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________________ विश्वामित्र प्राचीन चरित्रकोश विश्वामित्र 'कुशिक' नाम से भी प्राप्त है (ऋ. ३.३३.५)। इसके | भाष्य नही लिखा है (ऋ. ३.५३.२०-२४; नि. १०. परिवार के लोगों को भी 'कुशिकाः' कहा गया है। इसके | १४)। परिवार के लोगों को 'विश्वामित्र' उपाधि भी प्राप्त है (ऋ. शक्ति का वध-वसिष्ठ ऋषि के पुत्र शक्ति से विश्वामित्र ३.५३.१३, १०.८९.१७)। के द्वारा किये गये संघर्ष का निर्देश भी ऋग्वेद में प्राप्त है। गाथिन का वंशज-विश्वामित्र 'गाथिन्' राज का सुदास राजा के यज्ञ के समय हुए वादविवाद में शक्ति ने वंशज था, जिस कारण इसे 'गाथिन' पैतृक नाम प्राप्त | इसे परास्त किया। फिर विश्वामित्र ने जमदग्नि ऋषि से है। विश्वामित्र गाथिन के द्वारा विरचित अनेक सूक्त | 'ससर्परी' विद्या प्राप्त कर, शक्ति को परास्त किया ऋग्वेद में प्राप्त हैं [ऋ. ३.१-१२, २४, २५, २६ (ऋ. ३.५३.१५-१६, वेदार्थदीपिका)। आगे चल कर (१-६,८,९); २७-३२, ३३ (१-३,५,७,९,११- इसने सुदास के सेवकों के द्वारा शक्ति का वध करवाया १३); ३४, ३५, ३६ (१-९, ११); ३७-५३, ५७- (तै. सं. ७.४.७.१; ऋ. सर्वानुक्रमणी ७.३२)। ६२, ९.६७.१३-१५, १०.१३७.५; १६७] । पुराणों ___ शक्ति ऋषि से हुए वादविवाद में इसने कथन की हुई में भी इसे कुशिककुलोत्पन्न कहा गया है (वायु. ऋचाएँ 'मौनी विश्वामित्र' की ऋचाएँ नाम से प्रसिद्ध हैं, ९१.९३)। जिनमें इसने कहा है, 'आप लोग इस 'अन्तक' नदीसूक्त-इसके द्वारा विरचित एक सूक्त में विपाश ( विश्वामित्र ) के पराक्रम को नहीं जानते । इसी कारण मुझे. एवं शुतुद्री (आधुनिक बियास् एवं सतलज नदियाँ)। वादविवाद में स्तब्ध देख कर आप हँस रहे हैं । किंतु आप नदियों की संगम पर राह देने के लिए प्रार्थना की गयी | नहीं जानते, कि विश्वामित्र अपने शत्रु से लड़ना ही जानता है (ऋ.३.३३)। अभ्यासकों का कहना है कि, इस सूक्त | है। वारणानि से है । शत्रु से शरणागति उसे मंजुर नहीं है (क्र. ३.५३. के प्रणयन के समय विश्वामित्र पैजवन सुदास राजा का । | २३-२४)। पुरोहित था, एवं पंजाब के संवरण राजा पर आक्रमण करनेवाली सुदास की विजयी सेना को मार्ग प्राप्त कराने के ब्राह्मण ग्रंथों में निम्नलिखित वैदिक मंत्रों के प्रणयन लिए इसने इस 'नदीसूक्त' की रचना की थी ( गेल्डनर, का श्रेय भी विश्वामित्र को दिया गया है :-१. संपात वेदिशे स्टूडियन. ३.१५२)। ऋचाएँ--जिनका प्रणयन एवं प्रचार क्रमशः विश्वामित्र एवं वामदेव ऋषियों ने किया (ऐ.बा.६.१८); २. रोहितसायण के अनुसार, सुदास राजा से विपुल धनसंपत्ति कूलीय साममंत्र--जिनका प्रणयन सौदन्ति लोगों से मिलने प्राप्त करने के पश्चात् , विश्वामित्र के कई विपक्षियों ने के लिए जानेवाले विश्वामित्र ने नदी को लाँधते समय इसका पीछा करना शुरु किया। उस समय भागते हुए | किया था (पं. ब्रा. १४.३.१३)। विश्वामित्र ने इस नदी मूक्त की रचना थी (ऋ. ३.३३, सायणभाष्य)। किन्तु सायण का यह मत अयोग्य प्रतीत ५. एक धर्मशास्त्रकार, जिसका निर्देश ' वृद्ध याज्ञवल्क्य होता है । स्वयं यास्क भी सायण के इस मत से असहमत स्मृति' में प्राप्त है। 'अपराक', 'स्मृतिचंद्रिका', है (नि. २.२४)। जीमूतवाहनकृत 'कालविवेक' आदि धर्मशास्त्रविषयक वसिष्ट से विरोध--ऋग्वेद में प्राप्त निर्देशों से प्रतीत ग्रंथो में विश्वामित्र के निम्नलिखित विषयों से संबंधित होता है कि, यह शुरु में सुदास राजा का पुरोहित था अभिमत उद्धृत किये है :---व्यवहार, पंचमहापातक (ऋ. ३.५३)। किन्तु इसके इस पदसे भ्रष्ट होने के श्राद्ध, प्रायश्चित्त आदि । पश्चात्, वसिष्ठ सुदास का पुरोहित बन गया। तदुपरांत यह | इसके द्वारा विरचित नौ अध्यायों की 'विश्वामित्रसुदास के शत्रुपक्ष में शामिल हुआ, एवं इसने सुदास के | स्मृति' मद्रास राज्य के द्वारा प्रकाशित की गयी है विरुद्ध दाशराज्ञ-युद्ध में भाग लिया ( वसिष्ठ देखिये)। | (मद्रास राज्य कृत पाण्डुलिपियों की सुचि पृ. १९८५, इसी संदर्भ में इसने 'वसिष्ठ-द्वेषिण्यः' नामक कई क्रमांक २७१७)। ऋचाओं की रचना की, जो शौनक के काल से सुविख्यात | ६. एक ऋषि, जो रैभ्य नामक ऋषि का पिता, एवं हैं। वसिष्ठगोत्र में उत्पन्न लोग आज भी इन ऋचाओं का | अर्वावसु एवं परावसु ऋषियों का पितामह था। यह चेदि पठन नहीं करते । ऋग्वेद का एक भाष्यकार दुर्गाचार्य ने | देश का राजा वसु एवं बृहद्युम्न राजाओं का समकालीन स्वयं वसिष्ठगोत्रीय होने के कारण, इन ऋचाओं पर | था ( यवक्रीत एवं भरद्वाज देखिये)। . ८७६
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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