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________________ लक्ष्मी लक्ष्मीप्रद सूक्त -- इन सूक्तों में निम्नलिखित दो ग्रंथ प्रमुख माने जाते है:- १. श्रीसूक्त (ऋ. परि. ११)। २. इंद्रकृत लक्ष्मीस्तोत्र, जो विष्णु पुराण में प्राप्त है ( विष्णु. १.९.११५ - १३७ ) । २. दक्ष प्रजापति की एक कन्या, जो धर्मप्रजापति की पत्नी थी (म. आ. ६०-१३) | ३. वीर नामक ब्राह्मण की पत्नी, जो अपने पूर्वजन्म में तोण्डमान नामक राज्य की पद्मा नामक पत्नी थी (भीम. २४. देखिये) । लक्ष्मीनिधि - सीता का बंधु ( पद्म. पा. ११ ) । लगध एक ग्रंथकार, जो 'ऋग्वेद वेदांग ज्योतिष का कर्ता माना जाता है। इसके नाम के लिए कई ग्रंथों में 'लाड' पाउमेद भी प्राप्त हैं। किन्तु के. शं. वा विक्षित के अनुसार, 'डगध' पाठभेद ही स्वीकरणीय है (दिक्षित, भारतीय ज्योतिष पृ. ७२ ) । प्राचीन चरित्रकोश वेदांग ज्योतिष - वेदांग ज्योतिष का समावेश छः वेदांगों में सर्वतोपरि माना जाता है, जिस प्रकार मसुरों की शिखाएँ एवं नागों की मणियों सर्वोपरि रहती है यथा शिक्षा मयूराणां नागानां मणयो यथा। सोगशास्त्राणां ज्योतिष मूर्धनि स्थितम् ॥ (वे. ज्यो. श्लोक ४ ) भारतीय ज्योतिषशास्त्र का मूल ग्रंथ 'वेदांगज्योतिष' माना जाता है, जिससे आगे चल कर ज्योतिषशास्त्र ने संहिता, गणित एवं जातक इन तीन भागों में अपना विकास किया। आर्यभट्ट, वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त एवं भास्कराचार्य जैसे ज्योतिबिंदो ने इस शास्त्र को अभिनव रूप प्रदान किया। लंगाक निर्देशित है, जिससे प्रतीत होता है कि, यह उत्तर काश्मीर अथवा अफगाणिस्थान का निवासी था । । ऐसे महान् शास्त्रों को जन्म देनेवाले 'ऋग्वेदी वेदांग ज्योतिष ' ग्रन्थ में केवल ३६ श्लोक हैं । इसी ग्रंथ का 'यजुर्वेद वेदांगज्योतिष' नामक एक अन्य संस्करण प्राप्त है, जिसमें ४३ लोक प्राप्त है उनमें से ३६ ठोक ऋग्वेदवेदांगज्योतिष के, एवं ७ श्लोक नये है । मॅक्स म्यूलर के अनुसार, इस छोटे ग्रन्थ का उद्देश्य ज्योतिष की शिक्षा देना नहीं है, बल्कि आकाशीय ग्रह आदि के बारे में वह ज्ञान प्रदान करना है, जो वैदिक यज्ञों के दिन एवं मुहूर्त के निश्वयार्थ आवश्यक है। कालनिर्णय इस ग्रन्थ में बतायी गई विपुवास्थिति के आधार पर कै. शं. बा. दिक्षित ने इस ग्रन्थ का काल पाणिनि एवं यास्क के पूर्व अर्थात् ई. पू. १४०० निश्चित किया है (दिक्षित, भारतीय ज्योतिष ८८ पाणिनि देखिये ) । किन्तु कई अन्य अभ्यासकों के अनुसार, तारों के सापेक्ष सूर्य की स्थिति के आधार पर इस ग्रन्थ का रचनाकाल का अनुमान लगाना योग्य नहीं है। इसी कारण कई अन्य अभ्यासकों ने इसका कालनिर्णय निम्न प्रकार दिया है : १. मॅक्सम्यूलर ई. पू. ३ रीं शताब्दी २. वेबर - ई. पू. ५ वीं शताब्दी ; ३. लोकमान्य तिलक— ई. पू. १२६९-११८१ (ओरायन. १ ३७-१८ )४८ विल्यम जोन्स ई. पू. ११८११५ को ई. पू. १३८१६. वि. वि. ई. पू. १२०० । के द्वारा ई. स. १८८९ में प्रकाशित किया गया है। ऋग्वेदऋग्वेद वेदांगज्योतिष का अंग्रेजी अनुवाद प्रो. थिबो `एवं यजुर्वेद वेदांगज्योतिष का मराठी अनुवाद ई. स. १८८५ में प्रसिद्ध हो चुका है, जो के. ज. वा. मोडल के द्वारा किया गया है। लघु - (सो. यदु ) एक राजा, जो वायु के अनुसार यदु राजश का पुत्र था | लध्विन -- अंगिराकुलोत्पन्न, एक गोत्रकार । - लज्जा दक्षप्रजापति की एक कन्या, जो धर्मप्रजापति की पत्नी थी। ( म. आ. ६०.१४) । लता - एक अप्सरा, जो वर्गा नामक अप्सरा की सखी थी । ब्रह्मा के शाप के कारण, इसे ग्राहयोनि में जन्म प्राप्त हुआ था । किन्तु अर्जुन ने इसे ग्राहयोनि से विमुक्त कराया (म. आं. २०८.१९) । २. मेरु की एक कन्या, जो आनीत्रपुत्र इलावृत्त राजा की पत्नी थी ( भा. ५.२.२३ ) । लपिता - एक शार्ङ्ग, जो मंदपाल ऋषि की द्वितीय पानी थी। इसकी सौत का नाम जरितृ था (म. आ. २२०.१७; मंदपाल देखिये) । जन्मस्थान -- वेदांग ज्योतिषशास्त्र का प्रणयन करनेवाला गध एक भारतीय व्यक्ति था, या विदेशी, इसके बारे मैं निश्रित जानकारी अप्राप्य है। इस ग्रन्थ में लगध का जन्मस्थान ३४ | ४६ अथवा ३४ । ५५ अक्षांश पर लब ऐंद्र - एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०.१२१ ) । पाक- एक लोकसमूह जो भारतीय युद्ध में कौरवों के पक्ष में शामिल था। इन्होंने यादव राजा सात्यकि पर आक्रमण किया, जिसने इन्हे परास्त किया ( म. द्रो. ९७. ४८ पाठ - अम्बष्ठ ) । | ७८४
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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