गों से यह सारे विश्व को नापता है, ऐसा निर्देश भी यहाँ किया गया है। निवासस्थान -- अपने तीन पगों के द्वारा विष्णु ने पृथ्वी अथवा पार्थिव स्थानों को नाप लिया था, ऐसे निर्देश ऋग्वेद में प्राप्त हैं। इनमें से दो पग अथवा स्थान मनुष्य को दिखाई देते है, किन्तु इसका तीसरा अथवा उचतम पग मनुष्यों के द्रक्षा के बाहर है। यही नहीं, पक्षियों के उड़ान के भी बाहर है (ऋ. १.१५५.५) । विष्णु के इस उच्चतम स्थान (परमं पदम् ) अग्नि के उच्चतम स्थान के समान माना गया है। यहाँ अग्नि, विष्णु के रहस्यात्मक गायों (मेघ) की रक्षा करता है (ऋ. ५.३३ ) । | विष्णु - जगत्संचालक एक आद्य देवता, जिसकी पूजा का संहार का आय देवता माने गये रुद्र- शिव के साथ सारे भरतखंड में भक्तिभाव से की जाती है। वैदिक देवताविज्ञान में निर्दिष्ट देवताओं में से विष्णु एवं रुद्रशिव ये दो देवता ही ऐसे है कि, जिनके प्रति भारतीयों की श्रद्धा एवं भक्ति स्थलकालादि सारे बंधन लाँघ कर सदियों से अबाधित रही है । यही कारण है कि ये देवता भारतीय जनता के फेय देवत ही नहीं, कि भारतीय संस्कृति एक अविभाज्य भाग बन गये है। मानवाकृति दैवतोपासना का प्रतीक भारतीय देवता के इतिहास में, विष्णु एवं रुद्र- शिव मानवाकृतिदेवतोपासना के आय प्रतीक माने जाते है। इन देवताओं का मानवीकरण उत्तर वैदिककाल में हुआ, जब वेदों के द्वारा प्रगीत यज्ञयागात्मक उपासना पद्धति अधिकाधिक तंत्र एवं नित्याचरण के लिए कठिन इस स्थान पर विष्णु का निवास रहता है, एवं पुण्यात्मा लोग आनंद से रहते है। वहाँ मधु का एक रूप है, जहाँ ८७९
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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