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चालुदेव
प्राचीन चरित्रकोश
वसुदेव
इसे निमि जनक एवं नौ योगेश्वरों के बीच हुआ तत्त्वज्ञान- | (३) भोगांगना---१. सुगंधा (सुतनु-ह. वं.); २. पर उपदेश कथन किया था (भा. ११.२-५)। वनराजी (रथराजी-मस्य.; वडवा-ह. वं.)। भागवत
अश्वमेधयज्ञ--इसने स्यमन्तपंचकक्षेत्र में अश्वमेध एवं विष्णु में इनके निर्देश अप्राप्य हैं। यज्ञ किया था, जिस समय इसके अश्वमेधीय अश्व का (४) अन्य पत्नियाँ--१. वैश्या; २. कौसल्या । जरासंध ने हरण किया था (म. स. ४२.९)। किन्तु पुत्र-(१) रोहिणीपुत्र-१. राम; २. सारण; ३. श्रीकृष्ण ने वह अश्व लौट लाया, एवं इसका यज्ञ भलीभाँति दुर्दम (दुर्मद); ४. शठ (गद-भा., निशव-बायु.); समाप्त हुआ। इस यज्ञ के समय इसने नंद गोप का विपुल | ५. दमन (विपुल-भा., भद्राश्व-विष्णु); ६.शुभ्र (सुभ्रभेटवस्तुएँ दे कर सत्कार किया था (भा. १०.६६)। मत्स्य., श्वभ्र-ह. वं., कृत-भा., भद्रबाहु-विष्णु.); ७.
मृत्यु-कृष्ण की मृत्यु की वार्ता सुन कर, यह अत्यंत | पिंडारक (कृत-भा., दुर्गमभूत-विष्णु.); ८. कुशीतक उद्विग्न हुआ (म. मो.५)। इसने अपने पुत्रो में से (उशीगर-ह. वं., महाहनू-मत्स्य., सुभद्र-भा.)। सौमी एवं कौशिक को अपने भाई वृक के गोद में दिया, सारे पुराणों में रोहिणी की पुत्रसंख्या आठ बतायी एवं प्रभासक्षेत्र में देहत्याग किया। पश्चात् अर्जुन की गयी हैं। केवल भागवत में उसके बारह पुत्र दिये गये है, नेतृत्व में, एक अत्यंत मौल्यवान मनुष्यवाहक यान से जिनमें से उर्वरीत चार निम्नप्रकार हैं:-१. भद्रवाह; इसका शव स्मशान में ले जाया गया। इसकी स्मशान- २. दुर्मद, ३. भद्र, ४. भूत । यात्रा के अग्रभाग में इसका आश्वमधिक छत्र था, एवं पीछे | इनके अतिरिक्त रोहिणी को दो निम्नलिखित कन्याएँ इसके स्त्रियों का परिवार था । इसके अत्यंत प्रिय स्थान भी थी. जिनका उल्लेख हरिवंश में प्राप्त हैं:- १. चित्रा पर इसका दाहकर्म किया गया (म. मौ. ८.१९-२३)। (चित्राक्षी-मत्स्य.), २. सुभद्रा (चित्राक्षी- मत्स्य.)। इसकी पत्नियों में से देव की, भद्रा, रोहिणी एवं मदिरा (२) मदिरापुत्र-१. नंद, २. उपनंद; ३. कृतक आदि स्त्रिया इसके शव के साथ संती हो गयीं।
(स्थित-वायु.); ४. कुक्षिमित्र; ५. मित्र, ६. पुष्टि; ७. परिवार-इसकी पत्नियाँ एवं परिवार की जानकारी चित्र; ८. उपचित्र; ९. वेल; १०. तुष्टि। विभिन्न पुराणों में प्राप्त है, किंतु वह एक दूसरे से मेल । इनमें से पहले तीन पुत्रों का निर्देश हरिवंश एवं नही खाती।
| मत्स्य के अतिरिक्त बाकी सारे पुराणों में प्राप्त हैं । ४___पत्नियाँ--इसकी पत्नियों की संख्या वायु एवं हरिवंश ८ पुत्रों के नाम केवल वायु एवं विष्णु में प्राप्त है । ९-- में क्रमशः १३ एवं १४ दी गयी हैं (वायु. ९६.१५०- १० पुत्रों के नाम केवल विष्णु में प्राप्त हैं । वायु में इन १६१: ह. वं. १.३५.१) । मत्स्य एवं भागवत में पत्नियों दो पुत्रों के स्थान पर 'चित्रा' एवं 'उपचित्रा' नामक दो की कुल संख्या अप्राप्य हैं, किंतु भागवत में इसके कन्याओं का निर्देश प्राप्त हैं । भागवत में ४-१० पुत्रों १३ पत्नियों का अपत्यपरिवार दिया गया है।
के नाम अप्राप्य है, किंतु वहाँ 'शूर' आदि बिल्कुल नये इसकी पत्नियों में निम्नलिखित स्त्रिया प्रमुख थी:- नाम दिये गये हैं। (१) देवककन्याएँ--१. देवकी; २. सहदेवाः ३. (३) भद्रापुत्र--(अ) वायु एवं ब्रह्मांड में--१. शांतिदेवा, जिसे वायु एवं मत्स्य में क्रमशः 'शाङ्ग देवा' बिंब; २. उपविच; ३. सत्वदंत; ४. महौजस् । (ब) विष्णु एवं 'श्राद्धदेवा' कहा गया है; ४. श्रीदेवाः .. देव- में--१. उपनिधि, २. गद। रक्षिता; ६. वृकदेवा (धृतदेवा); ७. उपदेवा ।
(४) वैशाखी (वैश्या) पुत्र कौशिक, जिसे (२) पूरुकुलोत्पन्न स्त्रियाँ--१. रोहिणी, जिसे भागवत में कौसल्यापुत्र कहा गया है। हरिवंश एवं ब्रह्मांड में बाह्रीक राजा की, एवं वायु में (५) सुनाम्नीपुत्र-१. वृक; २. गद (ह. वं.)। वाल्मीक राजा की कन्या कहा गया है; २. मदिरा (इंदिरा- । (६) सहदेवापुत्र--(अ) ब्रह्मांड में--१. पूर्व । है. वं.); ३. भद्रा; ४. वैशाखी (वैशाली-विष्णु.); (ब) भागवत में--१. पुरु; २. विश्रुत आदि (क) वायु ५. सुनाम्नी।
| में--१. भयासख। उपर्युक्त पत्नियों में से वैशाखी एवं सुनाम्नी का निर्देश (७) शांतिदेवापुत्र (अ) ब्रह्मांड में- १. जनस्तंभ । भागवत में अप्राप्य हैं, जहाँ उनके स्थान पर 'रोचना' (ब) भागवत में -१. श्रम; २. प्रतिश्रुत आदि । (क) एवं 'इला' नाम प्राप्त हैं।
। हरिवंश में--१. भोज; २. विजय ।