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प्राचीन चरित्रकोश
रुद्र
ब्राह्मण ग्रंथों में--इन ग्रंथों में रुद्र को उषस् का पुत्र श्वेताश्वतर उपनिषद शैवपंथीय नहीं, बल्कि आत्मज्ञान कहा गया है, एवं जन्म के पश्चात् इसे प्रजापति के द्वारा का एवं ईश्वरप्राप्ति का पंथनिरपेक्ष मार्ग बतानेवाला एक आठ विभिन्न नाम प्राप्त होने का निर्देश प्राप्त है (श. सर्वश्रेष्ठ प्राचीन उपनिषद माना जाता है, एवं इसी कारण जा. ६.१.३.७; कौ. वा. ६.१.९)। इनमें से सात नाम शंकराचार्य, रामानुज आदि विभिन्न पंथ के आचार्यों ने यजुर्वेद की नामावलि से मिलते जुलते है, एवं आठवाँ | इसके उद्धरण लिये हैं। नाम 'अशनि' ( उल्कापात ) बताया गया है। किन्तु इन | यह उपनिषद ग्रंथ भक्तिसांप्रदाय एवं रुद्र-शिव ग्रंथों में ये आठ ही नाम एक रुद्र देवता के ही विभिन्न की उपासना का आद्य ग्रंथ माना जाता है, एवं इसका रूप दिये गये हैं। इनमें से, रुद्र, शर्व, उग्र एवं अशनि | काल भगवद्गीता के पूर्वकालीन है, जिसे वासुदेव रुद्र के जगत्संहारक रूप के प्रतीक हैं, एवं भव, पशुपति, | कृष्ण की उपासना का आद्य ग्रंथ माना जाता है । महादेव एवं ईशान आदि बाकी चार नाम इसके शान्त इससे प्रतीत होता है कि, भगवद्गीता तक के काल में एवं जगत्प्रतिपालक रूप के द्योतक हैं । इस तरह ऋग्वेद | भारतवर्ष में रुद्र-शिव ही एकमेव उपास्य देवता थी, काल में पृथ्वी को भयभीत करनेवाले जगत्संहारक- | जिसके स्थान पर भवद्गीता के पश्चात्, रुद्र एवं वासुदेव रुद्रदेवता को, ब्राह्मण ग्रंथों के काल में जगसंहारक एवं कृष्ण इन दोनों देवताओं की उपासना प्रारंभ हुयीं। जगत्प्रतिपालक ऐसे द्विविध रूप प्राप्त हुयें ।
केन उपनिषद में-रुद्र-शिव की पत्नी उमा (हैमवती) ब्राह्मण ग्रंथों में रुद्र के उत्पत्ति की एक कथा भी दी गई |
का सर्वप्रथम निर्देश इस उपनिषद में प्राप्त है, जहाँ है। प्रजापति के द्वारा दुहितृगमन किये जाने पर उसे सजा
उसे स्पष्ट रूप से शिव की पत्नी नही, बल्कि साथी कहा देने के लिए रुद्र की उत्पत्ति हुई । पश्चात् रुद्र ने पशुपति
गया है। इंद्र, वायु, अग्नि आदि वैदिक देवताओं की का रूप धारण कर मृगरूप से भागनेवाले प्रजापति का
शक्ति, जिस समय काफी कम हो चुकी थी एवं रुद्र-शिव वध किया । प्रजापति एवं उसका वध करनेवाला रुद्र
ही एक देवता पृथ्वी पर रहा था, उस समय की एक आज भी आकाश में मृग एवं मृगव्याध नक्षत्र के रूप
कथा इस उपनिषद में दी गयी है:-एक बार में दिखाई देते हैं (ऐ. ब्रा. ३.३३; श. ब्रा. १.७.४.१- |
देवों के सारे शत्रु को ब्रह्मन् ने पराजित किया, किन्तु ब्रह्म. १०२)।
इस विजयप्राप्ति का सारा श्रेय इंद्र, अग्नि आदि देवता . उपनिषदों में--रुद्र-शिव से संबंधित सर्वाधिक महत्त्व
लेने लगे। उस समय रुद्र-शिव देवों के पास आया। . पूर्ण उपनिषद 'श्वेताश्वतर उपनिषद' है, जिसमें रुद्र-शिव
देवों का गर्वपरिहार करने के लिए इसने अग्नि, वायु एवं को सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ देवता कहा गया है।
इंद्र के सम्मुख एक घाँस का तिनका रखा, एवं उन्हें क्रमशः .'अनादि अनंत परमेश्वर का स्वरूप क्या है, एवं आत्म- | उसे जलाने, भगाने एवं उठाने के लिए कहा। इस कार्य ज्ञान से उसकी प्राप्ति कैसे हो सकती है, इसकी चर्चा अन्य | में तीनों वैदिक देव असफल होने के पश्चात्, हैमवती उमा उपनिषदों के भाँति इस उपनिषद में भी की गयी है। किन्तु ने ब्रह्मस्वरूप रुद्र-शिव का माहात्म्य उन्हें समझाया। यहाँ प्रथम ही जगत्संचालक ब्रह्मन् का स्थान जीवित व्यक्ति
___ 'शिव अथर्वशिरस् उपनिषद' में भी रुद्र की महत्ता का का रंग एवं रूप धारण करनेवाले रुद्र-शिव के द्वारा लिया गया है। इस उपनिषद में रुद्र, शिव, ईशान एवं महेश्वर | १
वर्णन प्राप्त है। किन्तु वहाँ रुद्र-शिव के संबंधी तात्त्विक
जानकारी कम है, एवं शिवोपासना के संबंधी जानकारी को सृष्टि का अधिष्ठात्री देवता (देव) कहा गया है, एवं इसकी उपासना से एवं ज्ञान से ब्रह्मज्ञान प्राप्त होता हैं,
अधिक है, जिस कारण यह उपनिषद् काफ़ी उरत्तकालीन ऐसा कहा गया है । इस उपनिषद के अनुसार, सृष्टि का
प्रतीत होता है। नियामक एवं संहारक देवता केवल रुद्र ही है (श्वे. उ. गृह्मसूत्रों में--इन ग्रंथों में गायों का रोग टालने के ३.२), जो गूढ, सर्वव्यापी एवं सर्वशासक है (श्वे. | लिए शूलगव नामक यज्ञ की जानकारी दी गयी है, जहाँ उ.५.३), एवं केवल उसीके ज्ञान से ही मोक्षप्राप्ति हो | बैल के 'वपा' की आहुति रुद्र के निम्नलिखित बारह सकती है (श्वे. उ. ४.१६ )। इस ग्रंथ में विश्वमाया का नामों का उच्चारण के साथ करने को कहा गया है:नाम प्रकृति दिया गया है, एवं उस माया का शास्ता रुद्र | रुद्र; शर्व; उग्र; भव; पशुपति; महादेव, ईशान; हर; बताया गया है (श्वे. उ. ४.१०)।
| मृड; शिव; भीम एवं शंकर । इनमें से पहले तीन ७५७