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वसिष्ठ
प्राचीन चरित्रकोश
वसिष्ठ
कांबोज. यवन, पारद, पहब आदि उत्तरीपश्चिम प्रदेश में | चैकितानेय वासिष्ठ एवं यह दोनों संभवतः एक ही होगे रहनेवाले लोगों की सहाय्यता से बाह राजा को राज्यभ्रष्ट | (जै. उ.बा. १.४.२.१)। किया। आगे चल कर बाहु राजा के पुत्र सगर ने इन वसिष्ठ देवराज-एक ऋषि, जो अयोध्या के सारे शत्रुओं का पराज्य कर पुनः राज्य प्राप्त किया। त्रय्यारुण, सत्यव्रत त्रिशंकु एवं हरिश्चंद्र राजाओं का पुरोहित सगर राजा इन सारे लोगों का संहार ही करनेवाला था | था। हरिश्चंद्र के यज्ञ में यह 'ब्रहा।' था (ऐ. ब्रा. ७.१६, किन्तु वसिष्ठ ने इसे इस पापकर्म से रोक दिया। सां.श्री. १५.२२.४; श. बा.१२.६.१. ४१; ४.६.६.५)।
इसने सगर को परशुराम की कथा कथन की थी। | इसका त्रिशंकु राजा से हुआ विरोध एवं उसीके ही कारण इसने सगर के पत्र अंशमत को यौवराज्याभिषेक किया | इसका विश्वामित्र ऋषि से हुआ भयानक संघर्ष, प्राचीन (ब्रह्म. ३.३१.१; ४७.९९)।
भारतीय इतिहास में सुविख्यात है (त्रिशंकु देखिये)। ब्रह्मांड एवं बृहन्नारदीय पुराणों में इसे क्रमशः | सत्यव्रत त्रिशंकु के राज्यकाल में शुरू हुआ इसका आपव.एवं अथर्व निधि कहा गया है । ब्रह्मांड. ३.४९. एवं विश्वामित्र ऋषि का संघर्ष सत्यव्रत के पुत्र हरिश्चंद्र, ४३; बृहन्नारदीय. ८.६३) । महाभारत में, इसके नंदिनी | एव पौत्र रोहित के राज्यकाल में चालू ही रहा। नामक गाय के द्वारा शक, कांबोज, पारद आदि म्लेंच्छ सत्यव्रत के सदेह स्वर्गारोहण के पश्चात् उसके पुत्र जाति के निर्माण होने का, एवं उनकी सहाय्यता से इसके
हरिश्चंद्र ने विश्वामित्र को अपना पुरोहित नियुक्त किया । के द्वारा विश्वामित्र का पराजय होने का निर्देश प्राप्त है। किंतु उसके राजसूय-यज्ञ में बाधा उत्पन्न कर, वसिष्ठ ने (म. आ. १६५७ वा. रा. बा.५४.१८-५५)। किन्तु वहाँ | अपना पौरोहित्यपद पुनः प्राप्त किया ( हरिश्चंद्र देखिये) वसिष्ठ अथर्वनिधि को वसिष्ठ देवरात समझने की भूल हरिश्चंद्र के ही राज्यकाल में, उसके पुत्र रोहित के बदले की गई सी प्रतीत होती है, क्यों कि, विश्वामित्र ऋषि का विश्वामित्र के रिश्तेदार शुनःशेप को यज्ञ में बलि देने का समकालीन वसिष्ठ देवरात था, वसिष्ठ अथर्वनिधि उससे षड्यंत्र देवराज वसिष्ठ के द्वारा रचाया गया, किंतु विश्वामित्र काफी पूर्वकालीन था।
ने शुनःशेप की रक्षा कर, उसे अपना पुत्र मान लिया २. एक ऋषि, जो अयोध्या के दिलीप खट्वांग राजा (रोहित देखिये)। .. का पुरोहित था। इसी के ही सलाह से दिलीप राजा ने वसिष्ट 'धर्मशास्त्रकार'--एक स्मृतिकार, जिसका
नंदिनी नामक कामधेनु की उपासना की, जिसकी कृपा | तीस अध्यायों का 'वसिष्ठस्मृति' नामक स्मृतिग्रंथ आनंदसे उसे रघु नामक सुविख्यात पुत्र उत्पन्न हुआ (रघु. | श्रम के 'स्मतिसमुच्चय ' में प्राप्त है। उसमें आचार. १-३; पद्म उ. २०२-२०३; दिलीप खट्वांग देखिये)। प्रायश्चित्त, संस्कार, रजस्वला, संन्यासी, आततायि आदि
वसिष्ठ आपव-एक ऋषि, जिसका आश्रम हिमालय के लिए नियम दिये हैं। उसी प्रकार दत्तकप्रकरण, - पर्वत में था। हैहय राजा कार्तवीर्य अर्जुन ने इसका आश्रम साक्षिप्रकरण, प्रायश्चित्त आदि विषयों का भी विवेचन जला दिया, जिस कारण इसने उसे शाप दिया (वायु. किया है। व्यंकटेश्वर प्रेस के सस्करण में भी उपर्युक्त विषयों ९४.३९-४७; ह. वं. ३३.१८८४)। ब्रह्मांड पुराण में | का विवेचन करनेवाली इसकी स्मृति उपलब्ध है, परन्तु इसके 'मध्यमा भक्ति' का निर्देश प्राप्त है ब्रह्मांड. वह केवल २१ अध्यायों की है। वह तथा जीवानन्द ३.३०.७०, ३४. ४०-४१)। मत्स्य में इसे ब्रह्मवादिन् संग्रह की प्रति एक ही है । दोनों प्रतियों में प्रायः एक सौ कहा गया है (मत्स्य. १४५. ९०)।
ही श्लोक हैं। वायु में इसे वारुणि कहा गया है ( वायु. ९४. इसकी ९-१० अध्यायोंवाली भी एक स्मृति है, ४२-४३)। इसका पैतृक नाम आपव था, जिससे यह जिसमें वैष्णवों के दैनिक कर्तव्यों का विवेचन किया गया अस् (जल) का पुत्र होने का संकेत मिलता है । इस प्रकार है (C.C.)। 'वसिष्ठधर्मसूत्र' गौतमधर्मसूत्र के सूत्रों इसके वारुणि एवं आपव ये दोनों पैतृक नाम समानार्थी | से बहुत से विषयों में मिलते जुलते हैं। उसी तरह . प्रतीत होते है।
बौधायनधर्मसूत्रों के बहुत से सूत्रों से वसिष्ठधर्मवसिष्ठ चैकितानेय-एक आचार्य, जो स्थिरक सूत्र के सूत्रों का साम्य है । वसिष्ठधर्मसूत्र ऋग्वेद का गार्ग्य नामक आचार्य का शिष्य था (वं. ब्रा. २)। है। तन्त्रवार्तिक में भी पुरातन गृह्यसूत्रकार के रूप में गौतमी आरुणि नामक आचार्य से वादसंवाद करनेवाला | वसिष्ठ का उल्लेख है (१.३.२४) ।
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