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________________ वह्नि प्राचीन चरित्रकोश वाजश्रवस २. (सो. तुर्वसु.) एक राजा, जो भागवत, विष्णु एवं का सामर्थ्य निम्नलिखित शब्दों में बताया है, 'जो ज्ञान वायु के अनुसार तुर्वसु राजा का पुत्र था। इसके पुत्र | देव एवं मानवों के लिए अप्राप्य है, वह मैं बता का नाम भर्ग (गोभानु) था (भा. ९.२३.२६, ब्रह्मांड. | सकती हूँ। इस ज्ञान के कारण, किसी भी व्यक्ति को मै ३.७४.१)। श्रेष्ठ बना सकती हूँ, ब्राह्मण बना सकती हूँ, ऋषि बना __३. (सो. कुकुर.) एक राजा, जो कुकुर राजा का पुत्र सकती हूँ, बुद्धिमान् बना सकती हूँ। मेरे पास रुद्र था । इसके पुत्र का नाम विलोमन् था । विष्णु में इसे धृष्ट | का धनुष सदैव सज्ज है, जिसकी सहाय्यता से मैं कहा गया है (धृष्ट ५. देखिये )। समस्त ब्रह्मद्वेष्टा शत्रुओं का नाश कर सकती हूँ' (ऋ. १०. ४. कृष्ण एवं मित्राविंदा के पुत्रों में से एक (भा. | १२५.५-७)। १०.६१.१६ )। वाचःश्रवस्--शिखंडिन् नामक शिवावतार का ५. रामसेना एक वानर । | शिष्य, जो अठारहवें द्वापारयुग में उत्पन्न हुआ था ६. अग्नि का नामांतर (अग्नि ५. देखिये)। | (वायु. २३. १८३)। वाकय--वसिष्ठकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । वाचकवी- गार्गी नामक ब्रह्मवादिनी स्त्री का पैतृक वाका--माल्यवत् राक्षस की कन्या, जो विश्रवस् | नाम (बृ. उ. ३.६.१; ८.१)। 'वचन्नु' का वंशज होने ऋषि की चार पत्नियों में से एक थी । महाभारत में | से इसे यह पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा। विश्रवस् ऋषि के पत्नियों के पुष्पोत्कटा, राका एवं मालिनी | वाचस्पत--अलीकयु नामक आचार्य का पैतृक नाम ये तीन ही नाम प्राप्त है। किन्तु ब्रह्मांड एवं वायु में | (सां. बा. २६.५, २८.४)। . विश्रवस् ऋषि की चतुर्थ पत्नी वाका बतायी गयी है | वाचावृद्ध-भौत्य मन्वन्तर का एक देवगण (ब्रह्मांड. (ब्रह्मांड. ३.८.३९-५६; वायु. ७०.३४-५०)। इसके ४.१.१०७)। त्रिशिरस् ,दूषण एवं विद्युजिह्व नामक तीन पुत्र, एवं अनु वाच्य--प्रजापति नामक वैदिक सूक्तद्रष्टा का पैतृक पालिका नामक कन्या थी। नाम। वापति--सत्यदेवों में से एक (ब्रह्मांड. २.३६.३४)।। ___ वाच अथवा वाजिन्--सावर्णि मनु के नौ पुत्रों में से वागायनि--भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । वागिंद्र--एक ऋषि, जो गृत्समदवंशीय प्रकाश ऋषि | वाजभर'-सप्ति नामक वैदिक सूक्तद्रष्टा का पैतृक का पुत्र था। इसके पुत्र का नाम प्रमति था। यह वीत- | नाम । हव्य नामक ब्रह्मक्षत्रिय के वंश में उत्पन्न हुआ था (म. वाजरत्नायन--सोमशुष्मन् नामक आचार्य का पैतृक अनु. ३०.६३; वीतहव्य देखिये)। नाम (ऐ. ब्रा. ८.२१.५)। वाग्ग्रंथि--वसिष्ठकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । पाठभेद | वाजश्रव-अंगिरस् कुल में उत्पन्न हुआ एक ऋषि । --'बाहुरि। इसे वायुपुराण की संहिता निर्यन्तर नामक आचार्य से वाग्दुष्ट--कौशिक ऋषि के सात पुत्रों में से एक | प्राप्त हुई, जो आगे चल कर इसने सोमशुष्म नामक शिष्य (मत्स्य. २०.३)। इसके कनिष्ठ भाई का नाम पितृवर्तिन् । को प्रदान की (ब्रह्मांड. २.३५.१२२, वायु. १०३.६४)। था (पितृवर्तिन् देखिये)। इसके नाम के लिए 'वाजिश्रव' पाठभेद भी प्राप्त है। वाग्मिन्-(सो. पूरु.) एक राजा, जो पूरुराजा के | वाजश्रवस्-- एक आचार्य, जो जिह्वावत् बाध्योग पौत्र मनस्यु के तीन पुत्रों में से एक था। इसकी माता | नामक आचार्य का शिष्य था (बृ. उ. ६.४.३३ माध्य.) का नाम सौवीरी था। इसके अन्य दो भाइयों के नाम | इसके शिष्य का नाम कुश्रि था । नचिकेतस् इसका सुभ्र एवं संहनन थे (म. आ. ८९.७)। पुत्र था। पुराणों में इसे ऋषिक एवं चौबीसवाँ वेद व्यास वाच-सावर्णि मनु के नौ पुत्रों में से एक (वायु. | कहा गया है। १००.२२)। २. एक व्यास, जो बाईसवें द्वापारयुग में उत्पन्न वाच आम्भृणी--एक वैदिक सूक्तद्रष्टी (ऋ. १०. | हुआ था । १२५)। इसके द्वारा रचित ऋग्वेद का सूक्त तेजस्वी वाजश्रवस--कुश्रि नामक आचार्य का पैतृक विचारों से ओतप्रोत भरा हुआ है, जहाँ इसने वाणी । नाम (श. ब्रा. १०.५.५.१)। नचिकेतस् का पैतृक ८१८
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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