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________________ विश्वामित्र प्राचीन चरित्रकोश विश्वेदेव ७. वैवस्वत मन्वन्तर का एक ऋषि, जो युधिष्ठिर के ३. एक गंधर्व, जो श्रावण माह के सूर्य के साथ भ्रमण राजसूय यज्ञ में उपस्थित था ( भा. ८.१३.५; १०.७४. | करता है (भा. १२.११.३०)। ८)। यह स्यमंतपंचक क्षेत्र में श्रीकृष्ण से मिलने आया | ४. एक ऋषि, जो जमदग्नि ऋषि के पाँच पुत्रों में से था, एवं कृष्ण के द्वारा किये गये यज्ञ का यह पुरोहित था | एक था। जमदग्नि के शाप के कारण, अपने अन्य (भा. १०.८४.३; ११.१.१२)। भाइयों के साथ यह पाषाण बना था। किंतु आगे चल ८. एक ऋषि, जो फाल्गुन माह के सूर्य के साथ घूमता कर, इसके भाई परशुराम ने इसे शापमुक्त कराया (म. है (विष्णु. २.१०.१८)। व. ११६.१७; परशुराम देखिये)। ९. ब्रह्मराक्षसों का एक समूह, जो 'रात्रिराक्षसों' के । ५. एक राक्षस, जो मधु राक्षस की पत्नी कुंभीनसी चार समूहों में से एक माना जाता है (ब्रह्मांड.३.८.५९- | का पिता था। इसकी पत्नी का नाम अनला था, जो ६१)। इन्हें 'कोशिक' नामान्तर भी प्राप्त था। माल्यवत् राक्षस की कन्या थी (वा. रा. उ. ६१)। विश्वायु--(सो. पुरुरवस्.) एक राजा, जो विष्णु एवं | ६. एक गंधर्व, जो पुरूरवस् एवं उर्वशी के पुत्रों में से वायु के अनुसार पुरूरवम् राजा के छः पुत्रों में से एक था | एक था (ब्रह्मांड. ३.६६.२३)। इसने ही उर्वशी को (वायु. ९१.५२)1 . पृथ्वीलोक से स्वर्गलोक वापस लाया था। २. वशवर्तिन् देवों में से एक (ब्रह्मांड. २.३६.२९)। ७.ए ७. एक वसु, जो धर्म एवं सुदेवी के पुत्रो में से एक था ३. एक सनातन विश्वेदेव (म. अनु. ९१.३४)। (मत्स्य. १७१.४६)। विश्वेदेव-एक यज्ञीय देवतासमूह, जिसे ऋग्वेद के विश्वाव उ-एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०. चालीस से भी अधिक सूक्त समर्पित किये गये हैं। १३९)। तैत्तिरीय संहिता में इसे एक गंधर्व कहा गया है ( तै. सं. १.१.११.१)। गायत्री के द्वारा लाये गये वैदेक साहित्य में-विश्वेदेव का शब्दशः अर्थ अनेक सोम की इसने चोरी की थी (श. बा. ३.२.२.२)। देवता है । यह एक काल्पनिक यज्ञीय देवतासमूह है, जिसका मुख्य कार्य सभी देवताओं का प्रतिनिधित्व करना २. एक देवगंधर्व, जो कश्यप एवं प्राधा के पुत्रों में से एक था। इसने सोम से चाक्षुषी विद्या सीखी थी, है, क्यों कि, यज्ञ में की गई स्तुति से कोई देवता छूट न जाय । वेदों के जिन मंत्रों में अनेक देवताओं का संबंध जो आगे चल कर इसने चित्ररथ गंधर्व को प्रदान की आता है, एवं किसी भी एक देवता का निश्चित रूप थी (म. आ. १५८.४० -४२)। से उल्लेख नही होता है, वहाँ 'विश्वेदेव' का प्रयोग गंधर्व एवं अप्सराओं के द्वारा, गंधर्वमधु प्राप्त करने किया जाता है । भाषाशास्त्रीय दृष्टि से यह सामासिक के लिए किये गये पृथ्वीदोहन में इसे वत्स बनाया गया शब्द नहीं है, बल्कि 'विश्वे देवाः' ये दो शब्द मिल था (भा. ४.१८.१७)। इंद्र-नमुचि युद्ध में यह इंद्रपक्ष कर बना हुआ संयुक्त शब्द है । इसी कारण इसे 'सर्वदेव' में शामिल था (भा. ८.११.४१ ) । याज्ञवल्क्य ऋषि के नामांतर भी प्राप्त है। साथ इसने अध्यात्मविषयक चर्चा की थी, जिस समय विश्वेदेवों से संबंधित सूक्तों में सभी श्रेष्ठ देवता एवं इसने उसे चौबीस प्रश्न पूछे थे (म. शां. ३०६. कनिष्ठ देवताओं की क्रमानुसार प्रशस्ति प्राप्त है। यज्ञ २६-८०)। करानेवाले पुरोहितों को जिस समय समस्त देवतासमाज मेनका अप्सरा से इसे प्रमदरा नामक कन्या उत्पन्न को आवाहन करना हो, उस समय वह आवाहन विश्वेदेवों हुई थी (म. आ. ८.६ )। इसका चित्रसेन नामक एक के उद्देश्य कर किया गया प्रतीत होती है। अन्य पत्र भी था । कर्दम प्रजापति की पत्नी देवहूति | नामावलि-कई अभ्यासकों के अनुसार, ऋग्वेद में से इसका प्रथमदर्शन में ही प्रेम हुआ था (भा. ३. | | प्राप्त 'आप्री सूक्त' विश्वेदेवों को उद्देश्य कर ही लिखा गया है, जहाँ बारह निम्नलिखित देवताओं को आवाहन ब्राह्मणों के शाप के कारण, इसे पृथ्वीलोक में कबंध | किया गया है :-- १. सुसमिद्ध, २. तनुनपात् , ३. नराराक्षस के रूप में जन्म प्राप्त हुआ था। आगे चल कर, | शंस, ४. इला, ५. बर्हि, ६. द्वार, ७. उपस् एवं रात्रि, राम दाशरथि के द्वारा यह मारा गया, एवं इसे मुक्ति ८. होतृ नामक दो अग्नि, ९. सरस्वती, इला, एवं भारती प्राप्त हुई (म. व. २६३.३३-३८)। (मही) आदि देवियाँ, १०. त्वष्ट, ११. वनस्पति, ८७७
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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