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________________ आयुतायु प्राचीन चरित्रकोश आर्भव आयुतायु--(मगध. भविष्य.) भागवत, वायु एवं | ३.४.१; छां. उ. ५.३.१). प्राणविद्या बताते समय इसका ब्रह्माण्ड के मतानुसार श्रुतश्रवस् का पुत्र । उल्लेख है (जै. उ. ब्रा. २.५.१)। आयुर्दान--पारावत नामक देवगणों में से एक । | आरुषी-मनुकन्या। च्यवन ऋषि की दो स्त्रियों में आयुप्मत-संहाद दैत्य के तीन पुत्रों में से ज्येष्ठ । से ज्येष्ठ । उर्व ऋषि की माता । २. दक्षसावर्णि मन्वंतर में होनेवाले ऋषभ अवतार आरहण्य- सुमंतु का शिष्य । इसका शिष्य चैकिका पिता। तायन (वं. वा. २)। .. ३. उत्तानपाद का पुत्र । ___ आर्भ-प्रियमेध का आश्रयदाता (ऋ. ८.६८.१५आयोगव मरुत्त आविक्षित-मरुत्त देखिये। १६)। अतिथिग्व इंद्रोत तथा आक्ष से दान मिलने का आरणेय-अरणी से उत्पन्न होने के कारण, शक को | उल्लेख प्रियमेध ने किया है। एक अन्य स्थान पर आक्ष दिया गया नाम (दे. भा. १. १७)। श्रुतर्वन् का निर्देश है (ऋ. ८.७४. ४)। आरण्य-एक मध्यमाध्वर्यु । आकायण-गलूनस देखिये। आरण्यक लोमश ने इसे रामायण सुनाई (पन. आर्चत्क-शरका पैतृक नाम (ऋ. १.११६.२२)। पा. ३५. ३७)। ऋचत्क का पुत्र। आरद्वत्-अंगार देखिये। आर्चनानस-अत्रिगोत्र का प्रवर । आरब्ध-अंगार देखिये । आर्चिष्मत्-सुतपदेवों में से एक। आर्जव (आर्जय)-गांधार देशाधिपति शकुनि के आराधिन वा आराविन्-(सो. कुरु.) वायुमता छः बंधुओं में से एक । इसे भारतीय युद्ध में इरावान् ने नुसार जयत्सेन का पुत्र तथा विष्णुमतानुसार आराविन् । मारा (म. भी. ८६. २४; ४२)। .. आराहळि-सौजात देखिये । आरुणायनि-अंगिराकुल का एक गोत्रकार । आर्जुनेय-कुत्सका पैतृकनाम (ऋ. १. ११२. २३; | ४. २६. १; ७. १९. २, ८. १. ११)। आरुणि-उद्दालक का पैतृक नाम (बृ. उ. ३.६.१; आर्तपर्णि-(सू. इ.) ऋतुपर्ण का पुत्र (ह. वं. छां. उ. ३.११.४)। सुब्रह्मण्य का गुरु आरुणि यशस्विन् । यही है (जै. ब्रा. २.८०)। आरुणि ने हृदय के अष्टदलयुक्त | आर्तभाग जारत्कारव-जरत्कारु का पुत्र । यह कमल के स्थान ब्रह्मदृष्टि रख कर ब्रह्मा की आराधना की | आस्तीक ऋषि का ही नाम होगा । दैवराति जनक की (ऐ. आ. २.१.४)। वायुमतानुसार यजुःशिष्यपरंपराके सभा में, याज्ञवल्क से वाद करनेवाला संभवतः यही व्यास का मध्यदेश का शिप्य (व्यास देखिये)। यह होगा (बृ. उ. ३. २. १, १३)। 'कति ग्रहाः' प्रश्न का वासिष्ठ चैकितायन के पास ज्ञानार्जन के लिये गया था उत्तर दे कर, याज्ञवल्क्य ने इसे चुप बिठाया। (जै. उ. बा. १.४२.१)। अन्य स्थान में, अग्नि उध्वर्यु ___ आर्तभागीपुत्र--शौंगीपुत्र का शिष्य, तथा वार्काका नाश न कर शत्रु का नाश करता है, यह बताने के रुणीपुत्र का गुरु (बृ. उ. ६.५.२)। लिये इसके नाम का उल्लेख आता है (श. ब्रा. १.१.२. आर्तव--बर्हिषद पितरों का नामांतर । ११)। अग्निहोत्र की प्रशंसा करते समय भी एक ___ आर्तायनि--ऋतायनपुत्र शल्य का पैतृक नाम (म. आरुणि का उल्लेख है (श. ब्रा २. ३. ३१)। आरुणि भी. ५८. १४)। पांचाल्य का उद्दालक भी नाम है (उद्दालक देखिये)। आर्तिमत्-एक ऋषि । इसके स्मरण से सर्पबाधा २. धर्मसावर्णि मन्वंतर के सप्तर्षियों में एक । नष्ट होती है (म. आ. ५३. २३)। ३. विनता का पुत्र । आर्द्र--(स. इ.) आर्द्रक ऐसा पाठभेद है (म. व. ४. सर्प (म. आ. ५२.१७)। १९३. ३; इंदु देखिये)। ५. एक व्यास (व्यास देखिये)। आईक-आर्द्र देखिये। आरुणि पांचाल्य-- उद्दालक देखिये। आर्द्रा-सोम की सत्ताईस स्त्रियों में से एक ! आरुणेय- औपवेशि के कुल में उद्दालक आरुणि आधुदि--ऊर्ध्वग्रावन् देखिये। तथा पुत्र श्वेतकेतु का यह पैतृक नाम है (श. ब्रा. १०. आर्भव-सूनु देखिये। ६२
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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