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रोमहर्षण
प्राचीन चरित्रकोश
रोमहर्षण
ब्राह्मण, एवं पुराणज्ञ ब्राह्मण ऐसी दो शाखाएँ ब्राह्मणों में पुराणों का कथन किया था, बाकी बचे हुए साडेसात निर्माण हुयीं गयीं।
पुराणों के कथन का कार्य इसके पुत्र उग्रश्रवस् ने पूरी इसके पुत्र का नाम उग्रश्रवस् था, जिसे इसने व्यास | किया। के द्वारा विरचित 'आदि पुराण' की शिक्षा प्रदान की थी | मृत्युतिथि-पान में इसका वध किये जाने की तिथि (व्यास, एवं सौति देखिये)। कई अभ्यासकों के | आषाढ शुक्ल १२ बताई गई है ( पद्म. उ. १९८ )। इस अनुसार, आदि पुराण का केवल आरंभ ही व्यास के दिन के इसी दुःखद स्मृति के कारण, हरएक द्वादशी द्वारा किया गया था, जो ग्रंथ बाद में रोमहर्षण तथा के दिन आज भी पुराणकथन का कार्यक्रम बंद रक्खा इसके शिष्यों के द्वारा पूरा किया गया ।
जाता है। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के समय, यह अपने पुत्र
महाभारत में प्राप्त कालनिर्देश से बलराम भारतीय उग्रश्रवस् के साथ उपस्थित था, एवं इसने उसे पुराणों का
युद्ध के समय तीर्थयात्रा करने निकल पड़ा था, उसी कथन किया था (म. स. ४.१०)।
समय सूत का द्वादशवर्षीय सत्र चल रहा था। इससे प्रतीत उत्तरकालीन पुराण ग्रंथों में इसका एवं इसके पुत्र उग्र- | होता है कि, भारतीय युद्ध, नैमिषारण्य का द्वादशवर्षीय श्रवस् का नामनिर्देश क्रमशः 'महामुनि' एवं 'जगद्गुरु' सत्र, एवं रोमहर्षण का पुराणकथन एक ही वर्ष में संपन्न नाम से प्राप्त है (विष्णु. ३.४.१०; पद्म. उ. २१९.१४- | हुये थे । यह जानकारी विभिन्न पुराणों में प्राप्त उनके २१)।
रचनाकाल से काफी विभिन्न प्रतीत होती है। पुराणों में पुराण-कथन--एक बार नैमिषारण्य में दृषद्वती नदी
प्राप्त जानकारी के अनुसार, प्रमुख पुराणों की रचना के तट पर एक-द्वादशवर्षीय सत्र का आयोजन किया गया।
निम्नलिखित राजाओं के राज्यकाल में हुयीं थी:-१. शौनक आदि ऋषि. इस सत्र के नियंता थे, एवं
वायुपुराण-पूरुराजा असीमकृष्ण; २. ब्रह्मांड पुराणनैमिषारण्य के साठ हज़ार ऋषि इस सत्र में उपस्थित थे।
इक्ष्वाकुवंशीय राजा दिवाकर; ३. मत्स्यपुराण-मगधदेश एवं शौनक आदि ऋषियों ने व्यास के प्रमुख शिष्य
का राजा सेनजित् (व्यास देखिये)। . के नाते रोमहर्षण को इस सत्र के लिए अत्यंत आदर से निमंत्रण दिया, एवं इसका काफ़ी गौरव किया ( वायु.
- ग्रंथ--इसके नाम पर निम्नलिखित ग्रंथ उपलब्ध हैं:. ८.२. ब्रह्मांड १.३३. नारद. १.१)।
1. सूतसंहिता--रोमहर्षण के द्वा! लिखित सूत
संहिता स्कंद पुराण का ही एक भाग मानी जाती हैं। स्कंद इस सत्र में शौनक आदि ऋषियों के द्वारा प्रार्थना
पुराण की कुल छः संहिताओं की रचना की गई थी, किये जाने पर रोमहर्षण ने साठ हज़ार ऋषियों के |
जिनके नाम निम्न थेः-१. सनत्कुमार; २. सूत; ३. शांकरी; उपस्थिति में निम्नलिखित पुराणों का कथन कियाः--१.
४. वैष्णवी; ५. ब्राह्मी; ६. सौरी। इन छः संहिताओं में ब्रह्मपुराण (ब्रह्म. १); २. वायुपुराण (वायु. १. १५).
मिल कर कुल पचास खण्ड थे। ३. ब्रह्मांडपुराण (ब्रह्मांड. १.१.१७); ४. ब्रह्मवैवर्तपुराण (ब्रह्मवे. १.१.३८); ५. गरुडपुराण (गरुड. | इनमें से सूत के द्वारा लिखित ' सूतसंहिता', आनंदा.१.१), ६. नारदपुराण (नारद. १. १-२), ७. | श्रम पूना के द्वारा प्रकाशित हो चुकी है, जो निम्नभागवतपुराण (भा. १.३-११) इत्यादि ।
लिखित खण्डों में विभाजित है:--१. शिवमाहात्म्यखण्ड; मृत्यु--इस प्रकार दस पुराणों का कथन समाप्त कर, | २. ज्ञानयोगखण्ड; ३. मुक्तिखण्ड; ४. यज्ञवैभवखण्ड; यह ग्यारहवें पुराण का कथन कर ही रहा था कि, इतने (अधोभाग एवं उपरिभाग)। में सत्रमंडप में बलराम का आगमन हुआ । उसे आता इस ग्रंथ में शैवसांप्रदायान्तर्गत अद्वैत तत्वज्ञान का हुआ देख कर, सत्र में भाग लेने बाकी सारे ऋषियों ने प्रतिपादन किया गया है। इस ग्रंथ पर माधवाचार्य के उसे उत्थापन दिया। किन्तु व्रतस्थ होने के कारण, यह द्वारा लिखित एक टीका प्राप्त है । सूत के द्वारा लिखित उत्थापन न दे सका। फिर क्रोध में आ कर बलराम ने | 'ब्रह्मगीता' एवं 'सूतगीता' नामक दो ग्रंथ भी सूत इसका वध किया (बलराम देखिये )। इसकी मृत्यु के | संहिता समाविष्ट हैं। पश्चात्, पुराणकथन का इसका कार्य इसके पुत्र उग्रश्रवस् । २. ब्रह्मगीता--उपनिषदों के अर्थ का विवरण करनेवाला ने आगे चलाया। अपने मृत्यु के पूर्व, इसने साढ़ेदस | यह ग्रंथ सतसंहिता के यज्ञवैभवकाण्ड में समाविष्ट है। इस
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