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________________ वात्स्यायन प्राचीन चरित्रकोश वात्स्यायन विष्णुशर्मन्कृत पंचतंत्र में वात्स्यायन एवं अश्वशास्त्रज्ञकार उपर्युक्त ग्रंथकारों के अतिरिक्त, वात्स्यायन के कामसूत्र शालिहोत्र को वैद्यकशास्त्रज्ञ कहा गया हैं । मधुसुदन | में निम्नलिखित पूर्वाचार्यों का, एवं उनके विभिन्न ग्रंथों का सरस्वतीकृत 'प्रस्थानभेद' में भी वात्स्यायनप्रणीत | निर्देश प्राप्त है:-इत्तकाचार्य-वैशिक; चारायणाचार्य कामसूत्र को आयुर्वेदशास्त्रान्तर्गत ग्रंथ कहा गया हैं। । -साधारण अधिकरण; सुवर्णनाभ-सांप्रयोगिक; घोटकमुख -कन्यासंप्रयुक्त; गोनीय-भार्याधिकारिक; गोणिकापुत्र व्यक्तिपरिचय--वात्स्यायन यह इसका व्यक्तिनाम न हो कर गोत्रनाम था। सुबन्धु के अनुसार, इसका सही - पारदारिक; कुचुमार-औपनिषदिक । नाम मल्लनाग था । यशोधर के द्वारा लिखित 'काम- | ____ इस ग्रंथ की निम्नलिखित टीकाएँ विशेष सुविख्यात सूत्र' के टीका में भी इसे आचार्य मल्लनाग कहा गया है:-१. वीरभद्रकृत 'कंदर्पचूडामणि, '२. भास्कर नृसिंहै। वात्स्यायन स्वयं ब्रह्मचारी एवं योगी था, ऐसा काम हकृत 'कामसूत्रटीका,' ३. यशोधरकृत ' कंदर्पचूडामणि'। सूत्र के अंतिम श्लोक से प्रतीत होता है। कामसूत्र में वेबर के अनुसार, सुबंधु एवं शंकराचार्य के द्वारा भी अवंति, मालव, अपरान्त, सौराष्ट्र, महाराष्ट्र एवं आंध्र 'कामसूत्र' पर भाष्य लिखे गये थे। आदि देशों के आचारविचारों के काफी निर्देश प्राप्त | कामसूत्र-वात्स्यायन का 'कामसूत्र' सात 'अधिकहैं, जिनसे प्रतीत होता है कि, यह पश्चिम या दक्षिण । रणों' (विभागों) में विभाजित है, एवं उसमें कामशास्त्र भारत में रहनेवाला था। से संबंधित तीन मुप्रख उपांगों का विचार किया गया कामसूत्र के 'नागरक वृत्त' नामक अध्याय में नागर है:--१. कामपुरुषार्थ का आचारशास्त्र, जिसमें धर्म, नामक एक नगर का निर्देश प्राप्त है । यशोधर के अनुसार, अर्थ एवं मोक्ष इन तीन पुरुषार्थों से अविरोध करते हुए कामसूत्र में निर्दिष्ट 'नागर' पाटलिपुत्र है। अन्य कई भी कामपुरुषार्थ का आचार एवं उपभोग किस प्रकार किया जा सकता है, इसका दिग्दर्शन किया गया है। अभ्यासक उसे जयपूर संस्थान में स्थित नागर ग्राम २. शृंगाररसशास्त्र, जिसमें स्त्रीपुरुषों को उत्तम रतिसुख मानते हैं। किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है इसका वर्णन प्राप्त कालनिर्णय--वात्स्यायन का काल ३०० ई. स. माना है। ३. तत्कालीन भारत में प्राप्त कामशास्त्रविषयक जाता है । वेबर के अनुसार, इसका 'वात्स्यायन' नाम आचारविचारों का वर्णन, जिसमें विभिन्न देशाचार, लाट्यायन, बौधायन जैसे सूत्रकालीन आचार्यों से मिलता 'वैशिक' (वेश्याव्यवसाय) एवं 'पारदारिक' (स्त्री पुरुषों जुलता प्रतीत होता है (वेबर पृ. १६४)। कौटिल्य अर्थ के विवाहबाह्यसंबंध ) आदि विषयों की चर्चा की गयी है। शास्त्र एवं कामसूत्र की निवेदनपद्धति में काफी साम्य कामसूत्र का तत्त्वज्ञान-प्राचीन भारतीय तत्वज्ञान है। कामसूत्र में प्राप्त 'ईश्वरकामितम् ' (राजाओं की के अनुसार, धर्म एवं अर्थ के समान 'काम' भी एक भोगतृष्णा) नामक अध्याय में प्रायः आंध्र राजाओं का पुरुषार्थ माना गया है, जिसकी परिणति वैवाहिक सुखप्राप्ति ही वर्णन किया गया है । आयुर्वेदीय 'वाग्भट' ग्रंथ में में होती है। काम मनुष्य की सहजप्रवृत्ति है, जो कामसूत्र के वाजीकरण संबंधी उपचार उधृत किये मानवी शरीर की स्थिति एवं धारणा के लिए अत्यंत गये हैं। इन सारे निर्देशों से कामसूत्र का रचनाकाल ई. आवश्यक है। इसी कारण धर्म, अर्थ एवं काम पुरुषार्थों स. ३ री शताब्दी निश्चित होता है। का रक्षण कर मनुष्य को जितेंद्रिय बनाना, यह वात्स्यायन पूर्वाचार्य--कामसूत्र में प्राप्त निर्देश के अनुसार, इस | कामसूत्र का प्रमुख उद्देश्य है-- शास्त्र का निर्मिति शिवानुचर नंदी के द्वारा हुई, रक्षन् धर्मार्थकामानां स्थिति स्वां लोकवर्तिनीम् । जिसने सहस्त्र अध्यायों के 'कामशास्त्र' की रचना की। अस्य शास्त्ररय तत्त्वज्ञः भवत्येव जितेंद्रियः ॥ नंदी के इस विस्तृत ग्रंथ का संक्षेप औद्दालकि श्वेतकेतु (का. सू. ७.२.५६)। नामक आचार्य ने किया, जिसका पुनःसंक्षेप आगे चल कर बाभ्रव्य पांचाल ने किया। बाभ्रव्य का कामशास्त्र- वात्स्यायन कामसूत्र में कामसेवन की तुलना मानवी विषयक ग्रंथ सात 'अधिकरणों' में विभाजित था। आहार से की गयी है । उस ग्रंथ में कहा गया है कि, बाभ्रव्य के इसी ग्रंथ का संक्षेप कर वात्स्यायन ने अपने आहार एवं काम का योग्य सेवन करने से मनुष्य को कामसूत्र की रचना की। | आरोग्यप्राप्ति होती है। किन्तु उसीका ही आधिक्य होने
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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