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________________ विश्वामित्र प्राचीन चरित्रकोश विश्वामित्र निश्चय किया, एवं तत्प्रीत्यर्थ कौशिकी नदी और 'रुपंगु | राजकुमार को पुनः राजगद्दी पर बिठाने का आश्वासन तीर्थ' पर घोरतपस्या करके यह ब्राह्मण बन गया | इसने दे दिया । (म. व. ८५.९:१२, वा, रा. बा. ५१-५६)। । त्रिशंकु का राजपुरोहित--आगे चल कर विश्वामित्र ने महाभारत में प्राप्त उपर्युक्त कथा कालदृष्टि से विसंगत अयोध्या के राजपुरोहित देवराज वसिष्ठ को परास्त पर, प्रतीत होती है। नंदिनी गाय का पालनकर्ता वसिष्ठ ऋषि । त्रिशंकु को अयोध्या के राजगद्दी पर विठाया। त्रिशंकु ने 'वसिष्ठ देवराज' न हो कर 'वसिष्ठ अथर्व निधि' था, जो भी अपने राजपुरोहित देवराज वसिष्ठ को हटा कर उसके विश्वामित्र से काफी पूर्वकालीन था (वसिष्ठ अर्थवनिधेि स्थान पर विश्वामित्र की नियुक्ति की, एवं इस प्रकार ब्राह्मण दखिये )। फिर भी महाभारत में विश्वामित्र ऋषि के | बन कर वसिष्ठतुल्य राजपुरोहित बनने की विश्वामित्र की समकालीन देवराज बसिष्ठ को नंदिनी का पालनकर्ता | आकांक्षा पूर्ण हो गयी। चित्रित किया गया है । अतएव विश्वामित्र-वसिष्ठ संघर्ष त्रिशंकु का सदेह स्वर्गारोहण--- आगे चल कर की कारणपरंपरा बतानेवाली महाभारत में प्राप्त उपयुक्त | विश्वामित्र ने त्रिशंकु के अनेकानेक यज्ञों का आयोजन सारी कथा अनैतिहासिक प्रतीत होती है। किया। यही नहीं, सदेह स्वर्गारोहण करने की उस राजा आपत्प्रसंग-ब्राह्मणपद प्राप्त होने के पश्चात् , की इच्छा भी अपने तपःसामथ्र्य से पूरी की। इस संबंध विश्वामित्र ने अपनी पत्नी एवं पुत्र कोसल देश में स्थित एक में अपने पुराने शत्रु देवराज वसिष्ठ से इसे अत्यंत कठोर आश्रम में रख दी, एवं यह स्वयं पुनः एक बार सागरानूप | संघर्ष करना पड़ा। देवराज इंद्र के द्वारा त्रिशंकु के तीर्थ पर तपश्चर्या करने चला गया। इसकी अनुपस्थिति में स्वर्गारोहण के लिए विरोध किये जाने पर, इसे उससे कोसल देश में बड़ा भारी अवर्षण आया, एवं विश्वामित्र भी घोर संग्राम करना पड़ा। किन्तु अन्त में यह अपने की पत्नी एवं पुत्र भूख के कारण तड़पने लगे। अन्न प्राप्त कार्य में यशस्वी हो कर ही रहा (त्रिशंकु. देखिये)। । कराने के लिए, अपने एक पुत्र के गले में रस्सी बाँध कर, पार्गिटर के अनुसार, त्रिशंकु के स्वगारोहण की उसे खुले बाजार में बेचने का आपत्प्रसंग विश्वामित्र ऋषि पुराणों में प्राप्त सारी कथा कल्पनारम्य प्रतीत होती है। की पत्नी पर आया, जिस कारण उस पुत्र को 'गालव' आकाश में स्थित ग्रहों में से एक ग्रहसमह को विश्वामित्र, नाम प्राप्त हुआ। ने त्रिशंकु का नाम दिलवाया, यही इस कथा का तादृश त्रिशंकु की सहाय्यता-उस समय कोसल देश के ! अर्थ है । वाल्मीकि रामायण में भी, त्रिशंक का वर्णन त्रैय्यारूण राजा के पुत्र सत्यव्रत (निशंकु) विश्वामित्रपत्नी | चंद्रमार्ग पर स्थित एक ग्रह के नाते गुरु, बुध, मंगल की सहाय्यता की, तथा उसकी एवं विश्वामित्र पुत्रों की आदि अन्य ग्रहों के साथ किया गया है ( वा. रा. अयो. जान बचायी। त्रिशंकु स्वयं जंगल से शिकार कर के लाता | ४१.१०)। था, एवं वह माँस विश्वामित्र के परिवार को खिलाया करता ____ उपर्युक्त कथा में वर्णित इंद्र-विश्वामित्र संघर्ष भी था। इन्हीं दिनों में एक बार त्रिशंकु राजा ने वसिष्ठ ऋषि कल्पनारम्य प्रतीत होता है, एवं देवराज वसिष्ठ से के नंदिनी नामक गाय का वध कर, उसका मांस विश्वामित्र | विश्वामित्र के द्वारा किये गये संघर्ष का वर्णन वहाँ परिवार को खिलाने की कथा पुराणों में प्राप्त है । किन्तु | देवराज इंद्र के संघर्ष में परिवर्धित किया गया है। जैसे पहले ही कहा गया है, नंदिनी का पालनकर्ता वसिष्ठ | विश्वामित्र के कार्य का महाव-विश्वामित्र के द्वारा विश्वामित्र के समकालीन नहीं था। इसी कारण, यह कथा त्रिशंकु को पुनः राज्य प्राप्त होने की घटना, अयोध्या कल्पनारम्य एवं विश्वामित्र वसिष्ठ का शत्रुत्व बढ़ाने के | के इक्ष्वाकु राजवंश के इतिहास में महत्त्वपूर्ण घटना लिए वर्णित की गयी प्रतीत होती है। मानी जाती है। अयोध्या के पुरातन इक्ष्वाकु राजवंश को बारह वर्षों के पश्चात् अपनी तपस्या समाप्त कर दूर हटा कर वहाँ अपना स्वय का राज्य स्थापन करने विश्वामित्र कोसल देश को लौट आय । वहाँ अपने न का प्रयत्न देवराज वसिष्ठ कर रहा था। उसे असफल होने के काल में त्रिशंकु ने अपने परिवार के लोगों की बना कर, इक्ष्वाकु राजवंश का अधिराज्य अबाधित रखने अच्छी तरह से देखभाल की, यह बात जान कर इसे त्रिशंकु का कार्य विश्वामित्र ने किया। इस प्रकार, 'त्रिशंकु-वसिष्ठके प्रति काफ़ी कृतज्ञता प्रतीत हुई। देवराज वसिष्ठ के विश्वामित्र' आख्यान का वास्तव नायक इक्ष्वाकुराज त्रिशंक द्वारा अयोध्या के राजगद्दी से पदभ्रष्ट किये गये उस ही है । उसे गौण स्थान प्रदान कर, विश्वामित्र एवं वसिष्ठः ८७२
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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