SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 797
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रोहिणी प्राचीन चरित्रकोश रोहीतक । रोहिणी--चन्द्रमा की पत्नी, जो दक्ष प्रजापति की लिए, इस बलि के रूप में प्रदान करने का आश्वासन सत्ताईस कन्याओं में से एक थी । यह रूपयौवन में अपनी | हरिश्चन्द्र ने वरुण देवता को दिया था। अपत्यवात्सल्य • अन्य बहनों की अपेक्षा अधिक श्रेष्ठ थी, जिस कारण | के कारण, हरिश्चन्द्र अपना यह आश्वासन बाईस वर्षों तक यह अपने पति की हृदयवल्लभा थी। इस कारण, | पूरा न कर सका। इसकी बहने इससे नाराज हुयीं, एवं इसके पिता दक्ष ने अपने पिता के आश्वासन का रहस्य ज्ञान होते ही, भी चन्द्रमा को क्षयरोगी बनने का शाप दिया (म. श. | उससे छुटकारा पाने के लिये यह अरण्य में भाग गया। ३४.५५) । इसी प्रकार की कथा शिवपुराण में भी किन्तु वरुण को यह ज्ञात होते ही, उसने इसके पिता प्राप्त है ( शिव. कोटि. १४)। हरिश्चन्द्र के उदर में रोग उत्पन्न किया, जिसकी वार्ता ___ एक नक्षत्र के रूप में इसे आकाश में अक्षय्यस्थान | सुनते ही यह अयोध्या लौट आया। किन्तु इसके पुरोहित प्राप्त हुआ था, जो इसके द्वारा किये गये गौरीव्रत का फल देवराज वसिष्ठ ने इसे पुनः एकबार विजनवासी होने की , था (भवि. ब्राहा. २१)। सलाह दी। ___ परिवार--इसे बुध नामक एक पुत्र, एवं सुरूपा, हंस ___ इस प्रकार बाईस वर्ष बीत जाने के बाद, इसे भार्गव काली, भद्रा एवं कामदुधा नामक चार कन्याएँ थीं। वंश के अजीगत ऋषि का मँझला पुत्र शुनःशेप आ मिला, जो सौ गायों के मोल में इसके बदले वरुण को बलि जाने २. वसुदेव की एकं पत्नी, जो बलराम की माता थी | लिये तैयार हुआ। तत्पश्चात् हुए यज्ञ में विश्वामित्र ने (म. मौ. ८.१८; भा. २४.४५, पन. सृ. १३)। बलराम शुनःशेप की यज्ञस्तंभ से मुक्तता की, एवं उसे अपना पुत्र का गर्भ पहले देवकी के उदर में था, जो योगमाया के | मान लिया (शुनःशेप देखिये; भा. ९.७.७-२५, ब्रह्म कारण इसके उदर में प्रविष्ट हुआ ! उस समय यह गोकुल | १०४)। में रहती थी (भा. १०.५-७; वसुदेव देखिये)। कृष्णनिर्याण के पश्चात् इसने अग्निप्रवेश कर देहत्याग | विश्वामित्र की दक्षिणा की पूर्ति करने के लिए, हरिश्चन्द्र किया (ब्रह्म. २१२.४)। बलराम के अतिरिक्त, इसे ने इसे काशी नगरी के वृद्ध ब्राह्मण को बेचा था। विश्वामित्र ' एकानंगा नामक एक कन्या एवं रोहिताश्व नामक पुत्र |' के द्वारा ली गई सत्वपरीक्षा में, इसे सर्पदंश हो कर यह मृत भी हुआ था, किन्तु पश्चात् देवताओं की कृपा से यह • उत्पन्न हुए थे। ३. कृष्ण की पत्नियों में से एक। पुनः जीवित हुआ। . ४. एल गाय जो कश्यप एवं सुरभि की कन्याओं में हरिश्चन्द्र के पश्चात् यह अयोध्या का राजा हआ. से एक थी । इसकी विमला एवं अनला नामक दो कन्याएँ | जहाँ इसने रोहितपुर नामक दुर्गयुक्त नगरी की स्थापना थी, जिनसे आगे चल कर सृष्टि के गाय एवं वृषभों का की । वहाँ इसने काफ़ी वर्षों तक राज्य किया। अंत में '- -वंश उत्पन्न हुआ (म. आ. ६०.६५)। विरक्ति प्राप्त होने पर इसने रोहितपुर नगरी एक ब्राह्मण ५. हिरण्यकशिपु की पत्नी, जो भानु नामक अग्नि की को दान में दी, एवं यह खर्लोक चला गया। ___कन्या थी। इसकी माता का नाम निशा था, जो भानु | परिवार-इसकी पत्नी का नाम चंद्रवती था, जिससे अग्नि की तृतीय पत्नी थी। यह 'स्विष्टकृत' मानी गयी| इसे हरित नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था (ह. वं. १.१३)। है, जिस अशुभ कर्म के कारण यह हिरण्यकशिपु की। २. लोहित ऋषि का नामांतर ( विश्वामित्र देखिये)। पत्नी हो गई। | रोहितक--लोहितक देश का यवन राजा, जिसे कर्ण रोहित-(सू.इ.) एक सुविख्यात इक्ष्वाकुवंशीय राजा, ने अपने दक्षिण दिग्विजय में जीता था (म. व. परि.१. जो हरिश्चन्द्र राजा का पुत्र था। विष्णु एवं मार्कंडेय | क्र. २४. पंक्ति ६७) में इसे रोहिताश्व, एवं रोहितास्य कहा गया है (मार्क | रोहिताश्व--(सो. वसु.) वसुदेव का रोहिणी से २.७-९)। इसकी माता का नाम तारामती था। उत्पन्न पुत्र। शुनःशेपाख्यान--ऐतरेय ब्राह्मण में प्राप्त शुनःशेप संबंधी २. हरिश्चन्द्रपुत्र रोहित राजा का नामान्तर। सुविख्यात कथा में इसका निर्देश प्राप्त है (ऐ. ब्रा.७.१४; रोहितास्य--हरिश्चन्द्र पुत्र रोहित राजा का नामान्तर। सां.श्री. १५.१८.८)। हरिश्चन्द्र का यह पुत्र वरुण देवता रोहीतक-एक लोकसमूह, जिसे नकुल ने अपने की कृपा से उत्पन्न हुआ था। इस कृपा का बदला चुकाने के राजसूययज्ञीय पश्चिम दिग्विजय के समय जीता था (म. ७७५
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy