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________________ वाल्मीकि प्राचीन चरित्रकोश वासिष्ठ डॉ. याकोी-६ वी शताब्दी ई. पू; २. डॉ. मॅक्डोनेल (१) उदिच्य पाठ, जो निर्णयसागर प्रेस एवं ६ वी शताब्दी ई. पू.; ३. डॉ. मोनियर विल्यम्स-५ वी गुजराती प्रिन्टिग प्रेस, बंबई के द्वारा प्रकाशित है। इस शताब्दी ई. पू.; ४. श्री. चिं. वि. वैद्य-५ वी शताब्दी पर नागोजीभट्ट के द्वारा ' तिलक टीका' प्राप्त है, जो ई. पू. ५. डॉ. कीथ-४ शताब्दी ई. पू.; ६. डॉ. रामायण की सब से विस्तृत एवं उत्कृष्ठ टीका मानी विंटरनित्स-३ री शताब्दी ई. पू.। जाती है। उपर्युक्त विद्वानों में से, डॉ. याकोबी, डॉ. विल्यम्स, (२) दाक्षिणात्य पाठ, जो मध्वविलास बुक डेपो, श्री. वैद्य, एवं डॉ. मॅक्डोनेल वाल्मीकि के 'आदिकाव्य' कुंभकोणम् के द्वारा प्रकाशित है । इस संस्करण पर की रचना बौद्ध साहित्य के पूर्वकालीन मानते हैं । किंतु श्रीमध्वाचार्य के तत्वज्ञान का काफी प्रभाव प्रतीत होता बौद्ध साहित्य में जहाँ रामकथा संबंधी स्फुट आख्यान है। फिर भी, यह संस्करण 'उदिच्य पाट' से मिलताआदि का निर्देश प्राप्त है, वहाँ वाल्मीकि रामायण का जुलता है। निर्देश अप्राप्य है। इससे उस ग्रन्थ की रचना बौद्ध (३) गौडीय पाठ, जो डॉ. जी. गोरेसियो के द्वारा साहित्य के उत्तरकालीन ही प्रतीत होती है। संपादित, एवं कलकत्ता संस्कृत सिरीज में १८४३-१८६७ पाणिनि के 'अष्टाध्यायी' में भी वाल्मीकि अथवा ई. के बीच प्रकाशित हो चुका है। वाल्मीकि रामायण का निर्देश अप्राप्य है। किंतु उस (४) पश्चिमोत्तरीय ( काश्मीरी) पाठ, जो लाहोर ग्रंथ में कैकेयी, कौसल्या, शूर्पणखा आदि रामकथा से के डी. ए. व्ही. कॉलेज के द्वारा १९२३ ई. में प्रकाशित संबंधित व्यक्तियों का निर्देश मिलता है (पां. सू. ७.३.२, | किया गया है। ४.१.१५५, ६. २.१२२)। इससे प्रतीत होता है कि, ग्रन्थ--' वाल्मीकि रामायण' के अतिरिक्त इसके पाणिनि के काल में यद्यापि रामकथा प्रचलित थी, फिर भी नाम पर निम्नलिखित ग्रंथ प्राप्त है:--१. वाल्मीकिसूत्रः वाल्मीकि रामायण की रचना उस समय नही हुई थी। २. वाल्मीकि शिक्षा; ३. वाल्मीकिहृदयः ४. गंगाष्टक . महाभारत में प्राप्त रामायण के उद्धरण-महाभारत ( C)। .एवं 'वाल्मीकि रामायण' में से रामायण ही महाभारत से बाल्मीकिमार्गव--एक ऋषि, जो वरुण एवं चर्षणी पूर्वकालीन प्रतीत होता है। कारण कि, महाभारत में के दो पुत्रों में से एक था (भा. ६.१८.४)। इसके भाई वाल्मीकि के कई उद्धरण प्राप्त है, पर रामायण में महा- का नाम भृगु था। केवल भागव नाम से ही इसका निर्देश भारत का निर्देश तक नहीं आता। अन्यत्र प्राप्त है ( म. शां. ५७.४०)। सात्यकि ने भूरिश्रवम् राजा का प्रायोपविष्ट अवस्था महाभारत में इसे एवं च्यवन भार्गव ऋषि को एक ही में शिरच्छेद किया। अपने इस कृत्य का समर्थन देते माना गया है, एवं इसीके द्वारा 'रामायण' की रचना हए, सात्यकि वाल्मीकि का एक श्लोकाध ( हनुमत्- किये जाने का निर्देश वहाँ प्राप्त है । किंतु वह सही नही इंद्रजित् संवाद, वा. रा. यु. ८१.२८) उद्धृत करते प्रतीत होता है ( वाल्मीकि आदिकवि देखिये)। हुए कहता है : वासना-अर्क नामक वसु की पत्नी (भा.६.६.१३)। अपि चायं पुरा गीतः श्लोको वाल्मीकिना भुवि । वासव--इंद्र का नामान्तर (ब्रह्मांड. २.१८.४४ )। वासवी--सत्यवती (मत्स्यगंधा) का पैतृक नाम न हन्तव्या स्त्रियश्चेति यद्रवीषि प्लवंगम ॥ सर्वकालं मनुष्येण व्यवसायवता सदा ॥ (म. आ. ५७.५७ ) । यह उपरिचर वसु की कन्या थी, जिस कारण इसे यह पैतृक नाम प्राप्त हुआ। इसकी पीडाकरममित्राणां यत्स्यात्कर्तव्यमेव तत् ॥ माता का नाम अद्रिका था, जो स्वयं एक मत्स्यी थी। (म. द्रो. ११८.४८.९७५--९७६*)। इसका विवाह पराशर ऋषि से हुआ था, जिससे इसे महाभारत में अन्यत्र रामायण को प्राचीनकाल में रचा | व्यास नामक पुत्र उत्पन्न हुआ (वायु. १.४०)। गया काव्य ( पुरागीतः ) कहा गया है (म. व.२७३.६)। वासाश्व-एक मंत्रद्रष्टा ऋषि, जो वैश्य जाति में वाल्मीकि रामायण के संस्करण-- इस ग्रंथ के संप्रति | उत्पन्न हुआ था (मत्स्य. १४५.११६)। चार प्रामाणिक संस्करण उपलब्ध हैं, जिनमें १०-१५ | वासिष्ट-एक पैतृक नाम, जो ऋग्वेद में एवं उत्तरसगी से बढ़ कर अधिक विभिन्नता नही हैं:- कालीन वैदिक संहिताओं में निम्नलिखित आचार्यों के ८३७
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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