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वामदव
प्राचीन चरित्रकोश
वामदेव
१०)। इसका शल राजा से झगड़ा हुआ था (शल. से ही इसने इंद्र के साथ तत्त्वज्ञान के संबंधी चर्चा की ३. देखिये)।
(ऋ. ४.१८; वेदार्थदीपिका)। ६. एकादश रुद्रों में से एक ।
ऋग्वेद में अन्यत्र वर्णन है कि, योगसामर्थ्य से. श्येन ७. गुवाहासिन् नामक शिवावतार का एक शिष्य । | पक्षी का रूप धारण कर, यह अपनी माता के उदर से
८. एक त्रिशूलधारी शिवावतार, जो मनु एवं शतरूपा बाहर आया (ऋ. ४.२७.१)। ऐतरेय उपनिषद के के सात पुत्रों में से एक था। इसके मुख, हाथ, जंघा अनुसार,इस के जन्म के पूर्व इसे अनेकानेक लोह के काराएवं पावों से क्रमशः ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्रों की गार में बंद करने का प्रयत्न किया गया, जिन्हे तोड कर उत्पत्ति हुई (मस्य. ४.२७.३०)। आगे चल कर यह श्येन पक्षी की भाँति पृथ्वी पर अवतीर्ण हआ (ऐ इसका सृष्टि के उत्पत्ति का कार्य ब्रह्मा के द्वारा स्थगित उ. ४.५)। वामदेव के जन्म के संबंधी सारी कथाएँ किया गया, जिस कारण इसे 'स्थाणु ' नाम प्राप्त हुआ रुपकात्मक प्रतीत होती है, जहाँ गर्भवास को काराग्रह (मत्स्य. ४.३१)।
कहा गया है। शिव के इस अवतार को पाँच मुख थे । बृहस्पति-पत्नी संबंधित व्यक्ति --ऋग्वेद के चतुर्थ मंडल के अधिकांश तारा का हरण सोम के द्वारा किये जाने पर, इसने सोम सूक्तों में सुदास, दिवोदास, संजय, अतिथिग्व, कुत्स आदि से युद्ध किया था (मत्स्य २३.३६ )। इसने पार्वती को राजाओं का निर्देश प्राप्त है, जिससे प्रतीत होता है कि. 'शिवसहस्त्र' नाम का पाठ सिखाया था (पद्म. भू.| इसका इन राजाओं से घनिष्ठ संबंध था। २५४)।
बृहद्देवता में इंद्र एवं वामदेव के संबंध में कई ९. राम दाशरथि के सभा का एक ऋषि ।
असंगत कथाओं का निर्देश प्राप्त हैं, जिनका सही अर्थ वामदेव गोतम--एक आचार्य एवं वैदिक सूक्तद्रष्टा,
समझ में नहीं आता है। एक बार जब यह कुत्ते की जिसे अपनी माता के गर्भ में ही आत्मानुभूति प्राप्त
अंतडियाँ पका रहा था, तो इंद्र एक श्येनपक्षी के रूप में हुई थी। ऋग्वेद के प्रायः समग्र चौथे मंडल का यह
इसके सम्मुख प्रकट हुआ था (बृहद्दे. ४.१२६)। इसी प्रणयिता कहा जाता है | इस मंडल के केवल ४२-४४
ग्रंथ में प्राप्त अन्य कथा के अनुसार, इसने इंद्र को
परास्त कर अन्य ऋषियों को उसका विक्रय किया था सूक्तों का प्रणयन सदस्यु, पुरुमीहळ एवं अजमीहळ के
(बृहद्दे. ४.१३१)। सीग ने बृहद्देवता में प्राप्त इन द्वारा किया गया है। बाकी सारे सूक्त वामदेव के द्वारा
कथाओं को ऋग्वेद में प्राप्त इसकी जन्मकथाओं से मिलाने प्रणीत ही है। किन्तु इस मण्डल में केवल एक ही स्थान पर
का प्रयत्न किया है (सीग, सा. ऋ. ७६)। इसका प्रत्यक्ष निर्देश प्राप्त है (ऋ. ४.१६.१८)। अन्य वैदिक ग्रंथों में भी इसे ऋग्वेद के चतुर्थ मंडल का प्रणयिता | तत्त्वज्ञान--पुनर्जन्म के संबंध में विचार करनेवाले कहा गया है (का. सं. १०.५; मै सं. २.१.१३; ऐ. आ. तत्वज्ञों में वामदेव सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। मनु एवं सूर्य २.२.१)।
नामक अपने दो पूर्वजन्म इसे ज्ञात हुए थे, एवं माता के गर्भ जन्म-वैदिक ग्रंथ में इसे सर्वत्र गोतम ऋषि का पुत्र में स्थित अवस्था में ही इसे सारे देवों के भी पूर्वजन्म कहा गया है (ऋ. ४.४.११)। इसी कारण यह स्वयं | ज्ञात हुए थे। को 'गोतम' कहलाता था।
| पुनर्जन्म के संबंधी वामदेव का तत्त्वज्ञ न 'जन्मत्रयी' इसके जन्म के संबंधी अस्पष्ट विवरण वैदिक साहित्य | नाम से सुविख्यात है, जिसके अनुसार हर एक मनुष्य में प्राप्त है (ऋ. ४.१८:२६.१, ऐ. आ. २.५)। अपने | के तीन जन्म होते है:--पहला जन्म, जब पिता के शुक्रजन्म के संबंधी ज्ञान इसे माता के गर्भ में ही प्राप्त हुआ। जंतु का माता के शोणित द्रव्य से संगम होता है; दूसरा था। तब इसने सोचा कि, अन्य लोगों के समान मेरा जन्म | जन्म, जब माता की योनि से बालक का जन्म होता है। न हो। इसी कारण इसने अपनी माता का उदर विदीर्ण | तीसरा जन्म जब मृत्यु के बाद मनुष्य को नया जन्म प्राप्त कर बाहर आने का निश्चय किया। इसकी माता को यह । होता है। अमरत्व प्राप्त करने की इच्छा करनेवाले बात ज्ञात होते ही, उसने अदिति का ध्यान किया । उस | साधक कों के लिए, वामदेव का यह तत्वज्ञान प्रमाणभूत समय इंद्र के साथ अदिति वहाँ उपस्थित हुई, जहाँ गर्भ | माना जाता है।
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