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प्राचीन चरित्रकोश
चुका है। इसी ऐतिहासक सामग्री को आधुनिक | हम आशा करते हैं कि, प्राचीन भारतीय इतिहास एवं इतिहाससंशोधन की दृष्टि से जाँच कर, एवं इनसे | संस्कृति के प्रत्येक विद्यार्थी, जिज्ञासु, संशोधक एवं सर्वसंबंधित आज तक हुए महत्त्वपूर्ण शोध का यथा- साधारण पाठक के लिए यह ग्रन्थ अत्यधिक उपादेय योग्य उपयोग कर 'प्राचीन चरित्रकोश' आज पाठकों | सिद्ध होगा। के समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है। प्राचीन भारतीय आभारप्रदर्शन--इस ग्रन्थ का मराठी संस्करण आज व्यक्तिविषयक सामग्री को इतने व्यापक, परिपूर्ण एवं | से बत्तीस वर्ष पूर्व प्रकाशित हुआ था, और मराठीभाषियों प्रामाणिक संदी सहित संकलित करनेवाला भारतीय | के बीच अत्यंत लोकप्रिय हुआ था। मराठी में प्रकाशित भाषाओं में यह सर्व प्रथम कोश कहा जा सकता है। प्राचीन चरित्रकोश' के इस परिवर्धित और परिमार्जित
प्राचीन चरित्रकोश-इस ग्रन्थ में वेद, स्मृति, पुराण हिन्दी संस्करण में मूल मराठी ग्रन्थ से अधिक ५५० पृष्ठों आदि प्राचीन भारतीय साहित्य में निर्दिष्ट व्यक्तियों के की जानकारी दी गयी है। जीवनचरित्र, एवं तविषयक संदर्भसहित सामग्री अकारादि | भारत सरकार एवं महाराष्ट सरकार के शिक्षा मंत्रालयों क्रम से एवं सप्रमाण प्रस्तुत की गयी हैं। इस ग्रन्थ | के आर्थिक सहयोग से ही इतने परिवर्धित रूप में यह ग्रंथ में संग्रहित चरित्रों की संख्या लगभग बारह हजार से भी | आज प्रकाशित हो सका है। इसलिए मैं उनका एवं विशेष अधिक है, एवं उनमें राजा, ऋषि, रानी, ऋषि-पत्नी, देवता, कर केंद्रीय सरकार के हिन्दी-निदेशालय का आभारी हूँ। पितर, नाग, सर्प, यक्ष, राक्षस, गंधर्व, किन्नर, भूत, अप्सरा, भारत सरकार के उपशिक्षामंत्री माननीय श्री.भक्तदर्शन राजनीतिज्ञ, सूत्रकार, धर्मशास्त्रकार, गोत्रकार, मंत्रकार
| ने 'पुरस्कार' लिख कर इस ग्रंथ का गौरव बढाया है,
का आदि विभिन्न प्रकार के चरित्रों का समावेश है । व्यक्ति
इस लिए मैं उनका अत्यंत आभारी हूँ। चरित्रों के अतिरिक्त लोक-समूह, जाति-समूह, गणराज्य
इस ग्रंथ के सृजन के हर स्तरों पर भारतीय चरित्रको एवं देशों की जानकारी भी व्यक्तिचरित्रों का ही अंगभूत
मण्डल के कार्यकारिणी के अध्यक्ष श्री. पाण्डुरङ्ग जयराव भाग मान कर दी गयी है।
चिन्मलगुन्द, आइ. सी. एस् , एवं मण्डल के हिन्दी ___ कालमर्यादा-ऐतिहासिक दृष्टि से इस ग्रंथ की काल
विभाग के प्रमुख परामर्शकार डॉ. भगीरथ मिश्र एम. ए., मर्यादा यद्यपि चंद्रगुप्त मौय तक ही सीमित है, फिर भी पी. एच. डी. से महत्त्वपूर्ण सहायता मिली है, जिनकी वेद, वेदांग एवं पुराणआदि ग्रंथ, जिनके आधार पर इस |
कृतज्ञता ज्ञापन करना मैं अपना कर्तव्य समझता हूँ। ग्रन्थ की रचना की गयी है, उनकी कालमर्यादा को ही |
___मण्डल के अन्य सदस्य श्री. के. पां. जोशी, वकील, यहाँ स्वीकार किया गया है। उदाहरणस्वरूप-मत्स्य, डॉ. ग. रं. धडफले एवं श्री. वसंत अ. गाडगील का · वायु आदि पुराणों में चंद्रगुप्त मौर्य के उत्तरालीन 'भविष्य- | इस ग्रंथ के निर्माण में महत्त्वपर्ण सहयोग रहा है। वंशों की दी गयी जानकारी को इस कोश में समाविष्ट
। इस ग्रंथ के निर्माण में प्रा. गोवर्धन परीख, रेक्टर, किया गया है।
बम्बई विश्वविद्यालय, तर्कतीर्थ श्री. लक्ष्मणशास्त्री जोशी, बौद्ध एवं जैन साहित्य-यद्यपि वेद, पुराण, महा- अध्यक्ष, महाराष्ट्रराज्य साहित्य संस्कृति मंडळ, श्री. चिं. भारत आदि को आधार मान कर इस ग्रन्थ की | रा. बोंद्रे, डॉ. वा. वि. मिराशी, श्री. बा. ना. तडवलरचना की गयी हैं, फिर भी इन ग्रन्थों में अनुपलब्ध कर, एवं डॉ. ना. कु. भिडे, नयी दिल्ली के रचनात्मक गौतम बुद्ध, वर्धमान महावीर, सिकंदर आदि व्यक्तियों, | सुझाव उपयोगी रहे । एवं उनके समकालीन अन्य लोगों की जानकारी समका- इस ग्रंथ के अनुवादकार्य में प्रा. सुधारक रामचंद्र गोललीनत्व के कारण इस ग्रन्थ के परिशिष्ट में सम्मिलित की गयी वलकर, एम. ए., राजकुमार कॉलेज, रायपुर का सहयोग हैं। पौराणिक राजाओं एवं ऋषियों की जानकारी उनके उल्लेखनीय है। प्रा. चारुचन्द्र द्विवेदी, एम.ए. एवं श्री. वंशों के जानकारी के बिना अर्थहीन प्रतीत होती हैं। बलिराम सिंह के योगदान भी उपयोगी रहे।
| इस ग्रन्थ के पुनर्लेखन, संपादन एवं मुद्रण के कार्य में में दी गयी है। व्यक्तियों एवं ग्रन्थों के कालनिर्णय से | चरित्रकोश मण्डल के श्री. विनायक चित्राव, श्री. अरविंद संबंधित एक स्वतंत्र परिशिष्ट भी अंत में जोड़ दिया | जामखेडकर एम. ए., श्रीमती विद्या चित्राव, बी. ए., गया है।
| एवं कुमारी कुंदा जामखेडकर के अथक परिश्रम के फल