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________________ प्राचीन चरित्रकोश इमजिल 1 इध्माजिह - ( स्वा. प्रिय) प्रियन्त तथा बर्हिष्मती के इस पुत्रों में से दूसरा यह उसी का स्वामी था। इसने अपने द्वीप के वर्ष सात भाग किये। ये भाग शिव, यवस, सुभद्र, शांत, क्षेम, अमृक एवं अभय इन सात पुत्रों को क्रमशः उन्हीं के नाम दे कर, दे दिये (भा. ५.२० ) । इध्मवाह सूक्त (ऋ. १.२६)। अगस्यपुत्र दृढस्यू का दूसरा नाम । इसे ऋतु ने दत्तक लिया था । यह अगस्त्यकुल का एक गोत्रकार था ( मत्स्य २०२ )। इन- अमिताभ देवताओं में से एक। इंदीवराक्ष वा इंदीवरविद्याधर- एक गंधर्व यह विद्याधराधिप ननाम का पुत्र था । यद्यपि ब्रहामित्र मुनि ने इसे आयुर्वेद विद्या नहीं दी, तथापि अन्य शिष्यों को पढ़ाते समय इसने वह छुपके से सीखी। इस सीखने में आठ माह ही लगे, इस कारण प्रसन्न हो कर यह हँस पड़ा। आवाज से इसे पहचान कर ब्रह्ममिश्र ने 'तू सात दिनों में राक्षस होगा, ऐसा शाप दिया। पर इसने बिनति करने पर 'तू रागांध हो कर, अपनी ही संतानों को खाने दौडेगा, तब उनके अस्त्रतेज से तुझे ताप होगा । एवं पुनः यह शरीर प्राप्त कर तू स्वस्थानापन्न भी होगा ।' ऐसा इसे उश्शाप मिला । ; इंद्र ३. बृहद्रथ राजा की पत्नी । पूर्वजन्म में इसका कंकण समुद्र - सरस्वती के संगम में गिरने के कारण, इस जन्म में वह ऐश्वर्य उपभोग कर रही थी । प्रतिवर्ष यह प्रभासक्षेत्र में सुवर्णकंकण डालती थी (स्कंद. ७.१.३७ ) । ४. कल्याण वैश्य की पत्नी (गणेश. १. २२) । ५. चंद्रांगद राजा की स्त्री (चंद्रांगद देखिये) । इंदुल -- आह्लाद एवं स्वर्णवती का पुत्र । सात माह के आयु में ही इसे इंद्र स्वर्ग ले गया। इंद्रपत्नी शचि ने यहाँ इसका संगोपन किया इसलिये यह अत्यंत बलवान हुआ । वलकिकन्या चित्रलेखा से इसका विवाह हुआ (भषि प्रति २.२२-२३) । इंदु-- (स. इ. ) विश्वगश्व राजा का पुत्र । इसके तीन नाम क्रमशः आंध्र, चंद्र तथा आर्द्र थे । इसका पुत्र युवनाश्व था । इंद्र -- इसने मेघों को फोड़ा । इसके लिये त्वष्टा ने वज्र तैयार किया । इसने सूर्य द्यू तथा उपस् को उत्पन्न किया । वृत्रासुर के हाथ तोड कर उसका वध किया तथा जल बहाया। नदियां प्रवाहित की । गायें तथा सोम को जीता। भक्तों को पशु दिवे (ऋ. १.३३ ) । दशय का संरक्षण किया (ऋ. १.३३.१४) वियों की गायों का रक्षण किया (ऋ. १.३३.१५) । सामगान से इसे स्फूर्ति मिलती है । यह दासों का शत्रु है । इसके रथ में घोडे लगे रहते हैं जिसके चलने से मेवों की गडगडाहट होती है। पृथ्वी सपाट तथा स्थिर होती है। त्रित से इसकी मित्रता थी। अंगिरस तथा इंद्र । यह अपनी कन्या को खाने दौडा, तब कन्या के पास से सीखी अस्त्रविद्या के सहारे, स्वरोचि ने उसे पराभूत किया। इससे उसका उद्वार हुआ तथा यह फिर से पूर्ववत् हो गया। उसने अपनी कन्या मनोरमा तथा ब्रह्ममित्र के पास से सीखी विद्या स्वरोचि को दी (मार्के ६० ) । स्वरोचि देखिये । । | साथ साथ रहते हैं (ऋ. १. ११) । इसने जन्मते ही देवताओं का रक्षण किया। हिलनेवाली पृथ्वी स्थिर की। अंतरिक्ष की व्यवस्था की तथा गृ को आधार दिया । आहि को मार कर सप्तसिंधुओं को मुक्त किया । वल से गायें छुडाई | बिजली उत्पन्न की। घर को चालीस वर्षों के इंट निकाला (ऋ. २.१२ ) इसे, सोम बहुत अच्छा लगता है (ऋ. २०१४ ) । अंगिरा ने स्कूर्ति दी इसलिये इंद्र, वल को मार सका (ऋ. २. १५.८ ) । इसने सूर्य का २. उग मनोमात्र है यह बताने के लिये षटचक्र फेंक कर एतश को बचाया (. ४.१८ १४ ) । प्रांत में रहनेवाले काश्यप गोत्रीय इंदु की कथा, भानु ने सोम पीने के लिये इंद्र को निमंत्रित किया जाता था ब्रह्मदेव को बतायी ( यो. वा. २. ८५-८७ ) | ( अपाला तथा तुर्वश देखिये) । इंद्र की उपासना न उस में इसने केवल मनःसंकल्प से, ब्रह्मदेव का श्रेष्ठ पढ़ करनेवालों को, अनिंद्र कह कर निंदा करते थे (ऋ. ७. प्राप्त कर, स्थूल शरीर नष्ट होने पर भी उत्पत्ति का १८.१६) | नेम नामक ऋषि ने इंद्र प्रत्यक्ष न दिखने के कारण, इंद्र नहीं है ऐसा प्रतिपादित किया तब इंद्र स्वय इंदुमती- - सिंहलद्वीप के चंद्रसेन राजा की कन्या को प्रमाणित करने, प्रत्यक्ष प्रकट हुआ (ऋ. ८.१०० ) । ( मंदोदरी देखिये) । शत्रु -- वेदों में इसके अनेक शत्रु हैं। उनका मुख्य क्रम चालू रखा था। -- २. सोमवंशीय आयु राजा की पत्नी । इसका पुत्र नहुष दुर्गुण है पानी को रोकना । वे हैं अनर्शनि, अर्णव, अर्बुद, (पद्म. भू. १०४ ) । अहि, अहिए, और्णयाम, अन इली, करंज, कुव ६८
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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