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वरुण
प्राचीन चरित्रकोश
वरुण
बाँध देता है, एवं इसी प्रकार सारे सृष्टि का नियमन वैदिकोत्तर साहित्य में वरुण का सारा सामर्थ्य लुप्त हो करता है।
कर, यह केवल समुद्र के जल का अधिपति बन गया। • इतना ही नहीं, यह धैर्यशाली (धृतवत् ) देवता अपने
। व्युत्पत्ति--वरुण शब्द संभवतः वर ( ढकना) धातु नियमनों के द्वारा वैश्विक धर्म (ऋत) का संरक्षण करने के
से उत्पन्न हुआ है, एवं इस प्रकार इसका अर्थ 'परिवृत लिए पापी लोगों का शासन भी करता है। इस तरह
करनेवाला' माना जा सकता है। सायण के अनुसार, वैदिक साहित्य में वरुण देवता के दो रूप दिखाई देते
'वरुण' की व्युत्पत्ति 'पापियों को बंधनो से परिवेष्टित
करनेवाला' (ऋ. १.८९) अथवा 'पापियों को अंधकार हैं:- १. बंधक वरुण, जो सृष्टि के सारे नैसर्गिक शक्तियों को बाँध कर योजनाबद्ध बनाता है, २. शासक
की भाँति अच्छादित करनेवाला' (तै. सं. २.१.७) वरुण, जो अपने पाशों के द्वारा आज्ञा पालन न करने
बतायी गयी है। किंतु डॉ. दांडेकरजी के अनुसार, वैदिक वाले लोगों को शासन करता है।
साहित्य में वरुण शब्द का अर्थ 'बन्धन में रखना'
अभिप्रेत है, एवं इस शब्द का मूल किसी युरोभारतीय आगे चल कर वैदिक आयों को अनेकानेक मानवी | भाषा में ढूंढना चाहिए। शत्रुओं के साथ सामना करना पड़ा, जिस कारण युद्ध
सेमेटिक साहित्य में--ओल्डेनबर्ग के अनुसार, वैदिक में शत्रु पर विजय प्राप्त करनेवाले विजिगिषु एवं जेतृ
साहित्य में निर्दिष्ट मित्र एवं वरुण भारोपीय देवता नहीं स्वरूपी नये देवता की आवश्यकता उन्हें प्राप्त होने लगी।
है, बल्कि इनका उद्गम ज्योतिषशास्त्र में प्रवीण सेमेटिक इसीसे ही इंद्र नामक नये देवता का निर्माण वैदिक
लोगों में हुआ था, जहाँसे वैदिक आर्यों ने इनका स्वीकार साहित्य में निर्माण हुआ, एवं आर्यों के द्वारा अपने नये |
किया । इस प्रकार वरुण एवं मित्र क्रमशः चंद्र एवं सूर्य युयुत्सु ध्येय-धारणा के अनुसार, उसे राष्ट्रीय देवता के |
थे, तथा लघु आदित्यगण पाँच ग्रहों का प्रतिनिधित्व करते रूप में स्वीकार किया गया। इंद्र के प्रतिष्ठापना के |
थे (ओल्डेनबर्ग, वैदिक रिलिजन २८५.९८)। पश्चात , वरुण देवता की 'विश्वव्यापी सम्राट' उपाधि धीरे धीरे विलीन हो गई, एवं सृष्टि के अनेक विभागोंमें
___ महाभारत में--इस ग्रंथ में इसे चौथा लोकपाल, आदिति से, केवल समुद्र के ही स्वामी के रूप में उसका महत्व
का पुत्र, जल का स्वामी एवं जल में ही निवास करनेवाला मादित किया गया।
देवता बताया गया है। कश्यप के द्वारा अदिति से उत्पन्न
द्वादश आदित्यों में से यह एक था (म. आ. ५९.१५)। . जल का स्वामी--अथर्ववेद में वरुण एक सार्वभौम
१५)। इसे पश्चिम दिशा का, जल का एवं नागलोक का शासक नहीं, बल्कि केवल जल का नियंत्रक बताया गया
का अधिपति कहा गया है (म. स. ९.७; उ. ८६. है (अ. वे. ३.३ ) । ब्राह्मण ग्रंथों में भी मित्र एवं वरुण |
| २०)। को वर्षा के देवता माने गयें हैं । जलोदर से पीडित
- इसने अन्य देवताओं के साथ 'विशाखयूप' में व्यक्ति का निर्देश वैदिक साहित्य में वरणगृहीत' नाम
तपस्या की थी, जिस कारण वह स्थान पवित्र माना गया से किया गया है (तै. सं. २.१.२.१; श. ब्रा. ४.४. |
है (म. व. ८८.१२)। इसे देवताओं के द्वारा 'जलेश्वर५.११, ऐ, ब्रा. ७. १५)।
पद' पर अभिषेक किया गया था (म. श. ४६.११)। अथर्ववेद में निर्दिष्ट यह कल्पना ऋग्वेद में निर्दिष्ट | सोम की कन्या भद्रा से इसका विवाह होनेवाला था। वरुणविषयक कल्पना से सर्वथा भिन्न है । ऋग्वेद में वरुण | किंतु उसका विवाह सोम ने उचथ्य ऋषि से करा दिया । को नदियों का अधिपति एवं जल का नियामक जरूर | तत्पश्चात् ऋद्ध हो कर इसने भद्रा का हरण किया, किन्तु बताया गया है । किन्तु वहाँ इसे सर्वत्र सामान्य जल से | उचर्थ्य के द्वारा सारा जल पिये जाने पर इसने उसकी नहीं, बल्कि अंतरिक्षीय जल से संबधित किया गया है। यह पत्नी लौटा दी (म. अनु. १५४.१३-२८)। मेघमंडळ के जल में विचरण करता है, एवं वर्षा कराता है। वरप्रदान-अग्नि ने इसकी उपासना करने पर, ऋग्वेद का एक संपूर्ण सूक्त इसकी वर्षा करने की शक्ति को | इसने उसे दिव्य धनुष, अक्षय तरकस एवं कपिध्वज-रथ अर्पित किया गया है (ऋ. ५.६३)। किन्तु वहाँ सर्वत्र | प्रदान किये थे (म. आ. २१६.१-२७) । इसने अर्जुन वरुण का निर्देश नैसर्गिक शक्तियों का संचालन करनेवाले | को पाश नामक अस्त्र प्रदान किया था (म. व. ४२. देवता के रूप में है, जहाँ जल का महत्व प्रासंगिक है। | २७)। ऋचीक मुनि को इसने एक हज़ार श्यामकर्ण अश्व प्रा. च. १०१]
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