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वरुण
प्राचीन चरित्रकोश
व!धामन्
प्रदान किये थे (म. व. ११५.१५-१६)। इसने स्कंद | प्रकार दिये गये हैं:-- रंजन, पृथुरश्मि, विद्वस् एवं बृहको यम एवं अतियम नामक दो पार्षद प्रदान किये थे | निरस् (वायु. ६५.७८; वरत्रिन् देखिये)। (म. श. ४४.४१ पाठ.)। इसने अपने पुत्र श्रुतायुध | वरुथ--एक गंधर्व, जो कश्यप एवं अरिष्टा के पुत्रों को एक गदा प्रदान की थी, एवं उसके प्रयोग के नियम | में से एक था। उसे बताये थे (म. द्रो. ६७.४९)। रावण के बंदिशाला से | २. एक ब्राह्मण, जिसने अपनी कदंबा नामक कन्या सीता की मुक्ति होने के पश्चात्, वह निष्कलंक होने के | दुर्गम नामक असुर को विवाह में दी थी (मार्क. ७२. संबंध में इसने राम को विश्वास दिलाया था (म. व. | ४२)। २७५.२८)।
वरुथप-एक ग्वाला, जो कृष्ण का समवर्ती था परिवार-इसकी ज्येष्ठ पत्नी का नाम देवी (ज्येष्ठा) | (भा. १०.२२.३१)। था, जो शुक्राचार्य की कन्या थीं। उससे इसे बल, अधर्म एवं वरुथिनी--एक अप्सरा, जो अर्जुन के स्वागतपुष्कर नामक एक पुत्र, एवं सुरा नामक एक कन्या उत्पन्न | समारोह में उपस्थित थी (म. व. ४४.२९)। हुई थी (म. आ. ६०.५१-५२; उ. ९६.१२)। वरेण्य-भृगु वारुणि के सात पुत्रों में से एक, जिसे
इसकी अन्य पत्नी का नाम वारुणी अर्थात् गौरी था, विभु नामान्तर प्राप्त था। इसके अन्य छः भाइयों जिससे इसे गो नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था (म. स. ९. के नाम निम्न थे :--च्यवन, शुचि, और्व, शुक्र, वज्रशीर्ष ६.९७*; ९.१०८*))
एवं सवन (म. अनु. ८५.१२६-१२९)।। इसकी तृतीय पत्नी का नाम शीततोया था, जिससे इसे
२. पितरों में से एक। श्रुतायुध नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था (श्रुतायुध देखिये। ३. एक देवगंधर्व, जो कश्यप एवं अरिष्टा के पुत्रों में इनके अतिरिक्त, जनक की सभा का सुविख्यात ऋषि
से एक था।
__४. माहिष्मति देश का एक राजा (गणेश. २.१३१बन्दिन् इसीका ही पुत्र था (म. व. १३४.२४)। रुद्र के यज्ञ से उत्पन्न हुए भृगु, अंगिरस् एवं कवि नामक तीन पुत्रों में से, इसने भृगु का पुत्र के रूप में स्वीकार वर्धा वार्णि--एक राजा, जो वृष्णि राजा का पुत्र
था। इसे 'वाणि' पैतृक नाम प्राप्त था। किया था। इसके कारण यही पुत्र 'भृगु वारुणि' नाम से | सुविख्यात हुआ (म. अनु. १३२.३६; भृगु वारुणि
वर्गा---एक अप्सरा, जो कुबेर की प्रेयसी थी । इसकी देखिये)। अगस्त्य एवं वसिष्ठ ऋषियों को भी मित्रावरुणों
सौरभेयी, समीची, बुदबुदा एवं लता नामक चार सखियाँ के पुत्र कहा गया है (विवस्वत् देखिये)।
थी। २. एक आदित्य, जो बारह आदित्यों में से नौवाँ
| किसी ब्राहाण के शाप के कारण, यह एवं इसकी
चार ही सखियाँ ग्राह बन गयी थी (म. आ. २०८. आदित्य माना जाता है । यह श्रावण माह में प्रकाशित होता है (भवि. बाह्म. ७८)। भागवत के अनुसार, यह
१९)। अर्जुन ने इनका ग्राहयोनि से उद्धार किया, जहाँ .
'पंचाप्सरतीर्थ' नामक तीर्थ का निर्माण हुआ। शुचि (आषाढ ) माह में प्रकाशित होता है, एवं इसकी चौदह सौ किरणें रहती हैं (भा. १२.११)। इसकी पत्नी
वर्चस--सोम नामक वसु का पुत्र, जो अगले जन्म का नाम चर्षणी था, जिससे इसे भगु नामक पुत्र उत्पन्न
में अभिमन्यु बन गया (म. आ. ६०.२१)। हुआ था (भा. ६.१८.४)।
२. एक राक्षस (भा. १२. ११.४०)।
३. सुचेतस् ऋषि का एक पुत्र, जिसके पुत्र का नाम ३. एक मरुत् , जो मरुतों के तीसरे गण में शामिल था।।
| विहव्य था (म. अनु. ३०.६१)। ४. एक देवगंधर्व, जो कश्यप एवं मुनि के पुत्रों में से
| वर्चिन्-एक असुर, जो शंबर नामक दम्यु (असुर) का एक था (म. आ. ५९.४१)।
सहकारी था। इंद्र के द्वारा इसका वध हुआ (ऋ७. वरुणमित्र गोभिल-एक आचार्य, जो मूलमित्र | ९९.५)। ऋग्वेद में अन्यत्र इसे दास भी कहा गया है, नामक आचार्य का शिष्य था (पं. ब्रा. ३)। | एवं इसे वृचीवन्त लोगों से संबंधित किया गया है (ऋ.
वरुत्रिन्–शुक्राचार्य के पुत्र वरत्रिन् का नामान्तर ।। ४.३०.१५, ६.२७.५-७)। वायु में इसके बहिष्ठ एवं सुरयाजक पुत्रों के नाम निम्न- | वक़धामन्--सत्यदेवों में से एक ।
' आगिरस् एवं कवि नामक १४८)।
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