SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 876
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विभिंदु प्राचीन चरित्रकोश विभीषण (ऋ. ८.२.४१-४२)। पंचविंश ब्राह्मण में भी इस कथा ___ सीता की खोज में आये हुए हनुमत् का वध करने का निर्देश प्राप्त है, किन्तु वहाँ इसे 'विभिंदुक' कहा | को रावण उद्यत हुआ। उस समय भी, इसने रावण गया है (पं. बा. १५.१०.११)। से प्रार्थना की, 'दूत का वध करना अन्याय्य है । अतः __हॉपकिन्स के अनुसार, विभिंदुक एक स्वतंत्र व्यक्ति | उसका वध न कर, दण्डस्वरूप उसकी पूँछ ही केवल जला न हो कर, वह मेधातिथि का ही पैतृक नाम था, एवं | दी जाये। हनुमत् के द्वारा किये गये लंकादहन के इस शब्द का सही पाठ 'वैभिंदुक' था (हॉपकिन्स, ट्रा. | समय, उसने इसका भवन सुरक्षित रख कर, संपूर्ण लंका सा. १५.६०)। जला दी थी (वा. रा. सु. ५४.१६)। विभिंदुक-'विभिंदु' राजा का नामान्तर ( विभिंदु | रावण की सभा में राम-रावण युद्ध के पूर्व, रावण देखिये)। इसी के वंश में उत्पन्न हुए 'विभिंदुकीय' ने अपने मंत्रिगणों की एक सभा आयोजित की थी, जिस पुरोहितों का निर्देश ब्राह्मण ग्रंथों में प्राप्त है (जै. उ. ब्रा. समय विभीषण भी उपस्थित था । उस सभा में इसने ३.२३३)। सीताहरण के कारण सारी लंकानगरी का विनाश होने - विभीषण-रावण का कनिष्ठ भाई, जो विश्रवस ऋषि | की सूचना स्पष्ट शब्दों में की थी, एवं सीता को लौटाने एवं कैकसी के तीन पुत्रों में से एक था (वा. रा. उ. के लिए रावण से पुनः एक बार अनुरोध किया था (वा. ९.७) । भागवत के अनुसार, इसकी माता का नाम | रा. यु. ९)। उस समय, रावण ने विभीषण की अत्यंत केशिनी अथवा मालिनी था (भा. ४.१.३७ )। वाल्मीकि- | कटु आलोचना की, एवं इसे राक्षसकुल का कलंक बताया रामायण में वर्णित विभीषण धार्मिक, स्वाध्याय निरत, (रावण दशग्रीव देखिये)। इस घोर भर्त्सना से घबरानियताहार, एवं जितेंद्रिय है (वा. रा. उ. ९.३९)। कर, अनल, पनस, संपाति एवं प्रमाति नामक अपने इसी पापभीरुता के कारण, अपने भाई रावण का पक्ष | चार राक्षस-मित्रों के साथ यह लंकानगरी से भाग गया छोड़ कर यह राम के पक्ष में शामिल हुआ, एवं जन्म से असुर होते हुए भी, एक धर्मात्मा के नाते प्राचीन | शरणागत विभीषण-वानरसेना के शिबिर के पास. साहित्य में अमर हुआ। | पहुँच कर अपना परिचय राम से देते हुए इसने कहा, जन्म--कैकसी को विश्रवस् ऋषि से उत्पन्न हुए रावण "मैं रावण का अनुज हूँ। उसने मेरे सलाह को ठुकरा एवं कुंभकर्ण ये दोनों पुत्र दुष्टकर्मा राक्षस थे। किंतु कर मेरा अपमान किया है। अतः मैं अपना परिवार इसी ऋषि के आशीर्वाद के कारण, कैकसी का तृतीय पत्र | छोड़ कर, तुम्हारी शरण में आ गया हूँ (त्यक्त्वा पुत्रांश्च विभीषण, विश्रवस् के समान ब्राह्मणवंशीय एवं धर्मात्मा दारांश्च राघवं शरणं गतः) (वा. रा. यु. १७.६६)। उत्पन्न हुआ (वा. रा. उ. ९.२७)। भागवत के इस अवसर पर विभीषण का वध करने की सलाह नुसार, यह स्वयं धर्म का ही अवतार था (भा. सुग्रीव ने राम से दी, किन्तु राम ने शरणागत को अवध्य ३७.१४)। बता कर इसे अभयदान दिया (वा. रा. यु. १८.२७; तपस्या-इसने ब्रह्मा की घोर तपस्या की थी, एवं राम दाशरथि देखिये)। उससे वरस्वरूप धर्मबुद्धि की ही माँग की थी (वा. रा. अनंतर विभीषण ने रावण की सेना एवं युद्धव्यवस्था उ. १०.३०)। इस वर के अतिरिक्त, ब्रह्मा ने इसे की पूरी जानकारी राम को बता दी, एवं युद्ध में राम की अमरत्व एवं ब्रह्मास्त्र भी प्रदान किया था (वा. रा. उ. सहायता करने की प्रतिज्ञा भी की। तब राम ने विभीषण को लंकानगरी का राजा उद्घोषित कर, इसे राज्याभिषेक रावण से विरोध - यह लंका में अपने भाई रावण के | किया (वा. रा. यु. १९.१९)। साथ रहता था, किंतु स्वभावविरोध के कारण इसका | राम की सहायता--रामरावण युद्ध में राम का प्रमुख उससे बिल्कुल न जमता था। रावण के द्वारा सीता का | परामर्शदाता विभीषण ही था। इसीके ही परामर्श पर, हरण किये जाने पर, सीता को राम के पास लौटाने के राम ने समुद्र की शरण ली, एवं वालिपुत्र अंगद को दूत लिए इसने उसकी बार बार प्रार्थना की थी। किन्तु रावण | के नाते रावण के पास भेज दिया। रामसेना का निरीक्षण . ने इसके परामर्श की अवज्ञा कर के, सीता को लौटाना | करने आये हुए शुक, सारण, शार्दूल आदि रावण के गुप्तचरों अस्वीकार कर दिया (वा. रा. सु. ५.३७)। को पहचान कर पकड़वाने का कार्य भी इसीने ही किया ८५४
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy