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________________ विश्वामित्र प्राचीन चरित्रकोश विश्वामित्र अयान परीक्षा का जो संघर्ष रामायण महाभारतादि ग्रन्थों में सविस्तृत | यह ब्राह्मण बना गया। शुनःशेप का संरक्षण करने के . रूप में वर्णित किया गया है, वह अनैतिहासिक प्रतीत पश्चात् , कौशि की नदी के तट पर तपस्या करने के होता है। कारण, इसे ब्रह्मर्षिपद प्राप्त हुआ। इतना होते हुए भी, हरिश्चंद्र के राज्यकाल में-सत्यवत त्रिशंकु के राज्य यह क्रोध, मोह आदि विकार काबू में न रख सकता था। काल में शुरू हुआ इसका एवं देवराज वसिष्ठ का संघर्ष इसी कारण अपने तपस्या का भंग करने के लिए आयी सत्यवत के पुत्र हरिश्चंद्र, एवं पौत्र रोहित के राज्यकाल में हुई रंभा को इसने शिला बनाया था। पश्चात् काम क्रोध चाल ही रहा । सत्यव्रत के सदेह स्वर्गारोहण के पश्चात् , पर विजय पाने के लिए इसने पुनः एक बार तपस्या की, उसके पुत्र हरिश्चंद्र ने विश्वामित्र को अपना पुरोहित जिस कारण इसे जितेंद्रियत्व एवं ब्रह्मर्पिपद प्राप्त हुआ नियुक्त किया । किन्तु उसके राजसूय यज्ञ में बाधा उत्पन्न (वा. रा. बा. ६२-६६, स्कंद. ६.१.१६७-१६८)। कर, वसिष्ठ ने अपना पौरोहित्यपद पुनः प्राप्त किया। ब्रह्मर्षिपद प्राप्त होने के पश्वात् , इसे इंद्र के साथ सोमपान सत्यव्रत के विजनवास में, उसका पुत्र हरिश्चंद्र वसिष्ठ के करने का सन्मान प्राप्त हुआ (म. आ. ६९.५०)। इंद्र ही मागदर्शन में पाल पोस कर बड़ा हुआ था । अयोध्या के | ककृपापात्र व्याक्त क रूप म आर के कृपापात्र व्यक्ति के रूप में आरण्यक ग्रंथों में इसका ब्राह्मण लोग भी पहले से ही विश्वामित्र के विरुद्ध थे। इन निर्देश प्राप्त है (ऐ. आ. २.२.३; सां.आ. १.५)। दोनों घटनाओं की परिणति हरिश्चंद्र के राजसूय यज्ञ के सत्त्वपरीक्षा-विश्वामित्र को ब्रह्मर्षिपद कैसे प्राप्त हुआ, समय हुई, जहाँ हरिश्चंद्र ने विश्वामित्र को दक्षिणा देने से इस संबंध में एक कथा महाभारत में प्राप्त है। एक बार इन्कार कर दिया। इस अपमान के कारण रुष्ट हो कर धर्म ऋषि इसके पास आया एवं इसके पास भोजन माँगने इसने अयोध्या का पुरोहितपद छोड़ दिया, एवं यह लगा। धर्म के लिए यह चावल पकाने लगा, जितने में पुष्करतीर्थ में तपस्या करने के लिए चला गया। वह चला गया। पश्चात् यह सौ वर्षों तक धर्मऋषि की राह मार्कंडेय पुराण में--इस संदर्भ में मार्कंडेय-परण में देखते वैसा ही खड़ा रहा। इतने दीर्घकाल तक खड़े रह कर - वसिष्ठ एवं विश्वामित्र के संघर्ष की, अनेकानेक कल्पनारम्य भी इसने अपनी मनःशांति नही छोड़ी, जिस कारण धर्म कथाएँ प्राप्त है, जहाँ विश्वामित्र के द्वारा हरिश्चंद्र राजा ने इसकी अत्यधिक प्रशंसा की, एवं इसे ब्रह्मर्षि-पद प्रदान को दक्षिणा प्राप्ति के लिए त्रस्त करने की, इसने किया (म. उ. १०४.७-१८)। महाभारत में अन्यत्र • एक पक्षी बन कर वसिष्ठ पर आक्रमण करने का, एवं त्रिशंकु-आख्यान, रंभा को शाप, विश्वामित्र के द्वारा वसिष्ठ के सौ पुत्रों का वध करने का निर्देश प्राप्त है (मा. कुत्ते का मांसभक्षण आदि इसके जीवन से संबंधित कथाएँ ८-९)। इन तीनों कथाओं में से पहली दो कथाएँ एकत्र रूप दी गयी हैं। संपूर्णतः वल्पनारम्य हैं. एवं तीसरी हरिश्चंद्रकालीन भविष्यपुराण के अनुसार, ब्रह्मा को अत्यंत प्रिय विश्वामित्र की न हो कर, सुदासकालीन विश्वामित्र की 'प्रतिपदा' का व्रत करने के कारण, इसे देहान्तर न करते प्रतीत होती है (विश्वामित्र ४. देखिये)। हुए भी ब्राह्मणत्व की प्राप्ति हो गयी (भवि. ब्राह्म. हरिश्चंद्र के ही राज्यकाल में उसके पुत्र रोहित को यज्ञ १६) । मृत्यु के पश्चात् यह शिवलोक गया, जो फल में बलि देने का, एवं इक्ष्वाकु राजवंश को निवेश करने का इसे हिरण्या नदी के संगम पर स्नान करने के कारण प्राप्त षड्यंत्र वसिष्ठ के द्वारा रचाया गया था। किन्तु विश्वामित्र हुआ था (पभ. उ. १४०)। ने रोहित की, एवं तत्पश्चात उसके स्थान पर बलि जानेवाले । आश्रम--विश्वामित्र का आश्रम कुरुक्षेत्र में सरस्वती अपने भतीजे शुनशेप की रक्षा कर, इश्वाकु राजवंश का तीर नदी के पश्चिम तट पर स्थाणु-तीर्थ के सम्मुख था पुनः एक बार रक्षण किया । तदुपरांत विश्वामित्र ने शुनः- | (म. श. ४१.४-३७)। इस आश्रम के समीप, सरस्वती शेप को अपना पुत्र मान कर, उसका नाम देवरात रख । नदी पर स्थित रुषंगु-आश्रम में विश्वामित्र ने ब्राह्मणत्व 'दिया (र. ब्रा. ७.१६; सा. श्री. १५.१७; शुनाशेप | प्राप्त किया था (म. श. ३८.२२-३२)। देखिये)। विश्वामित्र का अन्य एक आश्रम आधुनिक बक्सार ब्रह्म पद की प्राप्ति--क्षत्रिय विधामित्र को ब्रह्मर्षिपद | में 'ताटका-वन' के समीप था। महाभारत के कैसे प्राप्त हुआ, इसकी कथाएँ वाल्मीकि रामायण एवं अनुसार, इसका आश्रम कौशिकी नदी (उत्तर बिहार पुराणों में प्राप्त है। रूपंगु-तीर्थ पर तपस्या करने के कारण | की आधुनिक कोशी नदी) के तट पर स्थित था ८७३
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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