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प्राचीन चरित्रकोश
रुद्र
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जगत्संहारक रुद्र के दूसरे चार नाम प्रतिपालक रुद्र के, एवं अंतिम पाँच नाम नये प्रतीत होते हैं।
पारस्करगृह्य एवं हिरण्यकेशी गृह्यसूत्रों में शूलगव यज्ञ की प्रक्रिया दी गयी है। किन्तु वहाँ रुद्र के बदले इंद्राणी, रुद्राणी, शर्वाणी, भवानी आदि रुद्रपनियों के लिए आहुति देने को कहा है, एवं भवस्य देवस्य पन् स्वाहा' इस तरह के मंत्र भी दिये गये हैं (पा. ८ हि. २.२.८ ) ।
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गृ.
३.
इन्हीं ग्रंथों में पर्वत, नदी, जंगल, स्मशान आदि से प्रवास करते समय, रुद्र की उपासना किस तरह करनी चाहिये, इसका भी दिग्दर्शन किया गया है (पा. १५, हि. रा. ५.१६ ) ।
महाभारत में - इस ग्रंथ में रुद्र का निर्देश शिव एवं महादेव नाम से किया गया है । वहाँ इसकी पत्नी के नाम उमा, पार्वती, दुर्गा, काली, कराखी आदि बताये गये हैं, एवं इसके पार्षदों को 'शिवगण' कहा गया है ।
झुंजवत् पर्वत पर तपस्या करनेवाले शिव को योगी अवस्था कैसी प्राप्त हुई इसकी कथा महाभारत में प्राप्त है। सृष्टि के प्रारंभ के काल में, ब्रह्मा की आज्ञा से शिव प्रज़ा उत्पत्ति का कार्य करता था। आगे चल कर, ब्रह्मा के द्वारा इस कार्य समाप्त करने की आज्ञा प्राप्त होने पर, शिव पानी में जाकर छिप गया । पश्चात् ब्रह्मा ने दूसरे एक प्रजापति का निर्माण किया, जो सृष्टि उत्पत्ति का कार्य आगे चलाता रहा । कालोपरान्त शिव पानी से बाहर आया, एवं अपने अनुपस्थिति में भी प्रश्थ उत्पत्ति का कार्य अच्छी तरह से चल रहा है, यह देख कर इसने अपना लिंग काट दिया, एवं यह स्वयं मुजवत् पर्वत पर तपस्या करने के लिये चला गया ।
इसी प्रकार की कथा वायुपुराण में भी प्राप्त है । ब्रह्मन् के द्वारा नील लोहित ( महादेव ) को प्रजा उत्पत्ति की आशा दिये जाने पर, उसने मन ही मन अपनी पत्नी सती का स्मरण किया एवं हजारो विरूप एवं भयानक प्राणियों ( रुद्रसृष्टि) का निर्माण किया, जो रंगरूप में इसी के ही समान में इस कारण ब्रह्मा ने इसे इस कार्य से रोक दिया। तदोपरान्त यह प्रमा उत्पत्ति का कार्य समाप्त कर पाशुपत योग का आचरण करता हुआ मुंज पर्वत पर रहने लगा ( वायु. १०; विष्णु. १.७-८; २.९७९) ।
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रुद्र
उपासक - गण - महाभारत में निम्मलिखित लोगों के दारा शिव की उपासना करने का निर्देश प्राप्त है :१. अर्जुन, जिसने पाशुपतास्त्र की प्राप्ति के लिए शिव की दोचार उपासना की थी ( म. भी ३८-४० द्रो. ८०८१ ) २. अश्वत्थामन, जिसके शरीर में प्रविष्ट हो कर शिव ने पाण्डयों के रात्रिसंहार में मदद की थी (म. सौ. ७) जांबवती ३० श्रीकृष्ण जिसने अपनी पानी जवती को तेजस्वी पुत्र प्राप्त होने के लिए तपस्या की थी, एवं जिसे शिव एवं उमा ने कुल चौबीस वर प्रदान किये थे ( म. अनु. १४ ); ४. उपमन्यु, जिसने कड़ी तपस्या कर शिव से इच्छित वर प्राप्त किये थे; ५. शाकल्य, जिसने शिवप्रसाद से ऋग्वेद संहिता एवं पपाठ की रचना में हिस्सा लिया था (म. अनु. १४) ।
इनके अतिरिक्त, शिव के उपासकों में अनेकानेक ऋषि, राजा, दैत्य, अप्सरा, राजकन्या, सर्प आदि शामिलं थे, जिनकी नामावलि निम्नप्रकार है:- १. ऋषिदुर्वासस्, परशुराम, मंकणक २. राजा - राम दाशरथि, श्वेतकि; जयद्रथ, द्रुपद, मणिपुर नरेश प्रभंजन, २. दैन्य- अंधक, अंधकपुत्र आडि, जालंधर, त्रिपुर
बाण, भस्मासुर, रावण, रक्तबीज, वृक, हिरण्याक्ष ४. अप्सरा - तिलोत्तमा; ५. राजकन्या - अंबा, गांधारी; ६. सर्प-मणि ।
इनमें से देय एवं असुरों के द्वारा शिव की उदारता एवं भोलापन का अनेकवार गैर फायदा लिया गया, जो त्रिपुर, भस्मासुर, रक्तबीज, रावण आदि के चरित्र से विदित है।
अष्ट-द-पुराणों में अष्टरूटों की नामावलि दी गयी है, जो शतपथ ब्राह्मण की नामावलि से मिलती जुलती है । इन ग्रंथों के अनुसार, ब्रह्मा से जन्म प्राप्त होने पर यह रोदन करते हुए इधर उधर भटकने लगा । पश्चात् इसके द्वारा प्रार्थना किये जाने पर, ब्रह्मा ने इसे आठ विभिन्न नाम, पत्नियों एवं निवासस्थान आदि प्रदान किये।
प्रमुख पुराणों में से, विष्णु, मार्कंडेय, वायु एवं खंद में अष्टमूर्ति महादेव की नामावलि प्राप्त है (विष्णु. १.
८ मार्क ४९ पद्म. स. २ बायु २७ कंद ७०१. ८७ ) । इन पुराणों में प्राप्त रुद्र की पत्नियों, संतान, निवासस्थान आदि की तालिका निम्नप्रकार है: