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________________ वानर प्राचीन चरित्रकोश वानरसमूह ब्रह्मांड में वानरों के ग्यारह प्रमुख कुछ दिये हैं, जिनके नाम निम्नप्रकार हैं: - द्वीपिन्, शरभ, सिंह, व्याय, नील, शल्यक, ऋ, मार्जार, डोहास, बानर मायाय वे सारे वानर निष्किंधा में रहते थे, एवं उनका राथ बालिन् था (ब्रह्मांड २.७.१७६९ २२० ) । " वानरवंश ब्रह्मांड में सुग्रीव केसरी एवं अभि इन चार प्रमुख वानरों के वंश निम्नप्रकार दिये गये हैं :(१) शास्त्र (पत्नी विरजात्या चारु- ऋक्ष हासिनी ) - महेंद्र - सुग्रीव एवं वालिन् ( पत्नी सुषेणकन्या तारा) - अंगद (कन्या)- ध्रुव (ब्रह्मोद. ३.७.२४६ २७५) । (२) सुग्रीवशात्राः ऋ४ सुप्रीव ( पानी पनसकन्या रुमा ) - तीन पुत्र । (३) केसरीशाखा : - केसरिन् ( पत्नी कुंजरकन्या अंजना ) - हनुमत्, श्रुतिमत्, केतुमत्, मतिमत्, धृति - मत् । (४) अग्निशाखा: -- अग्नि-नल-तार, कुसुम, पनस, गंधमादन, रूपक्षी, विभव, गवय, विकट, सर, सुपेण, सधनु, सुबंधु, शतदुंदुभि आदि (ब्रह्मांड. ३.७.२४५ । यामदेव " सिंघभूम की भुईयाँ जाति के लोक अपना वंश 'पवन अथवा 'हनुमत् ' बताते हैं (बुल्के, रामकथा पृ. १२११२२ ) । चान हुए पृथक देवों में से एक। वान्दव दुवस्यु -- एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०. १०० ) । बाम श्रीकृष्ण एवं मद्रा के पुत्रों में से एक (भा. १०.६१.१७) । जैन ग्रन्थों में- इन ग्रंथों में राक्षस एवं वानर इन दोनों को एक ही विद्याधरवंश की विभिन्न शाखाएँ मानी नयी हैं। वे दोनों जातियाँ मानववंशीय ही थी, किंतु उन्हे आकाशगमित्व, कामरूपित्त्व आदि ऐंद्रजालिक दिवाएँ अवगत थी। बागरवंशीय विद्याधरों की ध्वजाओं तथा महलों तथा के शिखरों पर वानर की प्रतिमा रहती थी। २. एकादश रुद्रों में से एक, जो भूत एवं सरूपा का पुत्र था ( मा.६.६.१७) । वामकक्षायण एक आचार्य, जो बात्स्य एवं शांडिल्य का शिष्य था (श. बा. १०.५.६.९; बृ. उ. ६.५.४. काव्य ) । वामदेव -- एक सुविख्यात वैदिक सूक्तद्रष्टा (वामदेव गोतम देखिये) । २. एक ऋषि जो अंगिरम् एवं मुरु के पुत्रों में से एक था ( ब्रह्मांड. ३.१ ) । मत्स्य में इसकी माता का नाम स्वराज दिया गया है। यह अंगिराकुल का गोत्रकार मंत्रकार एवं ऋषि था। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में यह उपस्थित था । स्यमंतपंचक्र क्षेत्र में यह श्रीकृष्ण से मिलने आया था ( भा. १०.८४. ५) | इसके द्वारा दिये गये भस्म से एक ब्रह्मराक्षस का उद्धार हुआ था ( स्कंद. ३.३.१५-१६ ) । रथन्तरकल्प में, मेरु पर्वत के कुमारशिखर पर इसका स्कंद से संवाद हुआ था ( शिव के. २२) । इसने बकुलासंगमतीर्थ पर तपस्या की थी (पद्म. उ. १२८) | मनुस्मृति में इसकी एक कथा प्राप्त है, जिसके अनुसार एक बार इसने क्षुधार्त होने के कारण, कुत्ते का माँस खाने की इच्छा प्रकट की थी। किन्तु यह पापकर्म आपद्धर्म में किये जाने के कारण इसे कुछ दोष न लगा (मनु. १०.१०६ ) । अनुसार, ये सच वानर कौन थे - चिं. वि. वैद्य के मुच ही वानर के समान दिखते थे, अतः इन्हे वानर नाम प्राप्त हुआ था। कई अन्य अभ्यासकों के अनुसार, आजकल के आदिवासियों के समान ये लोग वानर, ऋक्ष, गीध आदि की पूजा करते थे। इसी कारण इन विभिन्न प्राणियों की पूजा करनेवाले आदिवधियों को क्रमशः वानर, ऋक्ष ( जांचबत् ), एवं गीध ( जटायु, संपाति ) नाम प्राप्त हुए। रे. बुल्के के अनुसार, रामकथा में निर्दिष्ट वानर विंध्यप्रदेश एवं मध्यभारत में रहनेवाली अनार्थ जातियाँ थी छोटा नागपूर में रहनेवाली उराओं तथा मुण्डा जातियों में, आज भी तिग्गा, हलमान, बजरंग, गड़ी नामक गोत्र प्राप्त है, जिन सब का अर्थ 'बंदर' ही है। ૮૩ ३. एक ऋषि, जो अथर्वन् अंगिरस् का पुत्र था । इसके पुत्रों के नाम असिज एवं बृहदुक्थ थे (वायु. ६५. १०० ) | यह तपस्यान परशुराम से मिलने गया था ( ब्रह्मांड. ३.१.१०५ ) । ४. ( स्वा. प्रिय. ) एक राजा, जो कुशद्वीप के हिरण्यरेतस् राजा का पुत्र था ( मा. ५.१०.१४) । ५. मोदापूर देश का एक राजा, जिसे अर्जुन ने अपने उत्तरदिग्विजय के समय जीता था ( म. स. २४.
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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