SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 801
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लक्ष्मण प्राचीन चरित्रकोश लक्ष्मण के साथ पंपासरोवर के किनारे पहुँच गया । वहाँ पहुँचते | कर इंद्रजित् के सेना का संहार किया। उस समय अपना ही सीता के विरह में शोक करनेवाले राम को इसने अति | यज्ञ अधुरा छोड़ कर, वह लक्ष्मण के साथ द्वंद्वयुद्ध करने स्नेह के दुष्परिणाम समझाते हुए कहा, 'इस सृष्टि में | के लिए युद्धभूमि में प्रविष्ट हुआ। इंद्रजित् के इस पंचम प्रिय व्यक्तियों का विरह अटल है, यह जान कर तुम्हें | युद्ध में, लक्ष्मण ने उसके सारथि का वध किया, एवं उसे अपने मन को काबू में रखना आवश्यक है (वा. रा.कि. | पैदल ही लंका को भाग जाने पर विवश किया। इन्द्रजित् के साथ हुए अंतिम छठे युद्ध में, लक्ष्मण ने ऋष्यमूक पर्वत पर रहनेवाले सुग्रीव आदि वानरों ने, | एक वटवृक्ष के नीचे ऐंद्र अस्त्र से उस का वध किया, 'सीता के द्वारा अपने उत्तरीय में बाँध कर फेंके गये जिस समय वह निकुंभिला के मंदिर से होम समाप्त अलंकार इन्हें दिखायें। इस समय इसने सीता के समस्त कर बाहर निकल रहा था (वा. रा. यु. ८५-८७; म.व. अलंकारों से केवल उसके नूपुर ही पहचान लिये, एवं | २७३.१६-२६)। इंद्रजित् का वध करना अत्यधिक कठिन कहा था। किन्तु विभीषण की सहायता से, इंद्रजित्का अनु. नाहं जानामि केयूरे, नाहं जानामि कुण्डले। ष्ठान पूर्ण होने के पूर्व ही उसका वध करने में यह यशस्वी नूपुरे त्वमिज़ानामि, नित्यं पादाभिवन्दनात् ॥ हुआ। इंद्रजित् की मृत्यु से राम-रावण युद्ध का सारा रंग (वा. रा. कि. ६.२२) ही बदल गया। (मैं सीता के बाहुभषण या कुण्डल नहीं पहचान | इंद्रजित् को ब्रह्मा से यह वरदान प्राप्त था कि, वह सकता । किन्तु उसके नित्यपादवंदन के कारण,उसके केवल उसी व्यक्ति के द्वारा ही मर सकता है, जो बारह वर्ष तक नू पुर ही पहचान सकता हूँ।) आहार निद्रा लिये बगैर रहा हो। अयोध्यात्याग के राम-रावण-युद्ध-राम-रावण युद्ध में राम का युद्ध- | उपरान्त वनवास के बारह वर्षों में, लक्ष्मण आहारनिपुण सलाहगार एवं मंत्री का कार्य यह निभाता रहा। निद्रारहित अवस्था में रहा था, जिस कारण यह युद्ध के शुरू में ही रावणपुत्र इंद्रजित् ने राम एवं | इंद्रजित् का वध कर सका (आ. रा. सार. ११)। लक्ष्मण को नागपाश में बाँध लिया, एवं इन्हें मूछित | इंद्रजित् के वध के पश्चात्, लक्ष्मण ने उसका अवस्था में युद्धभूमि में छोड़ कर वह चला गया (वा.रा. | दाहिना हाथ काट कर उसके घर की ओर फेंक यु. ४२-४६)। बाद में होश में आने पर, राम ने | दिया. एवं बाया हाथ रावण की ओर फेंक दिया। पश्चात् लक्ष्मण को मूछित देख कर, एवं इसे मृत समझ कर | इसके द्वारा काटा गया इंद्रजित् का सर इसने राम को अत्यधिक विलाप करते हुए कहा, दिखाया (आ. रा. १.११.१९०-१९८)। शक्या सीतासमा नारी मर्त्यलोके विचिन्वता । राक्षससंहार-इंद्रजित् के अतिरिक्त लक्ष्मण ने निम्नन लक्ष्मणसमो भ्राता सचिवः सांपरायिकः॥ लिखित राक्षसों का भी वध किया था:-विरूपाक्ष (वा. रा. यु. ४९.६) | (वा. रा. यु. ४३); अतिकाय (वा. रा. यु. ६९-७१)। (इस मृत्युलोक में सीता के समान स्त्री दैववशात् | महाभारत के अनुसार कुंभकर्ण का वध भी लक्ष्मण के मिलना संभव है। किन्तु मंत्री के समान कार्य करनेवाला, | द्वारा हुआ था (म. व. २७१.१७; स्कंद, सेतुमहात्म्य. एवं युद्ध में निपुण लक्ष्मण जैसा भाई मिलना असंभव है)। ४४) । किन्तु काल्मीकिरामायण के अनुसार, कुंभकर्ण का पश्चात् गरुड के आने पर राम एवं लक्ष्मण नागपाश वध राम के द्वारा ही हुआ था। से विमुक्त हो कर, युद्ध के लिए पुनः सिद्ध हुयें । रावण से युद्ध--इंद्रजित् के पश्चात् , रावण स्वयं युद्धभूमि . इंद्वाजत्वध--रावण के पुत्र इंद्रजित् के साथ राम | में उतरा, जिस समय लक्ष्मण ने विभीषण के साथ उसका एवं लक्ष्मण ने छः बार युद्ध किया। इनमें से पहले तीन | सामना किया। इस युद्ध में रावण ने विभीषण की ओर बार इंद्रजित् के द्वारा अदृश्य युद्ध किये गयें। चौथे युद्ध | एक शक्ति फेंकी, जिसे लक्ष्मण ने छिन्नविच्छिन्न कर दिया। के पूर्व इंद्रजित् ने इस युद्ध में अजेय बनने के लिए | पश्चात् रावण के द्वारा फेंकी गयी अमोघा शक्ति इसके यज्ञ प्रारंभ किया। किन्तु उस यज्ञ में बाधा डालने के | छाती में लगी, जिससे यह मूछित हुआ। राम ने लक्ष्मण लिए लक्ष्मण ने हनुमत् , अंगद आदि वानरों को साथ लें | के छाती में घुसी हुई उस शक्ति को निकाल दिया, एवं ७७९
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy