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________________ विदुर पड़े। इसी 'देवाय' शाप की कृष्णछाया वर्ग के समान विदुर के ही सारे जीवन को ग्रस्त करती हुई प्रतीत होती प्राचीन चरित्रकोश महाभारत में वर्णित व्यक्तियों में से कृष्ण, युधिष्ठिर, भीष्म एवं विदुर चार ही व्यक्ति, सत्य के मार्ग से चल कर अपने अपने पद्धति से जीवन का सही अर्थ खोजने का प्रयत्न करते हैं। इनमें से अध्यात्म का एक ब्रह्मज्ञान का अधिक बडिवार न करते हुए भी, सदाचरण, नीति एवं मानवता के परंपरागत पद्धति से, सत्य की खोज करने वाना विदुर सचमुच ही एक धर्मात्मा प्रतीत होता है। विदुर केवल तत्त्वज्ञ ही नहीं, बल्कि श्रेष्ठ राजनीतिज्ञ राजपुरुष भी था । धृतराष्ट्र, दुर्योधन, युधिष्ठिर आदि भिन्न भिन्न लोगों को सलाह देने का कार्य इसने आजन्म किया, परन्तु कभी भी अपने श्रेष्ठ तत्त्वों से एवं सत्यमार्ग से यह युत नही हुआ। धृतराष्ट्र के प्रमुख सलाहगार के नाते, यह उसे सत्य एवं शांति का मार्ग दिखाता रहा, परन्तु यह कार्य इसने इतनी सौम्यता से किया कि, इसके द्वारा कहे गये अप्रिय भाषण सुन कर भी धृतराष्ट्र आजन्म इसका मित्र ही रहा । विदुर का हीनकुडीन एक समस्या - महाभारत में समस्त पात्रों में से केवल विदुर एवं कर्ण ही हीनयोनि के क्यों माने जाते है, यह एक अनाकलनीय समस्या है विदुर के पाण्डु एवं धृतराष्ट्र ये दोनों भाई 'नियोगज ' संतान थे, एवं अपने पिता विचित्रवीर्य की मृत्यु के पश्चात्, अंबालिका एवं अंधिका को व्यास के द्वारा उत्पन्न हुए थे। पांडवों का जन्म भी अपने पिता पांडु के द्वारा नहीं, बल्कि विभिन्न देवताओं के द्वारा हुआ था। ऐसी स्थिति में इन सारे लोगों को हीनं जन्म का दोष न लगा कर, केवल विदुर एवं कर्ण ही इस दोष के शिकार क्यों बने है, यह निश्चित रूप से कहना मुष्किल है। विदुर जन्म - कुरु राजा विचित्रवीर्य की निःसंतान अवस्था में मृत्यु होने के पश्चात्, उसकी माता सत्यवती ने अपनी स्नुषा अंबिका को व्यास से पुत्रप्राप्ति कराने की आज्ञा दी। अंबिका को व्यास से धृतराष्ट्र नामक अंधा पुत्र उत्पन्न हुआ। अतएव सत्यवती ने अंबिका को पुनः एक बार व्यास के पास जाने के लिए कहा । किन्तु उस समय अंबिका ने स्वयं न जा कर, अपनी दासी को व्यास के पास भेज दिया । तदुपरान्त उस दासी को व्यास से एक तेजस्वी एवं बुद्धिमान् पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसका नाम विदुर रखा गया (म. आ. १००.२६ - २७ ) । दासी से उत्पन्न होने के कारण, इसे ' क्षत्ता' भी कहते थे । शुद्रा के गर्भ से ब्राह्मण के द्वारा उत्पन्न होने के कारण, इसको राज्य की प्राप्ति न हुई थी । | इस विरोधाभास के केवल दो ही कारण प्रतीत होते है । एक तो क्षत्रिय स्त्रियों के द्वारा की गयी नियोग की विवाहबाह्य संतति महाभारत काल में धर्म्य मानी जाती थी, एवं दूसरा यह कि, व्यक्ति का कुल उसके पिता के कुल से नहीं, बल्कि माता के कुल से मूल्यांकित किया जाता था। संभवतः इसी मातृप्रधान समाजव्यवस्था के कारण, अंबिका, अंचालिका एवं कुंती आदि के पुत्र उच्चकुलीन क्षत्रिय राजपुत्र कहलाये, एवं विदुर एवं कर्ण जैसे दासीपुत्र एवं सूतपुत्र हीनकुलीन माने गये । 3: पूर्वजन्म- महाभारत में इसके पूर्वजन्म की कथा प्राप्त है। एक बार अणिमांडव्य ऋषि का यमधने से शगड़ा हुआ, जिसमे उसने यमधर्म को शूद्रयोनि में जन्म लेने का शाप दिया। उसी शाप के कारण, यमधर्म ने विदुर के रूप में जन्म लिया था (म. आ. १०१. २५-२७; माण्डव्य देखिये ) । पाण्डवों की सहाय्यता विदुर की प्रवृत्ति या से ही धर्म तथा सत्य की ओर थी। भीष्म ने पूरा एवं पाण्डु के साथ इसका भी पालन-पोषण किया था। इसका पाण्डवों पर असीम स्नेह था, तथा यह उन्हें प्राणों से भी अधिक मानता था। इसने समय समय पर पाण्डवों का साथ दिया, उन्हें सांत्वना दी, तथा मृत्यु से बचाया । भीमसेन जब नागलोग में चला गया था, तब इसने कुंती का धीर बधाया था । दुर्योधन के द्वारा पाण्डवों को लाक्षागृह में जलवा देने की योजना इसी के ही कारण असफल हुई। इसने कौरवों के षड़यंत्र से बचने के लिए, सांकेतिक भाषा में युधिष्ठिर को सारे वस्तुस्थिति का ज्ञान कराया । लाक्षागृह में सुरंग बनाने के लिए इसने खनक नामक अपने दूत को पाण्डवों के पास भेजा था। लाक्षागृह से मुक्तता होने के पश्चात्, एक माँझी की सहाय्यता से इसने उन्हें गंगा नदी के पार पहुचाने के लिए सहाय्यता की थी। लाक्षागृहदाह की वार्ता सुन कर दुःखित हुए भीष्म को, वस्तुस्थिति का ज्ञान इसने ही कराया था (म. आ. १३५१३७ ) । धृतराष्ट्र का सलाहगार वह अत्यंत निःसह राजनीतिशास्त्रश था, जिस कारण अंबे धृतराष्ट्र राजा ने ८४४ -
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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