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आश्वत्थ्य
प्राचीन चरित्रकोश
आसमंजस
आश्वत्थ्य--अहीन का पैतृक नाम (तै. ब्रा. ३.१०. आलेखन (६.१०), आश्मरथ्य (६.१०), कौत्स ९.१०)।
१. २, ७.१), गाणगारि ( २. ६; १२. ९-१०), आश्वमेध-एक राजा का पैतृक नाम । इसका उल्लेख गौतम (२.६, ५.६), तौल्बलि (२.६, ५.६), दानस्तुति में आया है (ऋ. ८.६८. १५-१६)। शौनक (१२. १०)। आश्वल--विश्वामित्र का पुत्र तथा ब्रह्मर्षि ।
इनमें से तौल्वलि पौर्वात्य हैं (पा. सू.२.४.६०आश्वलायन--एक शाखाप्रवर्तक आचार्य । आश्वला- ६१)। विदेहाधिपति जनक का यह होता था । अश्वल से यन शाखा महाराष्ट्र में प्रसिद्ध है, परंतु इस शाखा के संभवतः इसका संबंध है। वेबर के मतानुसार यह पाणि नि संहिता ब्राह्मणादि वैदिक ग्रंथ उपलब्ध नहीं हैं। इसके | का समकालीन रहा होगा। चिं. वि. वैद्य ने इसका काल प्रसिद्ध ग्रंथ निम्न लिखित है १. आश्वलायनगृह्यसूत्र, | खि. पूर्व १०० वर्ष माना है । श्रौतसूत्र तथा गृह्यसूत्र एक २. अश्वलायनश्रौतसूत्र, ३. आश्वलायन स्मृति। ही आश्वलायन के नहीं रहे होंगे। आश्वलायनंगृह्यसूत्र
यह शौनक का शिष्य था। इसके सूत्र के अंत में में यद्यपि श्रौतसूत्र का विवरण मिलता है तथापि भाषा'नमः शौनकाय' कहकर शौनक को प्रणाम किया है।।
भिन्नता स्पष्ट दिखाई देती है। इसे आश्वलायन की शौनक ने स्वतः १००० भागों का एक सूत्र रचा था।।
शिष्यपरंपरा के किसी शिष्य ने लिख कर आश्वलायन किन्तु आश्वलायन का सूत्र, संक्षेप में एवं अच्छा होने के के नाम पर जोड दिया होगा। कारण उसने अपना सूत्र फाड डाला। इसका श्रौतसूत्र २. अथर्ववेदीय कैवल्योपनिषद परमेष्ठी ने आश्वलायन बारह अध्यायों का तथा गृह्यसूत्र चार अध्यायों का है। का बताया है। ऊपर उल्लेखित तथा यह संभवतः एक श्रौतसूत्रों में होत्रकर्म में मंत्र का विनियोग बताया है। | ही हो सकते हैं। दर्शपूर्णमास, अग्न्याधान, पुनराधान, आग्रयण, अनेक
३. कौसल्य का पैतृक नाम । काम्येष्टि, चातुर्मास्य, पशु, सौत्रामणी, अग्निष्टोमादि सप्त
४. शिवावतार में सहिष्णु का शिष्य। .. सोम संस्था, सत्रों के हौत्र तथा अंत में गोत्रप्रवरों का संक्षिप्त संग्रह है। अमिहोमसमान कर्म का भी कहीं
आश्वलायनिन-कश्याकुल का गोत्रकार ऋषि गण | कहीं उल्लेख किया है। गृह्यसूत्रों में निम्नलिखित विषय
आश्ववातायन-कश्य गोत्र का एक गोत्रकार । प्रमुख वर्णित है--संस्कार, नित्यकर्म, वास्तु, उत्सर्जन,
आश्वसूक्ति-सामद्रष्टा (पं. बा. १९.४.२)। उपाकर्म, युद्धार्थसज्जता तथा शूलगव ।
भाश्वायनि-भृगुकुल का एक गोत्रकार ।
२. अंगिराकुल का एक गोत्रकार । गृह्यसूत्र में दिये गये तर्पण में ऋग्वेद के ऋषि मंडला
आश्विनेय-अश्विनीकुमार देखिये। नुसार लिये हैं, एवं जहां ऋषि लेना असंभव लगा वहां
आसंग--(सो. यदु. वृष्णि.) श्वफल्क का पुत्र । प्रगाथ क्षुद्रसूक्त, महासूक्त तथा मध्यम ऐसा उल्लेख किया है । उसी तरह न्यास के शिष्य सुमंतु वगैरह बता कर सूत्र,
आसंग प्लायोगि-एक दानशूर राजा तथा सूक्तभाष्य, भारत एवं महाभारत का भी उल्लेख किया है। द्रष्टा (ऋ. ८. १. ३२-३३)। इसका पुरुषत्व नष्ट होने आचार्य तथा पितर इस प्रकार है--शतर्चिन् , के कारण, यह स्त्री बन गया था। परंतु मेध्यातिथि की माध्यम, गृत्समद, विश्वामित्र, वामदेव, अत्रि, भरद्वाज, कृपा से इसे पुरुषत्वं प्राप्त हुआ, इसलिये इसकी स्त्री वसिष्ठ, सुमंतु, जैमिनि, वैशंपायन, पैल, जानंति, बाहवि, शश्वती बहुत आनंदित हुअी, ऐसी एक आख्यायिका गार्ग्य, गौतम, शाकल्य, बाभ्रव्य, मांडव्य, मांडूकेय, गार्गी
सायण ने दी है। अन्य लोगों को इसमें सत्यता प्रतीत नहीं वाचकवी, वडवा प्रातिथेयी, सुलभा मैत्रेयी, कहोल, होती। अंतिम ऋचा को संदर्भ भी नहीं है। इसी सूक्त कौषीतक, महाकौषीतक, पैंग्य, महापैंग्य, सुयज्ञ, सांख्यायन
में आसंग को याद कहा गया है। इससे यह पता चलता ऐतरेय, महैतरेय, शाकल, बाष्कल, सुजातवक्त्र, औदवाहि, है कि वह यदुवंशी रहा होगा (ऋ. ८.१.३१, ३४)। महौदवाहि, सौजामि, शौनक एवं आश्वलायन । ऐतरेय आसंदिव-नारायण माहात्म्य के लिये इसकी कथा ब्राह्मण से ये सूत्र मिलते जुलते हैं तथा उसमें से कुछ | है (ब्रह्म. १६७)। अवतरण भी इसमें पाये जाते हैं । आश्वलायन के श्रौत- आसमंजस-(सू. इ.) असमंजस्पुत्र अंशुमान् का सूत्र में निम्नलिखित आचार्यों का उल्लेख आता है। नाम ।
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