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________________ विदुर प्राचीन चरित्रकोश विदुर मंत्रिमंडल के अन्य मंत्री निम्न प्रकार थे:-भीम-युवराज युधिष्ठिर इसके आगे खड़े होने पर, यह उसकी ओर एकसंजय-अर्थमंत्री; नकुल-सैन्यमंत्री; अर्जुन-परचक्रनिवा-टक देखने लगा, एवं उसकी दृष्टि में अपनी दृष्टि डाल कर रण मंत्री (म. शां. ४१.८-१४)। एकाग्र हो गया। अपने प्राणों को उसके प्राणों में, तथा युधिष्ठिर के अश्वमेध यज्ञ के लिए धनप्राप्ति के हेतु | अपनी इंद्रियों को उसकी इंद्रियों में स्थापित कर, यह अर्जुनादि पाण्डव हिमालय में धन लाने गये थे। वे उसके भीतर समा गया। इस प्रकार योगबल का आश्रय हस्तिनापुर के समीप आने पर, विदुर ने पुष्पमाला, चित्र- लेकर यह युधिष्ठिर के शरीर में विलीन हो गया (म. आश्र. विचित्र पताका, ध्वज आदि से हस्तिनापुर सुशोभित | ३३.२५)। किया, एवं देवमंदिरों में विविध प्रकारों से पूजा करने की पक्ष के अनुसार, माण्डव्य ऋषि के द्वारा दिये गये आज्ञा दी (म. आश्व. ६९)। धृतराष्ट्र एवं गांधारी से शाप की अवधि समाप्त होते ही, यह साभ्रमती एवं मिलने के पश्चात, पाण्डव विदुर से मिलने आये थे (म. धर्ममती नदियों के संगम पर गया । वहाँ स्नान करते ही आश्व. ७०.७)। शूद्रयोनि से मुक्ति पा कर, यह स्वर्गलोक चला गया अंतिम समय--विदुर के कहने पर धृतराष्ट्र भागीरथी (पन. उ. १४१)। भागवत के अनुसार, इसने प्रभासके पावन तट पर तरत्या करने लगा। इस प्रकार जिस नीति क्षेत्र में देहत्याग किया था (भा. १.१५.४९)। एवं मनःशान्ति का उपदेश इसने धृतराष्ट्र को आजन्म किया, अन्त्यसंस्कार--मृत्यु की पश्चात् विदुर का शरीर वह उसे प्राप्त हुई । अपने जीवित की यह सफल फलश्रुति वृक्ष के सहारे खड़ा था। आँखे अब भी उसी तरह देख कर विदुर को अत्यधिक समाधान हुआ, एवं वल्कल | | निनिमिष थी, किन्तु अब वे चेतनारहित बन गयी थी। परिधान कर यह शतयूपाश्रम एवं व्यासाश्रम में आ कर, | यधिष्ठिर ने विदुर के शरीर का दाहसंस्कार करने का । धृतराष्ट्र एवं गांधारी की सेवा करने लगा। विचार किया, किन्तु उसी समय आकाशवाणी हुयी :--- लालोपरान्त मन वश में कर के इसने घोर तपस्या ज्ञानदग्वस्य देहस्य पुनदोहो न विद्यते।' करना प्रारंभ किया (म. आश्र. २५)। विदुर के . (म. आश्र. ३५.३७*)। यकायक अंतर्धान होने के कारण, युधिष्ठिर अयधिक व्याकुल हुआ। उसने धृतराष्ट्र से विदुर का पता पूछते (ज्ञान से दग्ध हुए शरीर को अंतिम दाहकर्म की हुए कहा, 'मेरे गुरु, माता, पिता, पालक एवं सखा सभी! जरूरी नही होती है)। एक विदुर ही है । उसे मैं मिलना चाहता हूँ। ____ इससे प्रतीत होता है कि, महाभारतकाल में संन्या इस पर धृतराष्ट्र ने अरण्य में घोर तपस्या में संलग्न | सियों का दाहकर्म धर्मविरुद्ध माना जाता था। जहाँ हुए विदुर का पता युधिष्ठिर को बताया। वहाँ जा कर भीष्म जैसे सेनानी की लाश रेशमी वस्त्र एवं मालाएँ युधिष्ठिर ने देखा, तो मुख में पत्थर का टुकडा लिये जटा- पहना कर चंदनादि सुगंधी काष्ठों से जलायी गयी, वहाँ धारी, कृशकाय विदुर उसे दिखाई पडा । यह दिगंबर विदुर जैसे यति का मृतदेह बिना दाहसंस्कार के ही अवस्था में था, एवं वन में उड़ती हुई धूल से इसका शरीर | वन में छोड़ा गया (म. अनु. १६८.१२-१८)। आवेष्टित था (म. आश्र. ३३. १५-२०)। परिवार--देवक राजा की 'पारशवी' कन्या से मृत्यु--शुरु से ही विदुर की यही इच्छा थी कि, विदुर का विवाह हुआ था। अपनी इस पत्नी से मृत्यु के पश्चात् इसके अस्तित्व की कोई भी निशानी बाकी विदुर को कई पुत्र भी उत्पन्न हुए थे, किन्तु विदुर के न रहे । इसने कहा था, 'जिस प्रकार प्रज्ञावान् मुनियों पत्नी एवं पुत्रों के नाम महाभारत में अप्राप्य है (म. के कोई भी पदचिह्न भने पर नही उठते है, ठीक उसी | आ. १०६.१२-१४)। प्रकार के मृत्यु की कामना मैं मन में रखता हूँ। २. एक वेश्यागामी ब्राह्मण, जिसकी पत्नी का नाम मृत्यु के संबंध में विदुर की यह कामना पूरी हो गयी, | बहुला था। अपनी पत्नी के द्वारा किये गये पुण्यों के एवं विदुर को महाभारत के सभी व्यक्तियों से अधिक कारण, इसे मुक्ति प्राप्त हुई (बहुला देखिये)। सुंदर मृत्यु प्राप्त हुई। ____३. पांचाल देश का एक क्षत्रिय, जो सोमवती अमावस्या जब युधिष्ठिर विदुर के पीछे वन में गया, तब किसी के दिन प्रयाग के गंगासंगम में स्नान करने के कारण, वृक्ष का सहारा ले कर यह खड़ा हो गया । पश्चात् | ब्रह्महत्या के पातक से मुक्त हुआ (पद्म. उ. ९१-९२)। ८४६
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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