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वाजश्रवस
प्राचीन चरित्रकोश
वातवेग
नाम भी यहीं बताया गया है (ते. ब्रा. ३.११.८.१)। २९.७ )। भारतीययुद्ध में, ये लोग कौरवों के पक्ष में वाजश्रवस के वंशज होने से उन्हे वाजश्रवस पैतृक नाम शामिल थे, एवं भीष्म के द्वारा निर्मित गरुड़-व्यूह के प्राप्त हुआ होगा।
शिरोभाग में खड़े हुए थे (म. भी. ५२.४)। अर्जुन २. एक ऋषिकुल, जो गोतम कुल में उत्पन्न हुआ था | ने इन लोगों का संहार किया था (म. क. ५१.१६)। (ते. ब्रा. ३.११.८)। इस कुल के लोग अत्यंत पूज्य वाटिक--पराशरकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । माने जाते थे (ते. ब्रा.१.३.१०३ )।
वाडव-एक व्याकरणकार, जो पतंजलि के व्याकरण वाजसनेयि अथवा वाजसनेय-याज्ञवल्क्य नामक | महाभाष्य में निर्दिष्ट सात वार्तिककारों में से एक था सुविख्यात आचाय का पैतृक नाम (बृ. उ. ६.३.७; ५.. (महा. ८.२.१०६) । उस ग्रंथ में अन्यत्र इसका निर्देश दो ३ काण्य; जै. बा. २.७६)। इसकी शिष्यपंरपरा |
बार किया गया है, जहाँ इसे सौर्यनगर का रहिवासी कहा 'वाजसनेयिन' नाम से सुविख्यात है (अनुपद. सूत्र. गया है (महा.३.२.१४:७.३.१) । कैयट के अनुसार, ७.१२.८.१), जिसम याज्ञवल्क्य क पद्रह शिष्य प्रमुख सौर्य एक नगर का ही नाम था। थे। एक शाखाप्रवर्तक आचार्य के नाते, याज्ञवल्क्य का
वाडोहवि--वसिष्ठकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । निर्देश पाणिनि के अष्टाध्यायी में प्राप्त है (पाणिनि
वात--(सो. क्रोष्टु) एक राजा, जो वायु के अनुसार देखिये)।
शूर राजा का पुत्र था। २. एक आचार्यसमूह, जो व्यास की यजुःशिष्य
२. एक क्रूरकर्मा राक्षस,जो यातुधान राक्षस का पुत्र था। परंपरा में से याज्ञवल्क्य नामक आचार्य के पंद्रह शिष्यों
इसके पुत्र का नाम विरोध था (ब्रह्मांड ३.७.९६)। से बना हुआ था।
३. स्वारोचिष मन्वंतर के सप्तषियों में से एक । याज्ञवल्क्य ने सूर्य से यजुःसंहिता को प्राप्त किया था। आगे चल कर उसने उस संहिता के पंद्रह भाग किये,
वातघ्न-विश्वामित्र ऋषि के ब्रह्मवादी पुत्रो में से एक । एवं वे अपने काण्व, माध्यंदिन आदि शिष्यों में बाँट .
वातजूति (वातरशन)--एक वैदिक मंत्रद्रष्टा (ऋ. दिये। इसी कारण याज्ञवल्क्य के ये पंद्रह शिष्य 'वाज
१०.१३६.२ )। सनेय' नाम से सुविख्यात हुए । याज्ञवल्क्य के ही कारण,
। वातपति-द्रौपदीस्वयंवर में उपस्थित एक राजा शुकयजुर्वेदसंहिता 'वाजसनेयि संहिता' नाम से प्रसिद्ध | (म. आ. २०१.२०)।
वातरशन-नग्न मुनियों का एक समुदाय (ऋ. वाजिजि-मरीचिगर्भ देवों में से एक( ब्रह्मांड. ४.१. १०.१३६.१०२, तै. आ. १.२३.२, २४.४, २.
७.१)। इससे प्रतीत होता है कि, भारत में आज वाजिन-सावर्णि मनु के वाज नामक पुत्र का नामांतर ।
दिखाई देनेवाले नग्न गोसाइयों की परंपरा काफी २. याज्ञवल्क्य के पंद्रह शिष्यों का सामूहिक नाम
पुरातन है।
ऋग्वेद में निम्नलिखित ऋषियों को 'वातरशन' उपाधि (वायु. ६१.२४-२६; वाजसनेयि २. देखिये। वाजिश्रवस्-अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार।
प्रदान की गई है:-ऋष्यशृंग, एतश, करिकत, जूति, वाज्य-केतु नामक आचार्य का पैतृक नाम (वं. बा. | वातजाति, विप्रजात ( *. १०. १२६ )।
वातवत्--एक ऋषि, जो दृति नामक आचार्य का वाटधान--एक राजा, जो क्रोधवश नामक दैत्य के | मित्र था (पं. बा. २५.३.६)। एक बार इसने एवं अंश से उत्पन्न हुआ था (म. आ. ६१.५८)। इसका | दृति ने एक यज्ञ का आयोजन किया। किन्तु इसने उस राज्य उत्तर भारत में बसा था, एवं भारतीययुद्ध के
| यज्ञ का कार्य बीच में ही छोड़ दिया। इस कारण, इसे समय वह कौरवों की सेना से घिरा गया था (म. उ.
अनेकानेक कष्टों का सामना करना पड़ा, एवं इसके. १९.३०)। भारतीय युद्ध में यह कौरवों के पक्ष में | वंशज 'वातवत्-गण' दृति के वंशजों ( दार्तयों) की अपेक्षा शामिल था।
| कम संपन्न हो सके। २. एक लोकसमूह, जिसे नकुल ने अपने पश्चिम- वातवेग--(सो. कुरु.) धृतराष्ट्र के शतपुत्रों में से दिग्विजय के समय जीता था (ब्रह्मांड २.१६.४६; म. स. | एक । भीम ने इसका वध किया।