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________________ प्राचीन चरित्रकोश वसिष्ठ ( ६ ) वसिष्ठ, जो अयोध्या के दथस्थ एवं राम दाशरथि राजाओं का समकालीन था ( वसिष्ठ २. देखिये) । (७) वसिष्ट मैत्रावरुण, जो उत्तर पांचाल देश के पैजवन सुदास राजा का समकालीन था, एवं जिसका निर्देश ऋग्वेद आदि वैदिक ग्रंथों में प्राप्त है ( वसिष्ठ मैत्रावरुण देखिये) । (८) वसिष्ठ शक्ति, जो वसिष्ठ मैत्रावरुण का पुत्र था ( वसिष्ठ शक्ति देखिये ) । ( ९ ) वसिष्ठ सुवर्चस्, जो हस्तिनापुर के संवरण राजा का समकालीन था. ( वसिष्ठ सुवर्चस् देखिये ) | ( १० ) वसिष्ठ, जो अयोध्या के मुचकुंद राजा का समकालीन था. ( वसिष्ठ ३. देखिये ) । ( ११ ) वसिष्ठ, जो हस्तिनापुर के हस्तिन् राजा का समकालीन था ( वसिष्ट ४. देखिये) । (१२) वसिष्ठ 'धर्मशास्त्रकार, ' जो ' वसिष्ठस्मृति' नामक धर्मशास्त्रविषयक ग्रंथ का कर्ता माना जाता है ( वसिष्ठ धर्मशास्त्रकार देखिये) । वसिष्ट की वंशावलि -महाभारत एवं पुराणों में वसिष्ठ ऋषि की तीन विभिन्न वंशावलियाँ प्राप्त है: -१, अरुंधती शाखा; २. घृताचीशाखा; ३. व्याघ्रीशाखा । इनमें से अरुंधती एवं घृताची क्रमशः ब्रह्ममानसपुत्र वसिष्ठ एवं वसिष्ठ मैत्रावरुण ऋषियों की पत्नियाँ थी । व्याघ्री कौनसे वसिष्ठ की पत्नी थी, यह निश्चित रूप से नही कहा जा सकता । शक्ति (१) अरुंधती शाखा -- वसिष्ठ ( अरुंधती ) - ( स्वागज अथवा सागर ) - - पराशर ( काली ) - कृष्णद्वैपायन (अरणी ) – शुक्र ( पीवरी) -- भूरिश्रवस्, प्रभु, शंभु, कृष्ण, गौर, एवं कीर्तिमती ( ब्रह्मदत्त की पत्नी ) । (२) घृताची शाखा -- वसिष्ठ मैत्रावरुण ( घृताची )इंद्रप्रमति अथवा कुणीति अथवा कुशीति - वसु (पृथुसुता ) - उपमन्यु (ब्रह्मांड. २.८०.९०-१०० वायु. ७१.८३ - ९०; लिंग. १.६३.७८-९२; कूर्म. १.१९ मत्स्य. २०० ) । (३) व्याघ्री शाखा -- वसिष्ठ को व्याधी से व्याघ्रपाद मन्ध, बादलोम, जाबालि, मन्यु, उपमन्यु, सेतुकर्ण आदि कुल १९ गोत्रकार पुत्र उत्पन्न हुए ( म. अनु. ५३. ३०-३२ कुं. ) । वसिष्ठ ( १ ) एकप्रवरात्मक गोत्रकार - - वसिष्ठकुल के निम्नलिखित गोत्र एकप्रवरात्मक हैं, जिनका वसिष्ठ यह एक ही प्रवर होता है :- अलब्ध, आपस्थूण ( ग ), उपावृद्धि, औपगव ( अंपगवन, ग), औपलोम ( अपष्टोम, ग ), कट ( ग ), कपिष्ठल ( ग ), गौपायन ( गोपायन, ग ) गौडिfi ( जौडिलि), चौलि, दाकव्य ( ग ), पालिशय ग ), पौडव (खांडव ), पौलि, बालिशय ( ग ), बाहु (ग), बोधप (ग), ब्रह्मबल, ब्राह्मपुरेयक (ब्रह्मकृतेजन, ग ), बाडोहलि, वाह्यक ( ग ), वैक्लव ( ग ), बौलि, व्याघ्रपाद याज्ञवल्क्य ( याज्ञदत्त ), लोमायन ( ग ), वाग्रंथि, (ग), शट ( ग ) ( घटाकुर, शठकठ), शांडिल, शाद्वलायन ( ग ), शीतवृत्त ( ग ), श्रवस् ( श्रवण ), सुमन ( ग ), स्तस्तिकर ( ग ) । ( सिष्ठकुल के गोत्रकार - वसिष्ठकुलोत्पन्न गोत्रकारों में एक प्रवरात्मक ( एक प्रवरवाले), एवं त्रिप्रवरात्मक (तीन प्रवरोंवाले) ऐसे दों प्रमुख प्रकार हैं। (२) त्रिश्वरात्मक गोत्रकार - वसिडकुल के निम्नलिखित गोत्रकार त्रिप्रवरात्मक हैं, जिनके इंद्रप्रमदि (चंद्रसंमति ), भगीवसु (भर्गिर्वमु ) एवं वसिउ ये तीन प्रवर होते हैं: - उद्ग्राह ( उद्घाट, ग), उपलप (ग), उहाक (ग), औपमन्यव, कपिंजल (ग), काण्व ( ग ), कालशिख, कोर कृषा ( कौरकृष्ण, ग ), कौरव्य, कौलायन ( कौमानरायण ), क्रोडोदरायण, क्रोधिन, गोरथ ( ग ), तर्पय, डाकायन, पन्नागारि ( पर्णागारि ), पालंकायन, ( पादपायन ), प्रलंबायन ( ग ), बलेक्षु (दलेषु, ग ), बालवय, ब्रह्ममालिन् ( ग ), भागवित्तायन ( ग ) ( भागवित्रासन ), महाकर्ण, मातेय ( ग ), मापशरावय ( ग ), लंबायन ( ग ), वाक्य ( ग ), वालखिल्य ( ग ), वेदशेरक (ग), शाकधिय, शाकायन ( ग ), शाकाहार्य ( ग ), शैलालय (रौरालय, शैवलेय), श्यामवय, सांख्यायन, सुरायण । वसिष्टकुल के निम्नलिखित गोत्रकार भी त्रिप्रवरात्मक ही हैं, किन्तु उनके कुंडिन, मित्रावरुण एवं वसिष्ठ ये तीन प्रवर होते हैं: - औपस्थल (जपस्वस्थ, ग), कुंडिब, चैांगायण ( त्रैांग, ग ), पैप्पलादि, बाल ( घब ), माक्षति ( ग ), माध्यंदिन, लोहलय (हाल - हल का पाठभेद ), विचक्षुष (विवर्धक), सैबल्क ( सर्व सैलाब ), स्वस्थलि ( ग ) । वसिष्ठकुल के निम्नलिखित गोत्रकार अत्रि, जातुकर्ण एवं वसिष्ठ इन तीन प्रवरों के होते हैं :-- आलंब ( ग ), क्रोडोदय, दानकाय ( ग ), नागेय ( ग ), परम ( ग ), पादप, महावीर्य (ग), वय, वायन, शिवकर्ण (शवकर्ण) । जातुकर्ण्य लोग -- वसिष्ठ गोत्रीय लोगों में 'जातुकर्ण्य' पैतृक नाम धारण करनेवाले लोग प्रमुख थे। इसी नाम के एक ऋषि ने व्यास को वेद एवं पुराणों की शिक्षा प्रदान ८०५
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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