________________
वसिष्ठ
प्राचीन चरित्रकोश
वसिष्ठ
की थी। इसी कारण जातुकर्ण्य को अट्ठाईस द्वापारों में से श्राद्धदेव की पत्नी श्रद्धा की इच्छा थी कि, उसे एक युग का व्यास कहा गया है (वायु. २३.११५- कन्यारत्न की प्राप्ती हो । इस इच्छा के अनुसार, इसके २१९)।
यज्ञ से उसे इला नामक कन्या प्राप्त हुई। किन्तु वसिष्ठकुल के मंत्रकार-वसिष्ठकुल के मंत्रकारों की | श्राद्ध देव पुत्र का कांक्षी था, जिस कारण इसने उस कन्या नामावलि वायु, मत्स्य एवं ब्रह्मांड पुराणों में प्राप्त है | का सुद्युम्न नामक पुत्र में रूपांतर किया ( भा. ९.१.१३(वायु. ५९.१०५-१०६, मत्स्य. १४५.१०९-११० | २२)। अंबरीष राजा के अश्वमेध यज्ञ में भी यह उपस्थित ब्रह्मांड. २.३२.११५-११६)।
था (मत्स्य. २४५. ८६)। . इनमें से वायु में प्राप्त नामावलि, मत्स्य एवं ब्रह्मांड
१०. आठवा वेदव्यास, जिस इंद्र ने ब्रह्मांड पुराण में प्राप्त पाठान्तरों के सहित नीचे दी गयी है :--इंद्रप्रमति
सिखाया था । आगे चल कर, यही पुराण इसने सारस्वत
ऋषि को सिखाया (ब्रह्मांड, २.३५.११८)। इसका (इंद्रप्रतिम,), कुंडिन, पराशर, बृहस्पति, भरद्वसु,
आश्रम उर्जन्त पर्वत पर था ( ब्रह्मांड, ३.१३.५३)। भरद्वाज, मैत्रावरुण (मैत्रावरुणि),वसिष्ठ, शक्ति, सुद्युम्न ।
११. एक ऋषि, जो वारुणि यज्ञ के 'वसुमध्य' से २. एक आचार्य, जो अयोध्या के दशरथ एवं राम
उत्पन्न हुआ था। इसी कारण इसे 'वसुमत् ' कहते थे । दाशरथि राजाओं का पुरोहित था। एक नीतिविशारद
आगे चल कर, इसीसे ही सुकात नामक पितर उत्पन्न हुए प्रमुख मंत्री, एवं पुरोधा के रूप में इसका चरित्रचित्रण
| (ब्रह्मांड. ३.१.२१; मत्स्य. १९५. ११)। वाल्मीकि रामायण में प्राप्त है।
१२. बृहत्कल्प के धर्ममूर्ति राजा का पुरोहित ( मत्स्य. यह सर्वश्रेष्ठ ब्रह्मज्ञानी, एवं तपस्वियों में श्रेष्ठ था |
| ९२.२१)। इसने त्रिपुरदहन के हेतु शिव की स्तुति की (वा. रा. बा. ५२.१, २०)। अपनी तपस्या के बल
थी (मत्स्य. १३३.६७)। पर इसने ब्रह्मर्षिपद प्राप्त किया था। यह अत्यधिक शांति
१३. एक शिल्पशास्त्रज्ञ (मत्स्य, २५२.२.)। । संपन्न, क्षमाशील एवं सहिष्णु था (वा. रा. बा. ५५- .
। १४. एक ऋषि, जो शरशय्या पर पड़े हुए भीष्म से
मिलने के लिए उपस्थित हुआ था (भा. १.९.७)। . दशरथ राजा के पुरोहित के नाते, उसके पुत्र
युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के समय भी यह उपस्थित था । कामेष्टि यज्ञ में यह प्रमुख ऋत्विज बना था। राम एवं
(भा. १०.७४.७)। लक्ष्मण का नामकरण भी इसने ही किया था। राम |
१५. अगस्त्य ऋषि का छोटा भाई, जो विदेह देश के दाशरथि को यौवराज्याभिषेक की दीक्षा भी इसी के ही
निमि राजा का पुरोहित था ( वसिष्ठ मैत्रावरुणि देखिये; हाथों प्रदान की गयी थी (राम दाशरथि देखिये)।
मत्स्य. ६१.१९)। ३. एक ऋषि, जो अयोध्या के मांधातृ राजा के पुत्र
महाभारत के अनुसार, यह ब्रह्माजी के मानसपुत्रों में मुचकुंद राजा का पुरोहित था (म. शां. ७५.७)। से एक था । भागवान् शंकर के शाप से ब्रह्माजी के सारे
४. एक ऋषि. जो भरतवंशीय सम्राट रंतिदेव सांकृत्य पत्र दग्ध हो कर नष्ट हो गये । वर्तमान मन्वन्तर के प्रारंभ का परोहित था । रंतिदेव राजा हस्तिनापुर के हस्तिन् | में ब्रह्माजी ने उन्हें पुनः उत्पन्न किया। उनमें से वसिष्ठ राजा का समकालीन था। उसने इसे ब्रह्मर्षि मान कर | एक था । यह अग्नि के मध्यम-भाग से उत्पन्न हुआ था। अर्ध्यप्रदान किया था (म. शां. २६.१७; अनु. २००. | इसकी पत्नी का नाम अक्षमाला था (म. उ. ११५.
११)। ५. रैवत मन्वंतर का एक ऋषि ।
एक बार निमि राजा से इसका झगड़ा हो गया, ६. सावर्णि मन्वंतर का एक ऋषि ।
जिसमें दोनों ने एक दूसरे को विदेह (देहरहित) बनने ७. ब्रह्मसावर्णि मन्वंतर का एक ऋषि ।
का शाप दिया । उन शापों के कारण इन दोनों की मृत्यु ८. धर्मनारायण नामक शिवावतार का एक शिष्य। । हुयी (निमि देखिये)।
९. एक ऋषि, जो श्राद्धदेव का पुरोहित था। श्राद्धदेव वसिष्ठ अथवेनिधि--एक ऋषि, जो अयोध्या के को कोई भी पुत्र न था, जिस कारण इसने मित्रवरुणों को | हरिश्चंद्र राजा के आठवें पिढी में उत्पन्न हुए बाहु राजा उद्देश्य कर एक यज्ञ का आयोजन किया । | का राजपुरोहित था । हैहय तालजंघ राजाओं ने