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________________ प्राचीन चरित्रकोश लक्ष्मण सुषेण तथा हनुमत् के साहाय्य से यह पुनः स्वस्थ हुआ के संबंध में एक कल्पनारम्य कथा प्राप्त है । लक्ष्मण स्वयं शेषनाग का अवतार था, एवं रावणपुत्र इंद्रजित् की पत्नी सुलोचना शेषनाग की ही कन्या थी। इस कारण एक दृष्टि से इंद्रजित् इसका दामात होता था । रामरावण - युद्ध में अपने दामात इंद्रजित् का वध करने का जो पाप इसे लगा, उसके निष्कृति के लिए इसने हृषिकेश में एक हज़ार वर्षों तक वायुभक्षण कर के तप किया । लक्ष्मण के इस तपश्चर्या के स्थान में ही इसका यह मंदिर बनवाए जाने की लोकश्रुति प्राप्त है । परिवार अपनी उर्मिला नामक पत्नी से इसे अंगद एवं चंद्रकेतु नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए ( वा. रा. उ. १०२; राम दाशरथि देखिये ) | चरित्र-चित्रण -- लक्ष्मण परमक्रोधी, शूरवीर था, एवं राम के प्रति अटूट भक्तिभावना रखता था । इसका क्रोधी स्वभाव दर्शानेवाले अनेक प्रसंग वाल्मीकिरामायण में प्राप्त है, जिनमें निम्नलिखित तीन प्रमुख है:-- ( १ ) दशरथ की आलोचना- राम के वनगमन के संबंध में अपने पिता दशरथ की आज्ञा सुन कर इसने दशरथ राजा की अत्यंत कटु आलोचना की । ( २ ) भरत से भेंट - - राम के वनवासकाल में, भरतं जब उससे मिलने आया, तब उसे शत्रु समझ कर, यह उससे युद्ध करने के लिए प्रवृत्त हुआ। ( ३ ) सुग्रीव की आलोचना - वालिवध के पश्चात्, राम को दी गयी अपनी आन भूल कर सुग्रीव विलास आदि में निमग्न हुआ। उस समय लक्ष्मण ने राम का संदेश सुना कर उसकी अत्यन्त कटु आलोचना की, एवं यह सुग्रीव का वध करने के लिए प्रवृत्त हुआ । किन्तु सुग्रीवपत्नी तारा ने इसका - राग, शान्त किया । इन सारे प्रसंगों से लक्ष्मण के क्रोधीस्वभाव पर काफी प्रकाश पड़ता है। किन्तु इसकी फोधभावना अन्याय के प्रतिकार के लिए अथवा राम की रक्षा के लिए ही प्रकट होती थी। लक्ष्मण (वा.रा.यु. १०२ ) । सीतात्याग — राम को अयोध्या का राज्य पुनः प्राप्त होने पर, उसने लोकनिंदा के कारण, सीता का त्याग करने का निश्चय किया। उस समय राजा के नाते उसका कर्तव्य बताते समय लक्ष्मण ने कहा, 'सृष्टि का यही नियम है कि, यहाँ संयोग का अन्त वियोग में, एवं जीवन का अन्त मृत्यु में होता है पत्नी, पुत्र, मित्र एवं संपत्ति में अधिक आसक्ति रखने से दुःख ही दुःख उत्पन्न होता है। इसी कारण वियोग से अपन्न होनेवाले दुःख से भी कर्तव्य अधिक श्रेष्ठ है। मृत्युक्ष्मण के बेहत्याग के संबंध में अनेक कथा वाल्मीकि रामायण में प्राप्त हैं। एक बार कालपुरुष एक तपस्वी के रूप में राम के पास आया, एवं उसने राम से यह प्रतिज्ञा करा ली कि, वह उससे एकान्त में बात-चित करेगा, वहाँ अन्य कोई व्यक्ति न हो। राय राम ने लक्ष्मण को द्वार पर खड़ा किया, एवं आज्ञा दी कि जो व्यक्ति अंदर आयेगा उसका वध किया जायेगा ( वा. रा. उ. १०३.१३ ) । एकान्त में कालपुरुष ने राम को ब्रह्मा का संदेश बिदित किया कि, रामावतार की समाप्ति समीप आ रही है। इतने में दुर्वास ऋषि लक्ष्मण के पास आयें उन्होंने राम से उसी समय मिलने की इच्छा की, एवं कहा, 'अगर मेरी यह इच्छा पूर्ण न होगी, तो राम, उसके तीन बन्धु एवं उनकी संतति को मैं शाप से नष्ट कर दूंगा'। क्ष्मण ने वंशनाश की अपेक्षा अपना ही नाश स्वीकरणीय समझा, एवं दुर्वासस् को राम के पास जाने के लिए अनुज्ञा दी। पश्चात् राम ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार, लक्ष्मण को देहत्याग करने की भाशा दी (बा. रा. उ. १०६.१३ ) | एवं इस पर लक्ष्मण ने सरयू नदी के तट पर जा कर योगमार्ग से श्वास का निरोध पर देहत्याग किया (बा. रा. उ. १०६ ) । इसकी मृत्यु के पश्चात् स्वयं इंद्र ने इसका शरीर स्वर्ग में ले लिया, एवं वहाँ उपस्थित देवताओ ने इसे विष्णु का चतुर्थी मान कर इसकी पूजा की (वा. रा. उ. १०३-१०६) । इसने जहाँ देहत्याग किया, वहाँ 'सहस्रधारा' नामक तीर्थ का निर्माण हुआ ( स्कंद. २.८.२ ) । हिमालय की तराई में हृषिकेश नामक स्थान में एक मंदिर है, जहाँ लक्ष्मण झूला नामक एक पूल है। इस स्थान ૭૯૦ मानस में-- तुलसी के 'रामचरित मानस' में लक्ष्मण राम का अभिन्न संगी है। इस कारण लक्ष्मण का चरित्र राम से किसी प्रकार भिन्न नहीं है। इसके हृदय में भक्ति, ज्ञान एवं कर्मयोग की त्रिवेणी प्रवाहित होती हुई होती है बंदउँ लछिमन मन पद जल जाता सीतल सुभग सुखदाता | रघुपति कीरति विमल पताका, दंड समान भय उस राका ( मानस. बा. १६.५ - ६ )।
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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