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________________ रोमहर्षण प्राचीन चरित्रकोश रोहक ग्रंथ के कुल बारह अध्याय है, एवं उसमें शैवसांप्रदाय के | उग्रश्रवस् उच्चश्रेणि के सूत प्रतीत होते हैं । कीचक, कर्ण तत्त्वों का प्रतिपादन किया गया है। आदि राजाओं को भी महाभारत में सूतपुत्र कहा गया ३. सूतगीता--सूत-व्याससंवादात्मक यह ग्रंथ सूत | है । किन्तु वहाँ उनके सूत जाति पर नहीं, बल्कि उनके संहिता के यज्ञवैभवकाण्ड में अंतर्भूत है। इस ग्रंथ के हीन जन्म की ओर संकेत प्रतीत होता है। कुल आठ अध्याय हैं, एवं उसमें शैवसांप्रदाय के मतों का वैदिक साहित्य में राजकर्मचारी के नाते सूतों (रथपालों) प्रतिपादन किया गया है। इस ग्रंथ पर भी माधवाचार्य का निर्देश प्राप्त है (पं. बा. १९.१.४, का. सं. १५.४)। की टीका उपलब्ध है। भाष्यकार इसमें राजा के सारथि एवं अश्वपालक का आशय सूतजाति की उत्पत्ति-जैसे पहले ही कहा गया है, देखते हैं । एग्लिंग के अनुसार, ये लोग चारण एवं राजकवि रोमहर्षण का निर्देश अनेकानेक प्राचीन ग्रंथों में थे। महाभारत में भी सूतों का निर्देश राजकीय अग्रदूत 'सूत' नाम से प्राप्त है, जो वास्तव में इसके जाति | एवं चारण के रूप में आता है। का नाम था । इस जाति के उत्पत्ति के संबंध में एक कथा | यजुर्वेद संहिता में इनके लिए 'अहन्ति' (वा. सं. वाय में प्राप्त है । पृथु वैन्य राजा के द्वारा किये गये १६.१८) अथवा 'अहन्त्य' (तै. सं. ४.५.२.१) यज्ञ में, यज्ञीय ऋत्विजों के हाथों एक दोषाहं कृति हो गई। शब्द प्रयुक्त किया गया है, जो एक साथ ही चारण एवं सोम निकालने के लिए नियुक्त किये गये दिन (सुत्या), | अग्रदूत के इनके कर्तव्य की ओर संकेत करता है। ऐन्द्र हविर्भाव में बृहस्पति का हविभाग गलती से एकत्र | राजसेवकों में इनकी श्रेणि महिषी एवं ग्रामणी इन किया गया. एवं उसे इंद्र को अर्पण किया गया। इस दोने के बीच मानी जाती थी (श. बा.५.३.१.५)। . प्रकार, शिष्य इंद्र के हविर्भाग में गुरु बृहस्पति का हविर्भाग | जैमिनि अश्वमेध में सूत जाति का निर्देश सेवक जातियों संमिश्र करने के दोषार्ह कर्म के कारण, मिश्रजाति के सूत में किया गया है, एवं सत, मागध एवं बन्दिन् लोग लोगों की उत्पत्ति हो गई। | क्रमशः प्राचीन, मृत, एवं वर्तमान राजाओं के इतिहास क्षत्रिय पिता एवं ब्राह्मण माता से उत्पन्न संतान को एवं वंशावलि सम्हालने का काम करते थे, ऐसा निर्देश प्रायः 'सूत' कहते थे । किन्तु कौटिलीय अर्थशास्त्र में | प्राप्त है (जै. अ. ५५.४४.१)। मिश्रजाति के सूत लोग सूतवंशीय लोगों से अलग बताये इससे प्रतीत होता है कि, मुगल बादशहाओं गये हैं। पुराणों में इन लोगों के कर्तव्य निम्नप्रकार | के बखरनवीस जिस के बखरनवीस जिस प्रकार का काम करते थे, . बताये गये है वही काम प्राचीन काल में सूत लोगों पर निर्भर स्वधर्म एवं सूतस्य सद्भिदृष्टः पुरातनैः । था। इनके समवर्ती मागध एवं बन्दिन् लोग राजा के देवतानामृषीणां च राज्ञां चामिततेजसाम् ॥ स्तुतिपाठक का काम ही केवल करते थे, जिस कारण वे वंशानां धारण कार्य श्रुतानां च महात्मनाम् । सूत लोंगों से काफी कनिष्ठ माने जाते थे। सूत एवं मागध लोगों का देश पुराणों में क्रमशः अनूप एवं मगध बताया इतिहासपुराणेषु दिष्टा ये ब्रह्मवादिभिः ॥ गया है। पद्म में पृथु बैन्य राजा के द्वारा सूत, मागध, (वायु. १.२६-२८; पद्म. सु. २८)। बन्दिन् एवं चारण लोगों को कलिंग देश दान में देने का ( देवता, ऋषि एवं राजाओं में से श्रेष्ठ व्यक्तियों के निर्देश प्राप्त है( पद्म. भू. २९.)। वंशावलि को इतिहास, एवं पुराण में ग्रथित एवं संरक्षित | पन के अनुसार.सूत लोगों को वेदों का अधिकार प्राप्त करना, यह सूत लोगों का प्रमुख कर्तव्य है)। था, एवं इनके आचारविचार भी ब्राह्मण जाति जैसे थे । किन्तु सूतों का यह कर्तव्य उच्च श्रेणि के सूतों के लिए मागध लोगों को वेदों का अधिकार प्राप्त न था, जो उनकी ही कहा गया है। इनमें से मध्यम श्रेणि के लोग क्षात्रकर्म | कनिष्ठता दर्शाता है। करते थे, एवं नीच श्रेणि के लोग रथ, हाथी एवं अश्व का परिवार-इसके पुत्र का नाम उग्रश्रवस् था, जिसे सारथ्यकर्म करते थे। इसी कारण इन लोगों को रथकार | रोमहर्षणपुत्र, रोमहर्षणि, एवं सौति आदि नामांतर भी नामान्तर भी प्राप्त था। प्राप्त थे (म. आ. १.१-५, सौति देखिये)। . इन तीनो श्रेणियों के सूतवंशीय लोग प्राचीन इतिहास | रोहक--रोधक नामक पिशाचयोनि समूह में रहनेमें दिखाई देते है। उनमें से रोमहर्षण एवं इसका पुत्र | वाला एक पिशाच (रोधक देखिये)। ७७४
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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