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प्रस्तावना
स्वरूप ही यह ग्रन्थ इस रूप में आ पाया है। मैं इन पाण्डुलिपि भी नष्ट हो गयी। महाराष्ट्र सरकार एवं अनेकानेक सभी सहयोगियों का हृदय से आभारी हूँ।
हितैषियों के सहयोग से मण्डल के पुनरुत्थान का प्रयत्न जो ___ ग्रन्थ की रूपसज्जा के लिए साधना प्रेस पूना के | पिछले तीन वर्षों में हुआ है, इस ग्रंथ का प्रकाशन उसकी श्री. ह. म. गद्रे, श्री. वि. नी. पटवर्धन एवं श्री. दत्तोबा एक कड़ी मात्र है। निकट भविष्य में ही 'प्राचीन स्थलकोश' टिबे मेरे धन्यवाद के पात्र हैं।
भी प्रकाशित होगा, ऐसी में आशा रखता हूँ। इस __अंत में, सन १९६१ ई. के मूठा नदी के पानशेत पुनरुत्थानकार्य में सहायता पहुँचानेवाले हर व्यक्ति का बाढ़ का उल्लेख कर देना अनावश्यक नहीं होगा, जिसमें में सदैव ऋणी रहूँगा। भारतीय चरित्रकोश मण्डल को डेढ़ लाख से भी अधिक मूल्य भारतीय चरित्रकोश मण्डल) की क्षति उठानी पड़ी। इस बाढ़ में मण्डल की दुर्लभ पूना ४. सिद्धेश्वरशास्त्री चित्राव ग्रंथ सामग्रियों के अतिरिक्त 'प्राचीन स्थलकोश' की ५-११-१९६४
कोश कैसे देखें ?
(१) इस कोश में वेद, उपवेद, पुराण, उपनिषद् (४) हर एक व्यक्ति की जानकारी देते समय आदि प्राचीन साहित्य में निर्दिष्ट व्यक्तियों के जीवन- | उसके निवासस्थान, कालनिर्णय एवं कर्तृत्त्व की समीक्षा पर चरित्र वर्णमाला के क्रम से दिये गये हैं। इन साहित्यों विशेष जोर दिया गया है। इनके कालनिर्णय की में निर्दिष्ट प्राचीन भारतीय इतिहास चंद्रगुप्त मौर्य के जानकारी के लिए कालनिर्णयकोश का स्वतंत्र परिशिष्ट राज्यकाल तक निर्दिष्ट है । इसी कारण, प्रागैतिहासिक (परिशिष्ट ७) दिया गया है, जिसमें व्यक्ति एवं कालकाल से चंद्रगुप्त मौर्य तक के व्यक्तियों के जीवनचरित्र निर्णय के ग्रंथों के संबंध में उपलब्ध जानकारी संक्षिप्त इस कोश में दिये गये हैं। फिर भी इस कोश की काल- रूप में दी गयी हैं (पृष्ठ ११६९-१९८०)। मर्यादा अधिकतर प्राचीन भारतीय साहित्य से संबद्ध है। व्यक्तियों के कर्तृत्व का यथायोग्य मूल्यमापन करने के इसी कारण उस साहित्य में निर्दिष्ट चंद्रगुप्त मौर्य के
लिए उनका ग्रंथकर्तृत्व, तत्त्वज्ञान, संवाद, पूर्वाचार्य, (कालान कई व्याक्तया क जावनचरित्र भा पाराणिक शिष्यपरंपरा युद्धकर्तृत्व आदि की सविस्तृत जानकारी साहित्य में निर्दिष्ट होने के कारण समाविष्ट किये गये है। दी गयी हैं। जहाँ आवश्यक समझा गया वहाँ रामायण,
इसी काल में समाविष्ट होनेवाले गौतम बुद्ध, वर्धमान महाभारत एवं पौराणिक साहित्य आदि मूल ग्रंथों के महावीर एवं सिकंदर के एवं उनके समकालीन व्यक्तियों
उद्धरण भी अर्थ के सहित दिये गये है। विशेष स्पष्टीकरण के जीवनचरित्र क्रमशः परिशिष्ट १, २, ३ में दिये | के लिए २४ तालिम
के लिए २४ तालिकाएँ भी ग्रंथ में समाविष्ट की गयी हैं, गये हैं (पृष्ठ १११७-११३८)।
जिनकी अनुक्रमणिका ग्रंथ के आरंभ में ही प्राप्य है। (२) इस कोश में व्यक्तियों के जीवनचरित्र के साथ (५) जैसे पहले ही कहा जा चुका है, इस ग्रंथ में प्राचीन साहित्य में निर्दिष्ट जातिसमूह, मानवसमूह, देवता- दिये गये व्यक्तिचरित्र, वर्णमाला के क्रम से दिये गये समूह, यक्ष, राक्षस, वानर आदि के चरित्र भी सम्मिलित | हैं । कोश के प्रायः सभी आधारभूत ग्रंथ संस्कृत भाषा के किये गये हैं।
होने के कारण, इस ग्रंथ का सारा वर्णानुक्रम संस्कृता(३) उपर्युक्त सभी समूहों की जानकारी उनके परि
नुसार रखा गया है। लिपि एवं अंकक्रम देवनागरी पद्धति वार एवं वंशों की जानकारी के बिना अपूर्ण सी प्रतीत
से दिये गये हैं। होती है । इसी कारण, इन सारे समूहों के वंशों की वर्णमाला के हर एक वर्गों के अक्षरों के पूर्व के सविस्तृत जानकारी परिशिष्ट ४,५,६ में दी गयी है (पृष्ठ | अनुस्वार उसी वर्ग के अनुनासिक ही होंग, यह मान कर ११३९-११६९)।
व्यक्ति चरित्रों का क्रम रखा गया है। किन्तु छपाई की