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प्राचीन चरित्रकोश
क्रिवि. चुमुरि, भीक, धुनि, नमुचि, नार्मर, पर्णय, पिनु माता कद्रू ने इंद्र की स्तुति कर, ताप शमनार्थ वर्षा करायी वर्चिन , वल, शंबर आदि ।
(म. आ. २१.)। भीमद्वादशी व्रत करने के कारण इसे शस्त्रसंभार--इसके शस्त्र वज्र, अद्रि, दधीचि की इंद्रत्व मिला (पद्म. स. २३)। यह दक्ष के यज्ञ में गया अस्थि (ऋ. १. ८४, १३), धनुषबाण, भाला, फेन, था एवं इसने वीरभद्र से पूछा था कि वह कौन है (ब्रह्म. बर्फ आदि हैं।
१२९)। मंदार पर्वत के पंख इसने नष्ट किये थे (स्कंद, यह जगदुत्पादक तथा सृष्टिक्रम निश्चल करनेवाला है।। १.१९.९)। विश्वधर वणिक् के पुत्र के मरने पर वह इसकी पत्नी इंद्राणी (ऋ. १०. ८६)। सीता नामक
शोक करने लगा। इसे देख कर यम ऊब कर अपना कार्य स्त्री का भी उल्लेख है (पा. ग. सू. १७.९; शची
छोड़, तप करने लगा। इस कारण पृथ्वी पर पापी लोक देखिये)। ये अनेकों का पुत्र हुआ था (शृंगवृष
अत्यधिक पापकर्म करने लगे। उन्हें मृत्यु नहीं आती देखिये )।
थी। इससे पृथ्वी त्रस्त हो कर इंद्र के पास गयी । इंद्र ने पदमाहान्थ्य----प्रत्येक मन्वंतर में इंद्र रहता है। वह
यम की तपस्या भंग करने, गणिका नामक अप्सरा भेजी,
पर उससे कोई लाभ न हुआ। तब पिता ने उसे समझाया भूः, भुवः, स्वः इन तीन लोकों का अधिपति है । सौ यज्ञ कर इंद्रपद प्राप्त होता है (नहुष तथा ययाति देखिये)।
(ब्रह्मा. ८६)। एक बार कश्यप पुत्रकामेष्टि यज्ञ कर रहा यह वज्रपाणि, सहस्त्राक्ष, पुरंदर तथा मघवान होता है।
था । देवतादि उसकी सहायता कर रहे थे । वालखिल्य प्रजासंरक्षण उसका मुख्य कार्य होता है। प्रत्येक मन्वंतर
तथा इन्द्र भी मदद कर रहे थे। इंद्र जल्दी जल्दी जा रहा में इंद्र भिन्न भिन्न हो कर भी उनके गुण तथा कार्य एक से
था सारे वालखिल्य मिल कर एक समिध ले जा रहे थे । रहते हैं । सप्तर्पि इनके सलाहगार रहते हैं एवं गंधर्व
मार्ग में एक गाय के खुर जितने गड्ढे में संचित पानी में अप्सरायें इनका ऐश्वर्य होता है (वायु. १००.११३
गिर कर, ये डुबने उतराने लगे। यह देख कर इंद्र ११४)। जब ये जगत की व्यवस्था नहीं कर पाते तब
तिरस्कारपूर्वक हेसा । यह देख कर वालखिल्य क्रोधित हो, सारे अवतार इनकी मदद को आते हैं (मनु देखिये)।
दूसरे इंद्र को उत्पन्न करने के हेतु तप करने लगे। तब सौ यज्ञ करने पर इंद्रपद मिलता है, इसलिये जब किसी |
इंद्र कश्यप की शरण में आया । उसके माध्यम से वाल- के यज्ञ पूरे होने लगते है, तब यह अश्वमेध का घोडा
खिल्यों का क्रोध शांत कराया (मध्यम तथा वालखिल्य
देखिये; म. आ. २६)। चुरा कर, विघ्न उपस्थित करता है (सगर, पृथु, रघु)। . . उसी तरह कोई कठिन तपस्या करता है, तो डर के कारण गरुड से संबंध--गरुड ने अपनी माँ को दास्यबंधनों
यह अप्सरायें भेज कर, तपभंग करता है। हिरण्यकशिपु, से मुक्त करने के लिये माता के दास्य के बदले नागो को . बलि, एवं प्रह्लाद ये तीनों असुरों में से भी इंद्र हुए थे | अमृत ला देने का वचन दिया, तथा वह अमृत लाने के (मत्स्य. ४७.५५-८९; तारक देखिये)। इस से इसका लिये स्वर्ग लोक गया । गरुड अमृत लिये जा रहा है यह राजकीय स्वरूप अच्छी तरह से व्यक्त होता है । विशेषतः | देख कर, इंद्र ने वज्र फेंका पर उसका कोई असर न हुआ। त्रिशंकु, वसिष्ठ, विश्वामित्र, वामदेव, रोहित, गौतम, | गरुड की शक्ति देख कर इंद्र ने उससे मित्रता करने की गृत्समद, रजि, भरद्वाज, उदारधी, सोम, इंदुल तथा । सोची । तब गरुड ने उसे बताया, कि यदि अमृत वापस अर्जुन इत्यादि प्राचीन तथा अर्वाचीन व्यक्तियों के | चाहते हो, तो उसे बडी युक्ति से चुराना । इंद्र ने युक्ति चरित्र से इन्द्र की पूर्ण कल्पना कर सकते हैं। से काम लिया तथा अमृत फिर वापस ले गया और गरुड
पौराणिक कल्पनाए-- इंद्रविषयक पौराणिक कल्पना | को वर दिया कि सर्प तेरे भक्ष्य होंगे (म. आ. ३०)। निम्नलिखित विवरण से व्यक्त हो जायेगी । अदिति पुत्र | महाशनिवध-हिरण्यपुत्र महाशनि इंद्र को जीत कर (कश्यप देखिये.)। इस का शक नामांतर है (भा.६.६)। इंद्राणी सह उसे बांध कर लाया। महाशनि वरुण का • श्रावण माह का सूर्य (भा. १२.११.१७)। देवताओं का | दामाद था, इसलिये देवताओं ने वरुण से कह कर इंद्र
राजा (भा. १.१०.३)। यही आज का पुरंदर इंद्र है। | को छुडाया। इंद्राणी के कहने पर इंद्र ने शिव की स्तुति वर्षा का देव । एक बार गरूड की पीठ पर बैठ कर नाग | की। शिव ने विष्णु की स्तुति करने को कहा । इंद्र ने विष्णु जा रहे थे । गरूड उड कर इतना ऊंचा गया कि, सारे | की स्तुति की । फलतः विष्णु तथा शिव के अंश से एक नाग सूर्यताप से मूञ्छित हो कर पृथ्वी पर आ गिरे। । पुरुष गंगा के जल से उत्पन्न हुआ, जिसने महाशनि का