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विप्रचित्ति
प्राचीन चरित्रकोश
विभिंदु
। परिवार--अपनी सिंहिका नामक पत्नी से इसे एक सौ नदी पर था । इसने हिमालय पर्वत पर रहनेवाले सनएक पुत्र उत्पन्न हुए थे, जो ' सैहिकेय' सामूहिक नाम से | कुमार से ब्रह्मज्ञान प्राप्त किया था (म. शां. परि. सुविख्यात थे । एक राहु एवं सौ केतु मिल कर, ये १०१ | १.२०)। सैंहिकेय राक्षस बने थे (भा. ६.६.३७)।
विभांडक काश्यप--एक आचार्य, जो ऋश्यशंग भागवत के अतिरिक्त, ब्रह्म, मत्स्य आदि बाकी सारे | ऋषि का पुत्र एवं शिष्य था । इसके शिष्य का नाम मित्रभू पुराणों में इसके पुत्रों की संख्या तेरह दी गयी है। काश्यप था (६.बा.२) । हरिवंश, विष्णु एवं ब्रह्मांड में वह बारह बतायी गयी है। विभाव--जिताजित् देवों में से एक । . विप्रचित्ति के पुत्रों की हरिवंश में प्राप्त नामावलि, विभावरी-ब्रह्मा की एक मानसकन्या, जो रात्रि अन्य पुराणों में प्राप्त पाठभेदों के साथ नीचे दी गयी | का प्रतीकरूप देवता मानी जाती है। ब्रह्मा की आज्ञा से है :-१, अंजिक (अजन, अंजक, सुपुंजिक); २. | इसने देवी उमा के शरीर में प्रवेश किया, जिस कारण इल्वल; ३. कालनाभ; ४. खस्त्रुम (शलभ, श्वसृप ); ५. | वह कृष्णवर्णीय बन गयी (मत्स्य. १५४.५७-९६; नभ (नल, भौम); ६. नमुचि; ७. नरक (कनक) ८. ब्रह्मन् देखिये)। रहु (पोतरण, सरमाण, स्वभानु); ९. वज्रनाभ (काल-| विभावल-प्रतर्दन देवों में से एक । वीर्य, चक्रयोधिन् , बल); १०. वातापि; ११. व्यंश | २. विवस्वत् के पुत्रों में से एक (म. आ. १.४०)। (वैश्य, व्यस, सव्य सिन्य ); १२. शुक (विख्यात, केतु, ३. एक दैत्य, जो मुर नामक दैय का पुत्र था । कृष्ण शंभ) (ह. व. १.३; मत्स्य. ६; विष्णु. १.२१; ब्रह्म. | ने इसका वध किया (मुर २. देखिये)। ३; ब्रह्मांड. ६.१८.२२)।
४. एक ऋषि, जो युधिष्ठिर का विशेष आदर करता २. एक असुर, जो हिरण्यकशिपु का सेवक था (विष्णु. | था। पाण्डवों के वनवासकाल में, यह द्वैतवन में उनके १.१९.५२)।
साथ रहता था (म. व. २७.२४) । पाठभेद ( भांडारकर विप्रजति वातरशन--एक वैदिक मंत्रद्रष्टा (ऋ. संहिता)-'ऋतावतु। १०.१.३६.३)।
५. एक क्रोधी महर्षि, जो सुप्रतीक नामक ऋषि का विप्रबंधु गौपायन (लौपायन)--एक वैदिक सूक्त- भाई था । अपने भाई के शाप के कारण, यह एक कछुआ द्रष्टा (ऋ. ५.२४.४; १०.५७.६०)।
बन गया। इसके इसी अवस्था में गरुड ने इसका भक्षण विबुध--(सू. निमि.) एक राजा, जो विष्णु के किया (म. आ. २५.१२)। अनुसार कृति राजा का, एवं वायु के अनुसार देवमीढ | ६. एक दानव, जो कश्यप एवं दनु के पुत्रों में से एक राजा का पुत्र था । भा वत में इसे 'विसृत', एवं अन्य था। वृत्र-इंद्र युद्ध में यह वृत्र-पक्ष में शामिल था (भा. पुराणों में 'विश्रुत' कहा गया है।
६.६.३०)। विभा--दुर्गम राजा की पत्नियों में से एक । इसकी ७. एक वसु, जिसकी पत्नी का नाम द्युति था। सोम माता का नाम कावेरी था।
के प्रीति के कारण, द्युति ने इसका त्याग किया (मत्स्य. विभांड--एक ऋषि, जो शरशय्या पर पड़े हुए भीष्म | २३.२४ )। से मिलने आया था।
८. एक वैश्य, जो अपने पूजापाठ के समय अभद्र विभांडक--कश्यपकुल में उत्पन्न एक ऋषि, जो ऋश्य- घंटा का निनाद करता था । इस पापकर्म के कारण, मृत्यु शृंग ऋषि का पिता था । इसके पुत्र ऋश्यशंग ऋषि के के पश्चात् इसे घंटा के आकार का मुख प्राप्त हुआ । इसी जन्म की, एवं अंग देश के चित्ररथ राजा के शान्ता | कारण, इसे 'घंटामुख' नाम प्राप्त हुआ। नामक कन्या से उसके विवाह की अनेकानेक चमत्कृति- विकास--जित देवों में से एक । पूर्ण कथाएँ महाभारत में प्राप्त है (म. व. ११०.११; २. अमिताभ देवों में से एक । ऋश्यशंग देखिये)।
३. वशवर्तिन् देवों में से एक । इसके नेत्र हरे-पिले रंग के थे,एवं सर से ले कर पैरों विभिंदु--एक राजा, जिसके दानशूरता की प्रशंसा के नाखूनों तक इसके शरीर के सारे भागों पर केश ही मेधातिथि काण्व नामक आचार्य के द्वारा की गयी है। केश थे (म. व. १११.१९)। इसका आश्रम कौशिकी इसने मेधातिथि को ४८ हज़ार गायें दान में दी थी