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आसारण
प्राचीन चरित्रकोश
आस्तीक.
आसारण-भाद्रपद माह में सूर्य के साथ साथ | इसने उपन्यन के पश्चात् च्यवनात्मज भार्गव ऋषि से घूमनेवाला यक्ष ।
सांगवेद का अध्ययन किया (म. आ. ४४.१८)। शंकर आसुरायण-दो स्थानों पर त्रैवणी का तथा तीसरे ने इसका व्रतबंध कराया। इसे वेदवेदांगों में निष्णात स्थान पर आसुरी का शिष्य (बृ. उ. २.६.३, ४.६.३;
करने के पश्चात् मृत्युंजय मंत्र का अनुग्रह दिया । शंकर बृ. र. ६.५.२) । ब्रह्मांडमतानुसार व्यास के अथर्व शिष्य | की आज्ञानुसार फिर जरत्कारू पुत्रसहित पिता के आश्रम परंपरा के पाराशर्य कौथुम का शिप्य (व्यास देखिये)। में जा कर रही। २. कश्यप गोत्र का एक ऋषिगण ।
सर्पसत्र-जनमेजय राजा ने अपने मंत्री से सुना कि, ३. विश्वामित्र का पुत्र (म. अनु. ७)।
पिताजी की मृत्यु सर्पदंश के कारण हुई। इसलिये आसुरि-यह सायंहोम पक्ष का है। इसने उदित क्रोधित हो कर जनमेजय ने सर्पसत्र कर, सारे सो को होम पक्ष की बहुत निंदा की है (श. बा. २.२.३.९)। मार डालने का निश्चय किया तथा यज्ञदीक्षा ली। यज्ञ इसने अग्नि के उपस्थान का छोटा मंत्र सुझाया है (श. ब्रा. प्रारंभ होनेवाला ही था कि, जनमेजय ने वास्तुशास्त्र में २.३.३.२ )। भारद्वाज का - शिष्य तथा औपजंधनी का निष्णात कारीगर लोहिताक्ष से पूछा कि, यज्ञ मंडप में गुरु (बृ. उ. २.६.३, ४.६.३)। दूसरे स्थान पर याज्ञ- याज्ञिक किस तरह संपन्न होगा, इसपर यज्ञमंडप का वल्क्य का शिष्य तथा आसुरायण का गुरु है (बृ. उ. ६. | स्थान तथा जिस समय भूमापन प्रारंभ हुआ इसे ध्यान ५.२) यज्ञविधि में इसे प्रमाण माना गया है (श. ब्रा. में रख उसने कहा कि, यज्ञ में बडा विघ्न आवेगा तथा १.५.२.२६, २.१.४.२७) । अनिर्बध मत तथा सत्य के | यह यज्ञ एक ब्राह्मण के द्वारा बंद होगा । तथापि राजा ने लिये आग्रह के संबंध में इसे मान्यता प्राप्त थी (श. ब्रा. | यज्ञ की सारी सामग्री जमा कर पूरी व्यवस्था के साथ १४.१.१.३३) । शुक्लयजू के ब्रह्मयज्ञांग पितृतर्पण में यह यज्ञ प्रारंभ कर, सों का संहार शुरू किया। सर्पसत्र में था ( पा. गृ. परिशिष्ट) । ब्रह्माण्डमंतानुसार व्यास की अंत में तक्षक की बारी आयी । सपों ने यह बात जरत्कारू . यजुःशिष्यपरंपरा में मध्यदेशवासी शिष्य (व्यास को बतायी और भाई की रक्षा करने की प्रार्थना की। देखिये)। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ का एक ऋषि । सपंरक्षण--जरत्कारू ने आस्तीक को मातुलकुल का सांख्यशास्त्रज्ञ कपिल का शिष्य तथा पंचशिख का गुरु
रक्षण करने की आज्ञा दी । मातृभक्त आस्तीक आज्ञा (म. शां. २११)। इसका कपिल से व्यक्ताव्यक्त पर
शिरोधार्य कर जनमेजय के यज्ञमंडप में पहुंचा। वहां संवाद हुआ (म. शां. परि. १.२९ अ-२९ब)। शिवाव
उसने अपनी चतुराई तथा मधुर वाणी से राजा के मन तार दधिवाहन का शिष्य ।
को आकर्षित कर लिया । सर्पसत्र से घबराया हुआ .. आसुरिवासिन्-प्राश्नीपुत्र का नाम (बृ. उ. ४.५. तक्षक प्राणरक्षणार्थ इंद्र की शरण में गया। इंद्र ने उसे
अभय दान दिया। ब्राह्मणों ने यज्ञ में तक्षक का आवाहन . आसरी--(स्वा. प्रिय.) देवता जित् राजा की स्त्री किया पर उसे आते न देख, ब्राह्मणों ने कहा कि, इंद्र तथा देवद्युम्न की माता।
ने उसका रक्षण किया है, इसलिये वह नहीं आ रहा ___ आस्तीक---भृगकुलोत्पन्न जरत्कारू. ऋषि तथा तक्षक है। तब राजा ने इंद्रसहित तक्षक का आवाहन करने भगिनी जरत्कारू का पुत्र । गरोदर अवस्था में इसके पति | को कहा । ब्राह्मणों ने 'इंद्राय तक्षकाय स्वाहा' कहा वन को चले गये इसलिये जरत्कारू कैलास पर्वत पर चली | तथा इतना कहते ही इंद्र ने तक्षक का त्याग कर दिया। गयी। यहां शंकर ने उसे ज्ञानोपदेश किया । यहाँ उसने इस कारण तक्षक अकेला ही कुंड के ऊर्ध्व प्रदेश में एक पुत्र को जन्म दिया। पुत्र ने गर्भ में शंकर का उपदेश | खिन्नवदन खडा हो गया (म. आ. ४७-४९)। ब्राह्मणों ग्रहण किया इस लिये इसका नाम आस्तीक रखा गया। के इंद्रसहित तक्षक का आवाहन करते ही, देवतागण माँ ने पति से गर्भ के विषय में पूछा जिसका उत्तर उसे | इंद्र के सहित मनसा के पास गये । तब उसने आस्तीक 'अस्ति' मिला इसलिये पुत्र का नाम 'आस्तीक' रखा पुत्र को सपों के संकट निवारणार्थ आज्ञा दी । आस्तीक के गया (म. आ. ४४.१९-२० दे. भा. २.१२)। भाषण के कारण राजा ने उसे कहा कि, तुम्हें जो 'शिक्षा-आगे चल कर इसकी माता अपने भाई चाहिये मांगो। इसी समय सारे ब्राह्मण कह पडे कि, वासुकि के घर पर रही। वहीं इसका संगोपन हुआ। 'तक्षक आवाहन करने के पश्चात् भी अभी तक नहीं
प्रा. च.९]
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