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वातवेग
प्राचीन चरित्रकोश
२. गरुड़ की प्रमुख संतानों में से एक ( म. उ. ९९ दुर्योधन- भीम द्वंद्वयुद्ध ( म. श. ५४ ); ४. दुर्योधन की मृत्यु (म.श. ५७ ५९ ) ।
१० ) ।
आगे चल कर वातिकों के द्वारा ही, दुर्योधनवच की यात अश्वत्थामन्, कृप एवं कृतवर्मन् को प्राप्त हुई ( म.रा. ६४.१ ) | संभव है, संजय भी वातिकों में से एक था। २. स्कंद का एक सैनिक (म, श. ४४.६२ ) । वात्सि - सर्पि नामक आचार्य का पैतृक नाम । वत्स का वंशज होने से इसे यह नाम प्राप्त हुआ होगा ( ऐ.ब्रा. ६.२४.१६ ) ।
वातस्कंध पुराणों में निर्दिष्ट एक देवता समूह, जिस में सात मरुत् गणों के देवता समविष्ट हैं ( ब्रह्मांड. २.५. ७८-८०, मस्त देखिये) ।
२. इन्द्रसभा का एक महर्षि ( म. स. ७.१२ ) । वातापि - एक असुर, जो हाद नामक असुर का पुत्र, एवं इल्वल नामक असुर का छोटा भाई था । अगस्त्य ऋषि के द्वारा इसका एवं इल का गर्वहरण होने की कथा महाभारत में प्राप्त है ( म. व. ९०.४९३० ) । पुराणों में इसे विप्रचित्ति राक्षस का पुत्र कहा गया है ( मत्स्य. ६.२६, विष्णु. १.२१.११ ) ।
ब्रह्मांड में इसे तेरह सैंहिकेय असुरों में से एक कहा गया है, एवं परशुराम के द्वारा इसका वध होने की कथा वहाँ प्राप्त है (ब्रह्मांड. २.१.१८-२२ ) ।
२. एक राक्षस, जो विप्रचित्ति एवं सिंहिका के पुत्रों में से एक था । परशुराम ने इसका वध किया ( ब्रह्मांड. ३. ६.१८-२२ ) ।
३. एक दानव, जो कश्यप एवं दनु के पुत्रों में से एक था।
वातायन - उल नामक वैदिक सूक्तद्रष्टा का पैतृक नाम ।
वातावत नृपशमन नामक आचार्य का पैतृक नाम । वात्सतरायण अंगिरा कुलोत्पन्न एक गोत्रकार । वात्सप्र - एक व्याकरणकार, जिसके 'व' कार एवं ' व ' कार के सूक्ष्म उच्चारण के संबंधित मतों का निर्देश ‘तैत्तिरीय-प्रातिशाख्य' में प्राप्त है ( तै. प्रा. १०.२३)
२. एक आचार्य, जो कुश्रि नामक आचार्य का शिष्य था। इसके शिष्य का नाम शांडिल्य था (बृ. उ. ६.५ ४ काण्व.)।
३. एक आचार्य, शांडिल्य नामक आचार्य का शिष्य था। इसके शिष्य का नाम गौतम था (बृ. उ. २ ६.३, ४.६ काण्व . ) । शतपथब्राह्मण में भी इसका निर्देश प्राप्त है ( रा. बा. ९.५.१.६२; १०.६.५.९) ।
४. एक ऋषि जो वास्य नामक ऋषि का शिष्य था। यह जनमेजयसर्पसत्र के समय उपस्थित था ( म. आ. ४८.९) । शरशय्या पर पड़े हुए भीष्म से भी यह मिलने आया था। इसके नाम पर कई ज्योतिषशास्त्रविषयक ग्रंथ उपलब्ध हैं ( C. c.)।
दुर्योधन एवं युधिष्ठिर ने क्रमशः 'वैष्णवयज्ञ' एवं राजसूय यज्ञ किये। इन दोनों यज्ञसमारोह में वातिक लोग उपस्थित थे, जिन्होंने सारे कुरुराज्य में वृत्त फैलाया कि, युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के हिसाब में दुर्योधन का वैष्णव यज्ञ बिलकुल फीका, अतएव अयशस्वी था (म. व. २४३.३-४ ) ।
५. एक आचार्य, जो वायु के अनुसार व्यास की यजुः शिष्यपरंपरा में से याज्ञकल्क्य का वाजसनेय शिष्य था । ६. एक आचार्य, जो भागवत के अनुसार व्यास की ऋशिष्य परंपरा में शाकल्य नामक आचार्य का शिष्य था ( व्यास देखिये) ।
'भारतीय युद्ध के निम्नलिखित महत्वपूर्ण प्रसंगों में भी वातिकों के उपस्थित होने का निर्देश प्राप्त है :- १. जयद्रथवध के समय हुआ संकुलयुद्ध ( म. द्रो. १२०.७२ ); २. अश्वत्थामापद ( म. द्रो. १३५.२९) २.
७. भृगुकुत्पन्न एक गोत्रकार पाठभेद-'वत्स'। वात्स्यायन -- एक आचार्य, जो 'वात्स्यायन कामसूत्र'' नामक सुविख्यात कामशास्त्रविषयक ग्रंथ का रचयिता था ।
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वात्स्यायन
वातिक- एक लोकसमूह, जो भारतीय युद्ध के काल में वृत्तनिवेदन एवं वृत्तप्रसारण का काम करता था ।
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वात्सीपुत्र एक आचार्य, जो पाराशरीपुत्र नामक आचार्य का शिष्य था (१.६.५.२ काव्य ) | अन्य इसे भारद्वाजी पुत्र का शिष्य कहा गया है (बृ. उ. ६.४. ३१ माध्यं . ) । इसके शिष्य का नाम पाराशरीपुत्र ही था। वत्स के किसी स्त्री वंशज का पुत्र होने के कारण, इसे 'वात्सीपुत्र' नाम प्राप्त हुआ होगा ।
वात्सीमांडवीपुत्र एक आचार्य, जो पाराशरीपुत्र नामक आचार्य का शिष्य था । इसके शिष्य का नाम भारद्वाजी पुत्र था .. ६.४.३० माध्य.) ।
वात्स्य -- एक आचार्य (सां. आ. ८.३; बाध्व देखिये) । ऐतरेय आरण्यक में इसे बाध्य कहा गया है।