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आर्य
प्राचीन चरित्रकोश
आश्वतर आश्वि
आर्य--माल्य देखिये।
आलंबीपुत्र--जयंतीपुत्र का शिष्य तथा कौशिकीपुत्र आर्यक--कद्र पुत्र । इसकी कन्या मारीषा वा भोजा । | का गुरु (बृ. उ. ६.५.१.२ काण्व)। मारीषा यदुकुलोत्पन्न शूर राजा की स्त्री थी, जिससे | आलुकि-भृगुकुल का गोत्रकार । जलाभिद् पाठमेद शूरको पृथा नामक कन्या उत्पन्न हुई। आगे चल कर, | है। इसी का नाम कुंती हुआ। भीम की माता पृथा आर्यक आलेखन-एक आचार्य (आश्व. श्री. ६.१०)। की दौहित्री थी। भीम को दुर्योधनादि कौरवों ने विषयुक्त | आल्लकेय--हृत्स्वाशय देखिये। अन्न खिलाकर, प्रमाणकोटितीर्थ में डुबाया । नदी के |
आवटिन्--ब्रह्मांडमतानुसार व्यास की यजुः शिष्य सपाने उसे दंश किया जिस कारण विष उतर गया। परंपरा में से याज्ञवल्क्य का वाजसनेय शिष्य (व्यास भीम सावधान हुआ ही था कि, नाग फिर दंश करने | देखिये)। यही आटविन है। आये । तब भीम ने उनसे युद्ध शुरू किया । यह आवंत्य-भागवत मतानुसार व्यास की सामशिष्य समाचार मिलते ही आर्यक वहां पहुंचा । भीम को उसने | परंपरा में से ब्रह्मवेत्ता का शिष्य (व्यास देखिये)। पहचान लिया, तथा उसे पाताल में ले जा कर अमृतमान | आवरण--(वा.) भरत तथा पंचजनी का पुत्र । कराया । तुझमें दस सहस्र नागों का बल रहे ऐसा | आवाह-(सो. यदु.) विष्णुमतानुसार श्वफल का आशीर्वाद दे, इसने उसे हस्तिनापुर तक पहुंचाया पुत्र | (म. आ. ११९; परि. १. क्र. ७३)। | आविक्षित--मरुत्त का पैतृक नाम । इस मरुत्त का
२. धर्मसावर्णि मन्वंतर में होनेवाले विष्णु का पिता। कामप्रि ऐसा दूसरा नाम भी होगा (ऐ. ब्रा. ८. २१; श.
आर्यशृंगि-दुर्योधन पक्षीय एक राक्षस । इसने ब्रा. १३.५.४.६; म. शां. २९.१५)। वायुमतानुसार यह अर्जुनपुत्र इरावत् का वध किया (म. भी. ८६.६४)। करंधम का पुत्र है। आषाण-अंगिराकुल का एक गोत्रकार।
विहोत्र-ऋषभदेव तथा जयंती का भगवद्भक्त 'आर्टिषेण कृतयुग में हुआ एक राजर्षि। तप के | पुत्र। बल पर यह ब्राह्मण हुआ (म. स. ८.१३; श. ३९.१ आवेद-भृगुकुल का एक गोत्रकार (आंबाज देखिये)। वायु. ९१.११४)। इसका आश्रम हिमालय पर नर- आशावह--विवस्वान का पुत्र । नारायणाश्रम के पास था (म. व. १५३, परि १.१७, २. द्रौपदी के स्वयंवर को आया हुआ यादव (म. 'पंक्ति ३१)। इसके पास पांडव गये थे। (म. व. १५६. १६८)। यह भृगुकुल का मंत्रकार था। इसका अद्विषेण | ___ आश्मरथ्य--आश्मरथ का वंशज । सूत्र ग्रंथों में नाम भी मिलता है (वायु. ५९.९५-९७)। निर्णयसिंधु मतमेद दर्शाने के लिये इसका नाम आता है (आश्व. में इसका आधार लिया गया है। देवापि देखिये।
श्री. ६.१०; व्र. सू. १.२.२९, ४.२०)। २. (सो. क्षत्र.) शल का पुत्र (वायु. ९२.५)।
आश्माकी--प्रचिन्वत् की पनी । अश्मकी भी पाठ ३. वृद्धा देखिये।
है। यादवकन्या । इसका पुत्र शर्याति (म. आ. ९०.१३) आलंब--एक ऋषि । यह धर्मराज की सभा में था | संयाति ऐसा भांडारकर पाठ है। (म. स. ४.२० कुं.)।
आश्रया-स्थावरनगर में रहने वाले कौडिन्य की आलंबायन-इंद्र का मित्र । इसने रुद्रका माहात्म्य | पत्नी (गणेश. १.६३)। बताया (म. अनु ४९)।
आश्रायणि--कश्यपकुल का एक गोत्रकार । २. वसिष्ठकुल का एक गोत्रकार तथा ऋषिगण। आश्राव्य--इन्द्र सभा का एक ऋपि (म. स. ७.१६)।
आलंघायनीपुत्र--आलंबीपुत्र का शिष्य (बृ. उ.६. आश्लेषा--सोम की सत्ताईस नियों में से एक। ५.२. काण्व )।
आश्वघ्न--यह कोई स्वतंत्र व्यक्ति होगा, वा मनु के आलंबि-ब्रह्मांड तथा वायुमतानुसार व्यास के यजुः- लिये एक विशेषण होगा (ऋ. १०.६१.२१)। 'शिष्यपरंपरा के प्राच्यों में से एक।
आश्चतर आश्वि--बुडिल का पैतृक नाम (ऐ. ब्रा. आलंबी-कश्यप तथा खशा की कन्या ।
६.३०; श. वा. ४.६.१.९)।