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लक्ष्मण
प्राचीन चरित्रकोश
लक्ष्मी
तुलसीद्वारा चित्रित लक्ष्मण एक तेजःपुंज वीर है । वह पुत्रपौत्रादि परिवार, धनधान्यविपुलता आदि की प्राप्ति स्वभाव से उग्र एवं असहिष्णु ज़रूर है, किन्तु इसका क्रोध के लिए लक्ष्मी एवं श्री की उपासना की जाती है। इसी राम के प्रति इसके अनन्य सेवाव्रत एवं उत्कट अनुराग | कारण श्रीसूक्त में प्रार्थना की गयी हैसे प्रेरित है। इसी कारण इसका असहिष्णु स्वभाव मोहक
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥ २॥ लगता है।
लक्ष्मणा-एक अप्सरा, जो कश्यप एवं मुनि की (सुवर्ण, गायें, अश्व एवं चाकरनौकर आदि परिवार कन्या थी । अर्जुन के जन्मोत्सव में इसने नृत्य किया | से युक्त लक्ष्मी मुझे प्राप्त हो)। था (म. आ. ११४.५१)। पाठभेद- लक्षणा'।
धनधान्यादि भौतिक संपत्ति (धनलक्ष्मी) ही नही,
के स्वयंवर में श्रीकष्ण | बल्कि सैन्यसंपत्ति (सैन्यलक्ष्मी) का भी लक्ष्मी में ही पुत्र सांब ने इसका हरण किया था (भा. १०.६८.१: | समावेश किया जाता थाबलराम एवं सांब देखिये)।
अश्वपूर्वी रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम् । ३. दुष्यन्त राजा की प्रथम पत्नी (म. आ. ८९. श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ॥ ३॥ ८७७* ) । इसे लाक्षी नामान्तर भी प्राप्त था। इसके
(अश्व, रथ, हाथी आदि से सुसज्जित सैन्य का रूप पुत्र का नाम जनमेजय था.।
धारण करनेवाली लक्ष्मी मुझे प्राप्त हो, एवं उसका निवास लक्ष्मणा-माद्री-मद्र देश के बृहत्सेन राजा की
चिरंतन मेरे घर में ही हो)। कन्या, जो कृष्ण के पटरानियों में से एक थी (पद्म. सू. १३) । इसे लक्षणा नामान्तर भी प्राप्त था (म. स
| लक्ष्मीदेवता की उत्क्रांति-ऐश्वर्य प्रदान करनेवाले परि. १. क्र.२१. पंक्ति. १२५५-१२५६)।
'लक्ष्मी' देवता की कल्पना अथर्ववेदकालीन है। उस स्वयंवर--द्रौपदीस्वयंवर के भाँति इसके स्वयंवर की
ग्रंथ में अनेक 'भावानात्मक' देवताओं का निर्देश प्राप्त
ग्रंथ म . भी रचना की गई थी। इसके स्वयंवर की शर्त थी कि,
है, जिनकी उपासना से प्रेम, विद्या, बुद्धि, वाक्चातुर्य उपर टंगी मछली की छाया नीचे रखे जलपात्र में देख
आदि इच्छित सिद्धिओं का लाभ प्राप्त होता है । अथर्वकर जो शरसंधान करेगा, उसीके साथ इसका विवाह
वेद में निर्दिष्ट ऐसी देवताओं में काम (प्रेमदेवता), सरस्वती होगा।
(विद्या), मेधा (बुद्धि), वाक् (वाणी) आदि देवता लक्ष्मणा के स्वयंवर में श्रीकृष्ण के अतिरिक्त जरासंध, ।
प्रमुख हैं, जिनमें ऐश्वर्य प्रदान करनेवाली लक्ष्मी देवता का
प्रमुखता से निर्देश किया गया है। अंबष्ठ, शिशुपाल, भीम, दुर्योधन, कर्ण, अर्जुन आदि | महाधनुर्धर उपस्थित थे। किन्तु उनमें से कोई भी वीर | स्वरूपवर्णन--श्रीसूक्त में लक्ष्मी का स्वरूपवर्णन प्राप्त मत्स्यभेद में सफल न हुए । अर्जुन का बाण भी मत्स्य- है, जहाँ इसे हिरण्यवर्णा, पद्मस्थिता, पनवर्णा, पमसंधान न कर सका, एवं मत्स्य को स्पर्श करता हुआ उपर | मालिनी, पुष्करिणी, आदि स्वरूपवर्णनात्मक विशेषण से निकल गया । अन्त में मत्स्य का भेद कर, कृष्ण ने | प्रयुक्त किये गये हैं। वाल्मीकि रामायण में प्राप्त इसके इसका हरण किया, एवं इसे अपनी आठ पटरानियों में | स्वरूपवर्णन में, इसे शुभ्रवस्त्रधारिणी, तरुणी, मुकुटधारिणी, एक स्थान दिया।
कुंचितकेशा, चतुर्हस्ता, सुवर्णकान्ति, मणिमुक्तादिभूषिता परिवार-इसे निम्नलिखित दस पुत्र थे:-प्रघोष, | कहा गया है (वा. रा. बा. ४५)। पुराणों में वर्णित लक्ष्मी गात्रवत् , सिंह, बल, प्रबल, ऊर्ध्वग, महाशक्ति, सह, | कमलासना, कमलहस्ता, एवं कमलमालाधरिणी है। एरावतों ओज एवं अपराजित (भा. १०.५८.५७; ६१.१५)। के द्वारा सुवर्णपात्र में लाये हुए तीर्थजल से यह स्नान
लक्ष्मण्य--ध्वन्य नामक आचार्य का पैतृक नाम | (सुस्नात) करती है, एवं सदेव विष्णु के वक्षःस्थल में (ऋ. ५.३३.१०)।
| रहती है (विष्णु. १.९.९८-१०५)। लक्ष्मी--समुद्र से प्रकट हुई एक देवी, जो भगवान् | निवासस्थान--लक्ष्मी क्षीरसागर में अपने पति विष्णु की पत्नी मानी जाती है।
श्रीविष्णु के साथ रहती है, एवं अपने अन्य एक एश्वर्य का प्रतीकरूप देवता मान कर, ऋग्वेदिक श्रीसूक्त | अवतार राधा के रूप में कृष्ण के साथ गोलोक में रहती में इसका वर्णन किया गया है। समृद्धि,संपत्ति,आयुरारोग्य | है (राधा देखिये)।
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