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वासिष्ठ
प्राचीन चरित्रकोश
वाहीक
लिए प्रयुक्त किया गया है:- इंद्रप्रमति, उपमन्यु, २. एक वास्तुशास्त्रज्ञ, जिसका वास्तुशास्त्रविषयक ग्रन्थ कर्णश्रुत, चित्रमहस् , चैकितानेय, द्युम्नीक, प्रथ, मन्यु, | उपलब्ध है (मत्स्य. २५२.३)। मृळीक, रोहिण, वसुक्र, वृषगण, व्याघ्रपाद, शक्ति, एवं | ३. पुंड देश के वासुदेव नामक राजा का नामान्तर सात्यहव्य (ऋ. ९. ९७; तै. सं. ६.६.२.१; का. सं. | (पौण्ड्रक वासुदेव देखिये )। ३४.१७; तै. आ. १.१२.७)।
वास्तु-विश्वामित्र कुलोत्पन्न एक गोत्रकार। २. एक आचार्यसमूह (जै. उ. ब्रा. ३.१५.२)। वास्तुपश्य-एक ब्राह्मण (जै. ब्रा. ३.१२०)। ३. वसिष्ठपुत्र शक्ति का नामान्तर ( शक्ति देखिये)। | पाठभेद-वास्तुपस्य'।
वासिष्ठ मित्रय-एक आचार्य, जो व्यास के छः वास्य--एक आचार्य, जो विष्णु के अनुसार व्यास पुराणप्रवक्ता शिष्यों में से एक था (वायु. ६१.५६: की ऋशिष्यपरंपरा में से वेदमित्र नामक आचार्य ब्रह्मांड. २.३५.६५)।
का शिष्य था । इसे वत्स, वात्स्य, एवं मत्स्य नामान्तर वासुकि--नागों का एक राजा, जो कश्यप एवं कद्र प्राप्त थ ।
ट प्राप्त थे (व्यास देखिये)। के पुत्रों में से एक था। इसकी पत्नी का नाम शतशीर्षा
वाहन--एक आचार्य, जो वायु के अनुसार व्यास था (म. उ. ११५.४६०*)। जरत्कारु ऋषि की पत्नी
की सामशिष्य परंपरा में से हिरण्यनाभ नामक आचार्य जरत्कारु इसकी बहन थी (म. आ. ३५.३८९%)।
का शिष्य था । ब्रह्मांड में इसे कृत का शिष्य कहा गया है देवासुरों के समुद्रमंथन के समय, यह मंथनदण्ड की
(ब्रह्मांड. २.३५.५१)। रस्सी बन गया था (म. आ. १६-१२)। इसका
वाहनप-गौरपराशरकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । इसे निवासस्थान 'नागधन्वातीर्थ' में था, जहाँ देवताओं ने
'वाहयौज' नामान्तर भी प्राप्त था। नागराज के पद पर इसका अभिषेक किया था। धृतराष्ट्र
| वाहिक--एक वेदवेत्ता ब्राह्मण, जो दुःस्थिति के कारण नामक नाग ने इसे विष्णुपुराण कथन किया था, जो
नमक बेच कर अपनी जीविका चलाता था। इसने जीवन भागे चल कर इसने वत्स को कथन किया (विष्णु. ६.
में अनेकानेक पापकर्म किये । अंत में यह एक शेर के ८.४६)।
द्वारा मारा गया। किंतु इसका मांस गंगा नदी में गिरने के यह शिव का अनन्य भक्त था, एवं शिव के ही शरीर कारण, इसका उद्धार हुआ (स्कन्द. २.४.१-२८)। पर निवास करता था। त्रिपुरदाह के समय, यह शिव
वाहिनी--सोमवंशीय कुरु राजा की पत्नी, जिसे के धनुष की प्रत्यंचा, एवं उसके रथ का कबर बन गया। आभष्वत् आदि पांच पुत्र उत्पन्न हुए थे (म. आ. ८९. था (म. द्रो. परि. १.२५.१२; क. २४.२५८%)।
सर्पसत्र-जनमेजय के सर्पसत्र में इसके निम्नलिखित वाहिनीपति--अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । पंद्रह कुल जल कर भस्म हुए:-१. कोटिश; २. मानस; वाहीक-एक लोकसमूह, जो पंजाब प्रदेश में विपाशा ३. पूर्ण; ४. शल; ५. पाल; ६. हलीमक; ७. पिच्छल | नदी के तटपर स्थित था (म. क. ४४.२०-२६; भी. ८. कौणप; ९. चक्र; १०. कालवेगः ११. प्रकालनः १२. | १०.४५)। महाभारत में इन्हे, 'माद्र,' 'जातिक' हिरण्यबाहुः १३. शरण; १४. कक्षक एवं १५. काल- | 'आरट्ट' एवं 'पंचनद' आदि नामान्तर दिये गये हैं। दन्तक (म. आ. ५२.५-६)।
वाहीक का शब्दशः अर्थ 'बाहर के' होता है। आस्तीक नामक ऋषि इसका भतिजा था. जिसने इसके | उत्तर पंजाब प्रदेश में हिमालय की तलटही में दरद लोगों बाकी कुलों को संहार से बचा लिया।
के नजदीक रहनेवाले 'वाहलिक' लोग, सरस्वती नदी वासुक-एक पैतृक नाम, जो निम्नलिखित आचार्यों | के कारण, मध्यदेश में रहनेवाले आर्य लोगों से अलग के लिए प्रयुक्त किया गया है:-वसुकरण (ऋ. १०.६५); | हो गये । इसी कारण, इन्हें वाहीक नाम प्राप्त हुआ। वसुकृत् (ऋ. १०.२०)।
आगे चल कर पंजाब में रहनेवाले कंबोज, यवन, दरद वासुदेव-श्रीविष्णु के श्रीकृष्ण नामक आठवें अव- | आदि सारे लोगों को वाहीक सामूहिक नाम प्राप्त तार का नामान्तर ( कृष्ण देखिये) भगवान् विष्णु के | हुआ। उपासक वासुदेव कृष्ण के रूप में ही प्रायः उसकी | महाभारत में प्राप्त कर्ण-शल्यसंवाद में इन लोगों उपासना करते है (विष्णु देखिये)।
| की कर्ण ने कटु आलोचना की है । शल्य स्वयं मद्र एवं
प. यह शिव
आदि पाँच पुत्र उत्प
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