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आस्तीक
प्राचीन चरित्रकोश
इक्ष्वाकु
आ रहा है । वह जब तक कुंड में आकर नहीं गिरता आस्त्रबुध्न--इंद्र ने इसके कारण, वेन्य पृथु का वध तब तक इसे वरदान न दीजिये । ' इसी बीच ब्राह्मणों के किया (ऋ. १०.१७१.३)। मंत्रसामर्थ्य के कारण, तक्षक को कुंड के ऊर्वभाग में
आहार्य----अंगिरसगोत्रीय मंत्रकार। आया हुआ इसने देखा । उसे 'तिष्ठ तिष्ठ' कह कर रोका तथा यही वर मांगने की योग्य घडी है ऐसा जान कर
आहुक--(सो. यदु. कुकुर.) पुनर्वसु का पुत्र । इसके उसने राजा से 'सर्पसत्र रोक दीजिये' ऐसा वरदान मांगा।
| सौ पुत्र थे (म. स. १४.५५) । तथापि उनमें से देवक राजा अत्यंत खिन्न हो कर और कोई दसरी चीज मांगने तथा उग्रसेन बहुत प्रसिद्ध थे । शाल्व के साथ कृष्ण के के लिये कहने लगा परंतु वचनबद्ध होने के कारण युद्ध के समय इसने द्वारका का रक्षण किया (म. व. १६. 'तथास्तु' कह कर राजा ने सर्पसत्र रोक दिया। आस्तीक २३)। यह अभिजिन् पुत्र था । इसे श्राहक नामक भाई का सम्मान कर उसे बिदा किया।
था । अत्यंत ऐश्वर्यवान् तथा पराक्रमी ऐसी इनकी आस्तीक के इस यशप्राप्ति के कारण, सब सपों ने प्रसिद्धि थी (ब्रह्म. १५.४६-११)। उसका बडा स्वागत किया और प्रसन्न होकर वे इसे वरदान आहकी---पुनर्वसु राजा की कन्या तथा आहक की देने लगे। इसपर आस्तीक ने वर मांगा कि, जो मेरा भगिनी। आख्यान, त्रिकाल पठन करेंगे उन्हें तुम बिलकुल कष्ट न आहत--हेतनामन देखिये। देना (म. आ. ५३. २०)। आस्तीक ने जनमेजय से इंद्र तथा तक्षक के प्राणों की याचना की। तब ब्राह्मणों की
* आवृति--(सो. यदु. क्रोष्टु.) कर्ममतानुसार रोम
पाद वंश में से एक। आज्ञा ले, राजा ने इसका कथन मान्य कर, सर्पसत्र बंद किया। स्वयं मनसा के पास जा कर, इन्द्र ने उस की आनेय--इसके पिता का नाम शुचि तथा माता का पूजा की तथा उसे बलि चढाई (दे. भा. ९. ४८)। नाम अह्नि था। स्वाध्याय गांव के बाहर करना चाहिये, नंदिवर्धिनी पंचमी के दिन सर्पसत्र बंद हुआ था इसलिये ऐसा नियम होते हुए भी यदि यह संभव न हो, तो गांव यह दिन नागों को अत्यंत प्रिय है (भवि. ब्राहा. ३२; के अंदर ही अध्ययन करना चाहिये ऐसा इसका मत है तक्षक आर्तभाग जारत्कारव देखिये)।
(ते. आ. २.१२)।
इक्षालव--ब्रह्माण्ड मतानुसार व्यास के ऋक् शिष्य- को दंड देने से स्वर्गप्राप्ति होती है। इस तरह का उपदेश परंपरा का शाकवण रथीतर का शिष्य ( व्यास देखिये)। दे कर, जो कार्य करना होगा उसकी रूपरेखा मनु ने इसे
इक्ष्वाकु-(सू.) वैवस्वत मनु के दस पुत्रों में से बतायी। मनु ने पृथ्वी के दस भाग बनाये। वसिष्ठ की ज्येष्ठ (म. आ. ७०.१३; भवि. ब्राह्म. ७९)। इसकी आज्ञानुसार वे सुद्युम्न को न दे कर, इक्ष्वाकु को दिये उत्पत्ति के संबंध में जानकारी इस प्रकार मिलती है । एक (वायु. ८५.२०)। मनु ने मित्र तथा वरुण देवताओं के बार मनु को छींक आयी। उस छींक के साथ ही यह | लिये याग किया। इस कारण इक्ष्वाकु तथा अन्य पुत्र लडका सम्मुख खड़ा हुआ। इस पर से इसका नाम प्राप्त हुए, ऐसी कथा है (विष्णु. ४.१)। वसिष्ठ इक्ष्वाकु इक्ष्वाकु पडा (ह. वं. १.११; दे. भा. ७.८; भा. ९.६; | राजा क कुलगुरु था (म. आ. ६६.९-१०; ब्रह्माण्ड. ३. ब्रह्मा. ७.४४; विष्णु. ४.२.३)। मनु ने कहा कि, तुम ४८.२९; पम. सु. ८.२१९; ४४.२३७. विष्णु. ४.३.१८, एक राजवंश के उत्पादक बनो, दंड की सहायता से राज्य | वा. रा. उ. ५७)। सूर्यवंश में प्रत्येक राजा के समय, करो, तथा व्यर्थ ही किसी को दंड मत दो। अपराधियों वसिष्ठ के कुलगुरु होने का निर्देश है।