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________________ विनंता प्राचीन चरित्रकोश विध्यावलि में इसका निर्देश प्राप्त है ( भा. ६.६.२१)। इसकी । २. पुलस्त्य एवं प्रीति के तीन पुत्रों में से एक (वायु. माता का नाम असिन्नी था। २८.२२)। एक बार इसके पति कश्यप ने इसे वर माँगने के लिए विंद-(सो. कुरु.) धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों में से एक । वहा । उस समय इसने अपनी सौत कढ़ के पुत्रों से भी | भीम ने इसका वध किया (म. द्रो. १०२.९८)। अधिक बलशाली दो पुत्रों की याचना की। तदनुसार, कदू | २. एक केकय-राजकुमार, जो भारतीय युद्ध में कौरवके नागपुत्रों से भी अधिक बलशाली गरुड एवं अरुण नामक पक्ष में शामिल था । सात्यकि ने इसका वध किया (म. दो पुत्र कश्यप ने इसे प्रदान किये । इसके ये दोनों पुत्र | क. ९.६)। अण्डे से उत्पन्न हुए थे। उनमें से एक अण्डा इसके द्वारा ३. अवंती देश का राजकुमार, जो जयसेन एवं वसुदेवफोड़ जाने के कारण, उससे उत्पन्न हुआ अरुण अधूरे | भगिनी राजाधिदेवी के दो पुत्रों में से एक था । इसे शरीर से उत्पन्न हुआ था। अनुविंद नामक कनिष्ठ भाई, एवं मित्रविंदा नामक अपनी इस दुर्गति के कारण, अरुण ने इसे पाँच सौ | एक बहन थी। वर्षों तक अपनी सौत कद्दू की दासी होने का शाप दिया। | आरंभ से ही यह दुर्योधन एवं जरासंध का पक्षपाती इस शापित अवस्था में कद्र ने इसका अनेकानेक प्रकार से | एवं मित्र था। अपनी बहन मित्रविंदा का विवाह भी यह छल किया। अन्त में इसके पुत्र गरुड ने स्वर्ग से अमृत दुर्योधन से ही करना चाहता था, किंतु उसने श्रीकृष्ण ला कर, इसकी शाप से मुक्तता की (म. आ. ३०; से प्रीतिविवाह कर लिया (भा. १०.५८.३०-३१)। गरुड देखिये)। अपने दक्षिण दिग्विजय के समय, सहदेव ने इसे जीता परिवार-गरुड एवं अरुण के अतिरिक्त इसके | था (म. स. २८.१०)। अरिष्टनेमि तार्थ्य एवं आकर्णि नामक दो पुत्र थे ( भवि. भारतीय युद्ध के समय, यह एक अक्षौहिणी सेना ब्राह्म. १५९ )। वायु के अनुसार इसके दो पुत्र, एवं ! के साथ कौरवपक्ष में शामिल हुआ था (म. उ. १९. ३६ कन्याएँ थी, जिनमें गायत्री आदि छंद, एवं सुपर्णा | २४)। कौरवसेना में इसकी श्रेणी 'रथी' थी, एवं आदि पक्षिणियाँ प्रमुख थी (वायु. ६९.६६-६७)। | सेना के दस प्रधान अधिनायकों में से यह एक था (म. यह स्वयं हवा में तैरने की कला में प्रवीण थी, एवं इसकी | भी. १६.३३-३५)। बहुत सारी संतान भी पक्षी ही थे । इससे प्रतीत होता भारतीय युद्ध में पाण्डव पक्ष के निम्नलिखित योद्धाओं है होता है कि, यह स्वयं भी एक पाक्षिणी थी। के साथ इसका युद्ध हुआ थाः--१. कुंतिभोज (म. भी. विनताश्व--एक राजा, जो वैवस्वत मनुपुत्र इल | ४३.६९); २. इरावत् (म. भी. ७९.१२-२०), ३. (सुद्युम्न ) का पुत्र था। इल के पश्चात् , उसके पश्चिम | धृष्टद्युम्न (म. भी. ८२.३२-३६ ) ४. विराट (म. द्रो. साम्राज्य यह का अधिपति बन गया (वायु.८५.१९)। । २४.२०-२१)। अंत में यह अर्जुन के द्वारा मारा गया विनायक--विघ्नेश्वर (गणपति) नामक देवता का | (म. द्रो. ७४.२५)। नामान्तर (गणपति देखिये )। रुद्रगणों के एक अधिपति | विंदु आंगिरस--एक वैदिक सक्तद्रष्टा (ऋ. ८.९४; के नाते भी इसका निर्देश प्राप्त है (भूत देखिये)। । ९.३०)। २. शिवगणों का एक समुदाय, जिसमें कुष्मांड, विंध्य--रैवत मनु के पुत्रों में से एक (भा. ८.५.२)। गजतुंड, जयंत आदि रुद्रगण समाविष्ट थे । इस समूह के विंध्यशक्ति--(पौर. भविष्य.) एक राजा, जो किलशिवगणों के मुख सिंह, शेर आदि के समान थे (मत्स्य. | किल नामक राजा का पुत्र, एवं पुरंजय राजा का पिता था १८३.६३-६४)। | (ब्रह्मांड, ३.७४.१७८)। विनाशन--एक दानव, जो कश्यप एवं काला के विध्यसेन-(शिशु. भविष्य.) एक राजा, जो मत्स्य पुत्रों में से एक था । अपने अन्य भाईयों के समान यह के अनुसार क्षेमजित् राजा का पुत्र था (मत्स्य. २७२. अस्त्रविद्या में कुशल, एवं साक्षात् यम धर्म के समान | ८)। भयंकर था। | विंध्यावलि-बलि दैत्य की पत्नी (बलि वैरोचन विनीत--उत्तम मनु के पुत्रों में से एक (ब्रह्मांड. | देखिये)। इसे बाण नामक पुत्र एवं कुंभीनसी नामक २.३६.४०)। | एक कन्या थी (मत्स्य. १८७,४०)। वामन के द्वारा
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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