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________________ लक्ष्मी प्राचीन चरित्रकोश लक्ष्मी महाभारत में लक्ष्मी के 'विष्णुपत्नी लक्ष्मी' एवं 'राज्य- | के दरम्यान हुए एक संवाद की जानकारी युधिष्ठिर को दी लक्ष्मी' ऐसे दो प्रकार बताये गये हैं। इनमें से लक्ष्मी | (म. अनु. ११)। हमेशा विष्णु के पास रहती है, एवं राज्यलक्ष्मी राजा इस जानकारी के अनुसार, लक्ष्मी ने रुक्मिणी से कहा एवं पराक्रमी लोगों के साथ घूमती है, ऐसा निर्देश प्राप्त | था, 'सृष्टि के सारे लोगों में प्रगल्भ, भाषणकुशल, दक्ष, निरलस, आस्तिक, अक्रोधन, कृतज्ञ, जितेंद्रिय, वृद्धजनों लक्ष्मी का निवासस्थान कहाँ रहता है, इसका रूप- | की सेवा करनेवाले (वृद्धसेवक ), सत्यनिष्ठ, शांत कात्मक दिग्दर्शन करनेवाली अनेकानेक कथाएँ महा- | स्वभाववाले (शांत ), एवं सदाचारी लोग मुझे सब से भारत एवं पुराणों में प्राप्त है, जिनमें निम्नलिखित कथाएँ अधिक प्रिय हैं, जिनके यहाँ रहना मैं विशेष पसंद करती प्रमुख हैं: (१) लक्ष्मी-प्रल्हादसंवाद--असुरराज प्रल्हाद ने 'निर्लज्ज, कलहप्रिय, निंद्राप्रिय, मलीन, अशांत, एवं एक ब्राह्मण को अपना शील प्रदान किया, जिस कारण असमाधानी लोगों का मैं अतीव तिरस्कार करती हूँ, क्रमानुसार उसका तेज, धर्म सत्य, वृत्त, बल एवं अंत जिस कारण ऐसे लोगों का मैं त्याग करती हूँ। में उसकी लक्ष्मी उसे छोड़ कर चले गये । तत्पश्चात् लक्ष्मी | महाभारत में अन्यत्र प्राप्त जानकारी के अनुसार, ने प्रल्हाद को साक्षात् दर्शन दे कर उपदेश दिया, 'तेज़, | गायें एवं गोबर में भी लक्ष्मी का निवास रहता है (म. धर्म, सत्य, वृत्त, बल एवं शील आदि मानवी गुणों में | अनु. ८२)। मेरा निवास रहता है, जिन में से शील अथवा चारित्र्य | जन्म--देवासुरों के द्वारा किये गये समुद्रमंथन से, मुझे सबसे अधिक प्रिय है। इसी कारण सच्छील आदमी. | चंद्र के पश्चात् लक्ष्मी का अवतार हुआ (म.आ. १६.३४; के यहाँ रहना मैं सबसे अधिक पसंद करती हूँ। 'शीलं विष्णु. १.८.५; भा. ८.८.८; पद्म. सु. ४)। इस परं भूषणम् , इस उक्ति का भी यही अर्थ है ' (म. शां. 'अयोनिज' देवता को ब्रह्मा ने श्रीविष्णु को प्रदान १२४.४५-६०)। किया, एवं विष्णु ने इसे पत्नी के रूप में स्वीकार (२) लक्ष्मी-इंद्रसंवाद--असुरराज प्रह्लाद के समान, किया। पश्चात् यह उसके सन्निध क्षीरसागर में निवास उसका पौत्र बलि का भी लक्ष्मी ने त्याग किया। बलि का करने लगी। . त्याग करने की कारणपरंपरा इंद्र से बताते समय लक्ष्मी | ब्रह्मन के पत्र भग ऋषि की कन्या के रूप में लक्ष्मी ने कहा, 'पृथ्वी के सारे निवासस्थानों में से भूमि, (वित्त) पृथ्वीलोक में पुनः अवतीर्ण हुई। इस समय, दक्षकन्या जल (तीर्थादि), अग्नि ( यज्ञादि) एवं विद्या (ज्ञान) ख्याति इसकी माता थी (विष्णु. १.८) । कालोपरान्त ये चार स्थान मुझे अत्यधिक प्रिय हैं । सत्य, दान, व्रत, | इसका विवाह विष्णु के एक अवतार नारायण से हुआ, तपस्या, पराक्रम, एवं धर्म जहाँ वास करते हैं, वहाँ जिससे इसे बल एवं उन्माद नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए। मेरा भी निवास रहता है। देवब्राह्मणों से नम्रता के साथ ब्रह्मवैवर्त के अनुसार, विष्णु के दक्षिणांग से लक्ष्मी व्यवहार करनेवाला मनुष्य मुझे अत्यधिक प्रिय है। । का, एवं वामांग से लक्ष्मी के ही अन्य एक अवतार राधा लक्ष्मी ने आगे कहा, 'चोरी, वासना, अपवित्रता, | का जन्म हुआ (ब्रह्मवै. २.४७.४४)। एवं अशांति से मैं अत्यधिक घृणा करती हूँ, जिनके | भृगु से वरदान-विष्णु के वक्षस्थल में लक्ष्मी का आधिक्य के कारण क्रमशः भूमि, जल, अग्नि, एवं विद्या निवासस्थान कैसे हुआ, इस संबंध में एक रूपकात्मक में स्थित मेरे प्रिय निवासस्थानों का मैं त्याग कर देती हूँ। | कथा पुराणों में प्राप्त है। 'बलि दैन्य ने उच्छिष्टभक्षण किया, एवं देवब्राह्मणों | स्वायंभुव मनु के यज्ञ के समय, ब्रह्मा, विष्णु, महेश का विरोध किया, जिस कारण वह मेरा अत्यंत प्रिय इन तीन देवों में से श्रेष्ठ कौन, इसका निर्णय करने का व्यक्ति हो कर भी, आज मैं उसका त्याग कर रही हूँ। कार्य भृगु ऋषि पर सौंपा गया। इस संबंध में जाँच (म. शां. २१)। लेने के लिए तीनों देवों के पास भगु स्वयं गया। उस (३) लक्ष्मी-रुक्मिणीसंवाद-लक्ष्मी के निवासस्थान | समय, ब्रह्मा एवं शिव ने भृगु का बरी प्रकार से अपमान से संबंधित एक प्रश्न युधिष्ठिर ने भीष्म से पूछा था, किया । केवल विष्णु ने ही भृगु का उचित आदरसत्कार जिसका जवाब देते समय भीष्म ने लक्ष्मी एवं रुक्मिणी | किया, एवं भृगु के द्वारा छाती पर किया गया लत्ताप्रहार ७८२
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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