________________
प्राचीन चरित्रकोश
४), एवं इसके पास हज़ारों औषधियाँ है (ऋ. ७.४६. जमातियों का राजा अथवा प्रमुख होने का निर्देश
सर्वप्रथम यजुर्वेद संहिता में ही प्राप्त होता है। यह दानवों की भाँति केवल करकर्मा ही नही, बल्कि इस तरह जंगलों का देवता माना गया रुद्र, जंगलों में प्रसन्न होने पर मानवजाति का कल्याण करनेवाला, एवं रहनेवाले लोगों का भी देव बन गया, जो संभवतः वैदिक पशुओं का रक्षण करनेवाला होता है। इसी कारण, | रुद्र देवता का एवं अनार्य लोगों के रुद्रसदृश देवता के ऋग्वेद में इसे शिव (ऋ. १०.९२.९), एवं पशुप (ऋ | सम्मीलन की ओर संकेत करता है। १.११४.९)। कहा गया है।
अथर्ववेद में इस वेद में रुद्र के कुल सात नाम प्राप्त तैत्तिरीय संहिता में--यजुर्वेद के शतरुद्रीय नामक
है, किन्तु उन्हें एक नहीं, बल्कि सात स्वतंत्र देवता गना अध्याय में रुद्र का स्वभावचित्रण अधिक स्पष्ट रूप से |
| गया है। जिस तरह सूर्य के सवितृ, सूर्य, मित्र, पूषन् प्राप्त है (तै. सं. ४.५.१; वा. सं. १६)। वहाँ इसका
आदि नामान्तर प्राप्त है, उसी प्रकार अथर्ववेद में प्राप्त 'रुद्र स्वरूप' (रुद्रतनुः), एवं 'शिव स्वरूप' (शिवतनुः)
रुद्रसदृश देवता, एक ही रुद्र के विविध रुप प्रतीत होते का विभेद स्पष्ट रूप से बताते हुए कहा गया है :
है, जिनके नाम निम्न प्रकार है:--
१. ईशान,--जो समस्त मध्यमलोक का सर्वश्रेष्ठ या ते रुद्र शिवा तनू शिवा विश्वस्य भेषजी ।
अधिपति है। शिवा रुद्रस्य भेषजी तया नो मृड जीवसे ॥
२. भव,-जो मध्यमलोक के पूर्व विभाग का राजा, (तै. सं. रुद्राध्याय २)।
व्रात्य लोगों का संरक्षक एवं उत्तम धनुर्धर है । यह एवं (रुद्र के घोरा एवं शिव नामक दो रूप हैं, जिनमें से | शर्व पृथ्वी के दृष्ट लोगों पर विद्युत्पी बाण छोड़ते । पहला रूप दुःख निवृत्ति एवं मृत्युपरिहार करनेवाला, | हैं | इसे सहस्र नेत्र हैं, जिनकी सहायता से यह पृथ्वी . एवं धन, पुत्र, स्वगे आदि प्रदान करनेवाला है; एवं दूसरा | की हरेक वस्तु देख सकता है (अ. वे. ११.२.२५)। रूप आत्मज्ञान एवं मोक्ष प्रदान करनेवाला है)। यह आकाश, पृथ्वी एवं अंतरिक्ष का स्वामी है (अ.वे. यजुर्वेद संहिता में मेघ से समीकृत कर के रुद्र का
११.२.२७) । भव, शर्व एवं रुद्र के बाण कल्याणप्रद वर्णन किया गया है। इसे गिरीश एवं गिरित्र ( पर्वतों में | (सदाशिव) होने के लिए, इनकी प्रार्थना की गयी है : रहनेवाला ) कहा गया है, एवं इसे जंगलों का, एवं वहाँ |
(अ. वे. ११.६.९)। रहनेवाले पशुओं, चोर, डाकू एवं अन्त्यजों का अभि
____३. शर्व,-जो उत्तम धनुर्धर एवं मध्यमलोक के
| दक्षिण विभाग का अधिपति है । इसे एवं भव को 'भूतपति' नियन्ता कहा गया है । यजुर्वेद में अग्नि को रुद्र कहा गया | है, एवं उसे मखन्न विशेषण भी प्रयुक्त किया गया है (ते.
एवं 'पशुपति' कहा गया है (अ. वे. ११.२.१)। सं. ३.२.४; ते. ब्रा. ३.२.८.३)। रुद्र के द्वारा दक्षयज्ञ
४. पशुपति,-जो मध्यमलोक के पश्चिम विभाग का के विध्वंस की जो कथा पुराणों में प्राप्त है, उसीका संकेत
अधिपति है । इसे अश्व, मनुष्य, बकरी, मेंढक एवं गायों यहाँ किया होगा।
का स्वामी कहा गया है (अ. वे. ११.२.९)।
५. उग्र,-यह एक अत्यंत भयंकर देवता है, जो यजुर्वेद में इसे कपर्दिन (जटा धारण करनेवाला), शर्व मध्यमलोक के उत्तर विभाग का अधिपति कहा गया (धनुषबाण धारण करनेवाला), भव (चर एवं अचर है। यह आकाश, पृथ्वी एवं अंतरिक्ष के सारे जीवित सृष्टि को व्यापनेवाला), शंभु (सृष्टिकल्याण करनेवाला), | लोगों का स्वामी है (अ. वे. ११.२.१०)। शिव (पवित्र), एवं कृत्तिवसनः (पशुचर्म धारण करने- | ६. रुद्र.--जो कनिष्ठ लोक का स्वामी है; एवं रोगवाला) कहा गया है (वा. सं. ३.६१, १६.५१)। व्याधि, विषप्रयोग एवं आग फैलाने की अप्रतिहत - इसके द्वारा असुरों के तीन नगरों के विनाश का शक्ति इसमें है। अग्नि, जल, एवं वनस्पतियों में इसका, निर्देश भी प्राप्त है (तै. सं. ६.४.३)।
वास है, एवं पृथ्वी के साथ चंद्र एवं ग्रहमंडल का यजुर्वेद में रुद्र-गणों का निर्देश प्राप्त है, एवं इस गण | नियमन भी यह करता है (अ. वे. १३.४.२८)। इसी के लोग जंगल में रहनेवाले निषाद आदि वन्य जमातियों कारण, इसे 'ईशान' (राजा) कहा गया है। के 'गणपति' होने का निर्देश भी प्राप्त है। रुद्र वन्य ७. महादेव,--जो उच्चलोक का अधिपति है ।
७५६