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प्रस्तावना
इतिहासोत्तमादस्मात् जायन्ते कविबुद्धयः । नवीनराष्ट्रनिर्माणं संस्कृतेः प्रसरस्तथा ॥
( इतिहास के अध्ययन से
मनुष्य बुद्धि प्रगल्भ हो जाती है। संस्कृति के प्रचार एवं नवीन राष्ट्र के निर्माण की प्रेरणा भी इतिहास के अध्ययन से प्राप्त होती है ) ।
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भूमिका मानवीय बुद्धि को प्रगस्म, क्रियाशील एवं उदयशील बनाने के लिए इतिहासाच्ययन जैसा अन्य कोई भी साधन नहीं है । यह तत्त्व महाभारत - रामायणकाल से ही समस्त भारतीय वाङ्मयों में दुहराया गया है। इतिहास का आह्यावरण यद्यपि राजवंशों के नामा वलियों अथवा रक्त की नदी बहा देनेवाली दुर्भाग्यपूर्ण लड़ाइयों के वृत्तान्त से बना है, फिर भी उसकी आत्मा संस्कृति की स्थापना एवं प्रसार से संबंध रखती है। इसी अदा से भारत के प्राचीन इतिहास के अध्ययन एवं संशोधन का कार्य स्वातंत्र्योत्तर काल में प्रारंभ हुआ है । उसी परंपरा में 'प्राचीन चरित्रकोश' को एक इतिहास ग्रंथ के रूप में हिन्दी पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत करने में आज मुझे अपार हर्ष हो रहा है ।
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महाभारत में ज्ञान को धर्मचक्षु से बढ़ कर अधिक श्रेष्ठ' कहा गया है ( नास्ति विद्यासमो चक्षुः म. शां. ३१६.६)। प्राचीन भारतीय इतिहास के संबंध में ऐसे ही 'चक्षु' का कार्य करने में इतिहास ग्रंथों से सहायता मिलती है । यदि इस ग्रंथ से इस कार्य की थोड़ी सी मी पूर्ति संभव हो सकी, तो मैं अपने प्रयास को कृतकृत्य
समझँगा ।
इतिहास की सामग्री वैदिक, पौराणिक, बौद्ध एवं जैन साहित्य मात्र में ही उपलब्ध है।
इस लिए हमारे परंपरागत वेद, पुराण एवं बौद्ध-जैन आदि के धार्मिक ग्रंथ केवल धार्मिक साहित्य ही नहीं हैं, चल्कि उनमें इतिहास की भी प्रचुर उपयोगी सामप्रियाँ संचित हैं। यह तथ्य अब सभी विद्वानों द्वारा स्वीकार कर लिया गया हैं। उपरोक्त साहित्य में राजनैतिक, भौगोलिक एवं ऐतिहासिक ही नहीं, वरन् सांस्कृतिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक सभी प्रकार की शोध सामग्रियाँ उपलब्ध है। • मैक्स मूलर, रॉथ, ओल्डेनबर्ग आदि ने वैदिक साहित्य के, पार्गिटर, हाज़रा आदि ने पौराणिक साहित्य के, डॉ. रामकृष्ण भाण्डारकर, डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल आदि ने पाणिनीय व्याकरण के, एवं डॉ. राईस डेविडज् ने बौद्ध साहित्य के संबंध में युगप्रवर्तक संशोधन पिछली शताब्दी में किये हैं, एवं इन्हीं संशोधक विद्वानों के अथक परिश्रम के कारण इन ग्रन्थों का अद्वितीय महत्त्व भारतीय इतिहास की सामग्री के लिए सिद्ध हो चुका है।
आधुनिक दृष्टिकोण की आवश्यकता - यद्यपि प्राचीन्' भारतीय साहित्य में संचित सामग्री अत्यंत महत्वपूर्ण है, फिर भी उनका विश्लेषण एवं समीक्षा आधुनिक इतिहास संशोधन की तर्कपूर्ण दृष्टि से यदि नहीं किया जाय तो उनका वर्तमान युग में कोई महत्व नहीं रह जाता है। इस महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त का प्रतिपादन भी उपर्युक्त विद्वानों के द्वारा ही किया गया है। इस प्रकार इन ग्रन्थों के अध्ययन का एक नया युग उपर्युक्त संशोधकों के संशोधन के कारण प्रारंभ हुआ है।
प्राचीन भारतीय इतिहास - भारतीय इतिहास के पृष्ठ अत्यंत उज्वल हैं। जब इजिप्त, रोम आदि पश्चिमी सभ्यताओं का जन्म भी नहीं हुआ था, उस समय यहाँ की सभ्यता एवं संस्कृति चर्मोत्कर्ष पर थी । ईसा से हजारों वर्ष पूर्व का भारतीय इतिहास वैदिक, पौराणिक, बौद्ध एवं जैन साहित्य में उपलब्ध है भारत का परंपरागत इतिहास चंद्रगुप्त मौर्य से प्रारंभ माना जाता है, तथा भारत का पहला साम्राट यही माना जाता है। उसके उत्तरकालीन अनेकानेक शिलालेख, ताम्रपत्र तथा अन्य साहित्य विविध रूपों में उपलब्ध हैं, जो इतिहास लेखन को सुलभ बनाते हैं । किंतु चंद्रगुप्त मौर्य के पूर्वकालीन | के अध्येताओं एवं संशोधकों के बीच प्रस्थापित हो
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किसी भी देश का इतिहास प्रायः व्यक्ति परित्रात्मक रहता है। इसी कारण इतिहास में निर्दिष्ट व्यक्तियों का सर्वांगीण अध्ययन करना इतिहास के अध्ययन का एक सब से अधिक लाभप्रद मार्ग है, यह तथ्य इतिहास
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