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लक्ष्मी
प्राचीन चरित्रकोश
लक्ष्मी
७१)।
भी शांति से स्वीकार कर, उसे 'श्रीवत्सलांछन' के पद्म में गोकुल की भानु ग्वाले की कन्या राधा को भी रूप में अपने वक्षःस्थल पर धारण किया (भा. १०.८९. लक्ष्मी का ही अवतार कहा गया है। राधा जन्म से ही १-१२)। इस कारण, भृगु अत्यधिक प्रसन्न हुआ, एवं अंधी, गुंगी एवं लूली थी, किंतु उसे लक्ष्मी का अवतार उसके द्वारा दिये गये 'श्रीवत्सलांछन' के रूप में लक्ष्मी जान कर, नारद ने उसका दर्शन लिया था (पन्न. पा. हमेशा के लिए श्रीविष्णु के वक्षःस्थल पर निवास करने लगी।
___ लक्ष्मी के दोष--ब्रह्म में लक्ष्मी एवं दारिद्रता (अलक्ष्मी) ब्रह्मा, विष्णु, महेशादि देवों से भी भृगु जैसे ब्राह्मण
के दरम्यान हुआ एक कल्पनारम्य संवाद प्राप्त है, जो अधिक श्रेष्ठ हैं, एवं पृथ्वी के लक्ष्मी के जनक भी वे ही है,
गोदावरी नदी के तट पर स्थित लक्ष्मीतीर्थ का माहात्म्य ऐसा उपर्युक्त रूपकात्मक कथा का अर्थ प्रतीत होता है।।
बताने के लिए दिया गया है (ब्रह्म. १३७)। इस संवाद साक्षात् श्रीविष्णु को लक्ष्मी प्रदान करनेवाले भृगु ऋषि की
में लक्ष्मी की अत्यंत कठोर शब्दों में निर्भर्त्सना की गई है। इस कथा से ही, ब्राह्मणों की सेवा पूजन आदि से लक्ष्मी एक बार लक्ष्मी एवं अलक्ष्मी के दरम्यान श्रेष्ठ कौन प्राप्त होती है, यह जनश्रुति का जन्म हुआ होगा। इस संबंध में संवाद हुआ था। इस समय लक्ष्मी ने अपना भृगु का शाप--एक बार लक्ष्मी ने लक्ष्मीनगर नामक
| श्रेष्ठत्व बताते हुए कहा, 'मैं जिसके साथ रहूँ, उसका नगर का निर्माण कर, जो इसने अपने पिता भृगु ऋषि को |
इस संसार में सर्वत्र सत्कार होता है, एवं मेरे अनुपस्थिति.
| में निर्धन एवं याचक लोगों की सर्वत्र अवहेलना होती है। प्रदान किया। कालोपरांत इसने भृगु से वह नगर लौट
इस दुर्गति से शिव जैसा देवाधिदेव भी न बच सका, लेना चाहा, किंतु उसने एक बार प्राप्त हुआ नगर लौट | देने से इन्कार कर दिया। इसी संबंध में मध्यस्थता करने
जिस कारण उसकी सर्वत्र उपेक्षा एवं अवहेलना हुई।
| इस पर लक्ष्मी के दोष बताते हुए अलक्ष्मी ने कहा, के लिए आये हुए श्रीविष्णु की भी भृगु ने एक न सुनी, | एवं क्रुद्ध हो कर उसे शाप दिया, 'पृथ्वी पर दस |,
'तुम सदैव पापी, विश्वासघाती, एवं दुराचारी लोगों
में रहती हो, तथा मद्य से भी अधिक अनर्थ पैदा करती . मानवी अवतार लेने पर तुम विवश होंगे' ( पद्म.स. ४)।
हो । राजाश्रित, पापी, खल, निष्ठर, लोभी एवं कायर . . भृगु ऋषि के उपर्युक्त शाप के अनुसार, विष्णु ने
लोगों के घर तुम्हारा निवास रहता है, एवं अनार्य, , पृथ्वी पर दस अवतार लिये, जिन समय लक्ष्मी ने पत्नी
कृतघ्न, धर्मघातकी, मित्रद्रोही एवं अविचारी लोगों से • धर्म के अनुसार दस अवतार ले कर श्रीविष्णु को साथ
तुम्हारी उपासना की जाती है। दिया।
__ अलक्ष्मी ने आगे कहा, 'मेरा निवास धर्मशील, लक्ष्मी के अवतार--लक्ष्मी के इन दस अवतारों में पापभीरू, कृतज्ञ, विद्वान् एवं साधु लोगों में रहता है, एवं निम्नलिखित अवतार प्रमुख है :--१. कमलोद्भव लक्ष्मी पवित्र ब्राह्मण, संन्यासी एवं ध्येयनिष्ठ लोगों से मेरी (वामनावतार); २. भूमि (परशुरामवातार); सीता उपासना की जाती है । इसी कारण काम, क्रोध, औद्धत्य (रामावतार ); ४. रुक्मिणी (कृष्णावतार )(विष्णु. १.९. | आदि तामसी विकारों को मैं दूर रखती हूँ, एवं अपने १४०-१४१; भा. ५.१८.१५, ८.८.८)।
भक्तों को मुक्ति प्रदान करती हूँ' (ब्रह्म. १३७) ब्रह्मवैवर्त में लक्ष्मी के अवतार विभिन्न प्रकार से दिये। भर्तृहरि के अनुसार, उपर्युक्त संवाद में लक्ष्मी एवं गये हैं। वहाँ निर्दिष्ट लक्ष्मी के अवतार, एवं उनके प्रकट | अलक्ष्मी का संकेत संपन्नता एवं दरिद्रता से नही, किन्तु होने के स्थान निम्नप्रकार हैं :--१. महालक्ष्मी (वैकुंठ) लक्ष्मी की तामस उपासना करनेवाले बुभुक्षित लोग एवं २. स्वगलक्ष्मी (स्वर्ग); ३.राधा (गोलोक); ४. राजलक्ष्मी | दरिद्रता में ही तृप्त रहनेवाले सात्विक लोगों की ओर (पाताल, भूलोक ); ५. गृहलक्ष्मी (गृह);६. सुरभि | अभिप्रेत है। .. (गोलोक ); ७. दक्षिणा ( यज्ञ); ८. शोभा (वस्तुमात्र) परिवार विष्णु से इसे बल एवं उन्माद नामक दो (ब्रह्मवे. २. ३५)। महालक्ष्मी के अवतार में, भृगुऋषि के | पुत्र उत्पन्न हुए थे । श्रीसूक्त में इसके निम्नलिखित पत्रों शाप के कारण, इसे हाथी का शीर्ष प्राप्त हुआ था, जिसे | का निर्देश प्राप्त है:- आनंद, कर्दम, श्रीद और चिक्लित । काट कर ब्रह्मा ने इसे महालक्ष्मी नाम प्रदान किया था। इसके धातृ एवं विधातृ नामक दो भाई भी थे, जो (स्कंद. ६.८५)।
| इसी के तरह भृगु ऋषि एवं ख्याति के पुत्र थे । ७८३