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विदुर
इसे अपना मुख्य मंत्री नियुक्त किया था, एवं यद्यपि यह उससे उम्र में छोटा था, फिर भी वह इसीके ही सलाह से राज्य का कारोबार चलाता था।
प्राचीन चरित्रकोश
विदुर
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विधि एक तरह की तपस्या ही मानी जा सकती है, यह ' विदुर नीति' का प्रमुख सूत्रवाक्य है। अपना यह तत्त्वज्ञानविदुर के द्वारा अनेकानेक नीतितत्त्व एवं सुभाषितों की सहायता से कथन किया गया है। जिस प्रकार उपनिषदों के बहुसंख्य विचार श्रीकृष्ण ने भगवङ्गीता में अंतर्भूत किये है, उसी प्रकार तत्कालीन राजनीतिशास्त्रों के । द्यूत - बहुत सारे विचार विदुर के द्वारा विदुर नीति में प्रधित किये हैं। इन विचारों के कारण, महाभारत भारतीययुद्ध का इतिहास कथन करनेवाला एक सामान्य, इतिहास ग्रंथ न हो कर राजनीतिशास्त्र का एक श्रेष्ठ ग्रंथ बन गया है।
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विदुर के द्वारा किये गये इस उपदेश से धृतराष्ट्र अत्यधिक संतुष्ट हुआ किन्तु दुर्योधन के संबंध में अपनी असहाय्यता प्रकट करते हुए उसने कहा, 'तुम्हारे द्वारा कथन की गयी नीति मुझे योग्य प्रतीत होती है। फिर भी दुर्योधन के सामने इन सारे उच्च तत्वों को मैं भूल बैठता हूँ' ।
दुर्योधन एवं शकुनि के द्वारा दूतक्रीडा का षड्यंत्र क्य रचाया गया, तब इसने संभाव्य दुष्परिणामों की चेतावनी धृतराष्ट्र को दी थी इसने क्रीडा का तीव्र विरोध किया था, तथा जुएँ के अवसर पर दुर्योधन की कटु आलोचना की थी ।
भवन
जिस समय दुर्योधन ने द्रौपदी को पकड़ कर समा मन में लाने का आदेश दिया, उस समय इसने पुनः एक बार दुर्योधन को चेतावनी दी। सभागृह में द्रौपदी ने भीम से अपनी रक्षा करने के लिए कई ताविक प्रश्न पूछे, तब इसने प्राद-सुधन्वन् के आख्यान का स्मरण भीष्म को दे कर, द्रौपदी के प्रश्नों का विचारपूर्वक प्रया देने के लिए उससे प्रार्थना की थी ( म. स. ५२-८० ) ! किन्तु इसके सारे प्रयत्न दुर्योधन की जिद्द एवं धृतराष्ट्र की दुर्बलता के कारण सदैव असफल ही रहे।
कलह
•पाण्डवों के वनवाससमाप्ति के पश्चात् इसने उनका राज्य वापस देने के लिए धृतराष्ट्र को काफी उपदेश दिया। इस समय इसने अतीय राज्यतृष्णा एवं फौटुंबिक । मह के कारण, राजकुल विनाश की गर्ता में किस तरह जाते हैं, इसका भी विदारक चित्र धृतराष्ट्र को कथन क्रिया था। श्रीकृष्णदौत्य के समय, श्रीकृष्ण को धोखे से कैद कर लेने की योजना दुर्योधन आदि ने बनायी। उस समय भी इसने उसे चेतावनी दी थी, इस प्रकार का . दुःसाहस तुमको मिटा देगा ( म.उ. ९० ) ।
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विदुरनीति -- कृष्णदौत्य के पूर्वरात्रि में, आनेवाले युद्ध की आशंका से धृतराष्ट्र अत्यधिक व्याकुल हुआ, एवं उसने सारी रात विदुर के साथ सलाह लेने में व्यतीत की । उस समय बिदुर से धृतराष्ट्र के द्वारा दिया गया उपदेश महाभारत के 'प्रजागर पर्व में प्राप्त है, जो 'विदुर नीति' नाम से सुविख्यात है | विदुर नीति का प्रमुख उद्देश्य, संभ्रमित हुए धृतराष्ट्र को सुयोग्य मार्ग दिखलाना है, जो श्रीकृष्ण के द्वारा अर्जुन को कथन किये गये भगवद्गीता से साम्य रखता है । किन्तु जहाँ भगवद्गीता का सारा उद्देश्य अर्जुन को युद्धप्रवण करना है, वहाँ ' विदुरनीति' में सार्वकालिन शांतिमय जीवन का एवं युद्धविरोध का उपदेश किया गया है।
अपने द्वारा की गयी गलतियों के परिणाम मनुष्य ने भुगतना चाहिये, एवं इस प्रकार किया गया पश्चात्ताप
तत्पश्चात् मनःशान्ती के लिए कुछ धर्मोपदेश प्रदान करने की प्रार्थना धृतराष्ट्र ने विदुर से की। इस पर विदुर ने कहा, 'मैं शूद्र हूँ, इसी कारण तुम्हे धर्मविषयक उपदेश प्रदान करना मेरे लिए अयोग्य है। तत्पश्चात् विदुर के कहने पर धृतराष्ट्र ने सनत्सुजात से अध्यात्मविद्याविषयक उपदेश सुना (म. उ. ३३४१ सनत्सुजात देखिये) । ; विदुर जीर्थयात्रा इस प्रकार भारतीय युद्ध रोकने में असफलता प्राप्त होने के कारण, यह अत्यधिक उद्विग्न हुआ, एवं युद्ध में भाग न ले कर तीर्थयात्रा के लिए चला गया । विदुर के द्वारा किये गये इस तीर्थ यात्रा का निर्देश केवल भागवत में ही प्राप्त है।
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भारतीय युद्ध के समाप्ति की वार्ता इसे प्रभास क्षेत्र में ज्ञात हुयी। वहीं से यमुना नदी के तट पर जाते ही, इसे उद्भव से श्रीकृष्ण के महानिर्वाण की वार्ता विदित हुई । मृत्यु के पूर्व श्रीकृष्ण ने कवन की 'उद्धव गीता' इसने गंगाद्वार में मैत्रेय से पुनः सुन ली। यह मैत्रेय - विदुः संवाद तत्त्वज्ञान की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण माना जाता है, जिसमें देवहूति कपिलसंवाद, मनुवंशवर्णन, दक्षयज्ञ, ध्रुवकथा, पृथुकथा, पुरंजनकथा आदि विषय शामिल हैं ( भा. ३-४ ) ।
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युधिष्ठिर के राज्यकाल में- हस्तिनापुर के राजगद्दी पर बैठने के उपरांत, युधिष्ठिर ने अपने मंत्रिमंडल की रचना की, जिस समय राज्यव्यवस्था की मंत्रणा एवं निर्णय के मंत्री नाते विदुर की नियुक्ति की गयी थी । युधिष्ठिर के
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