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राधा.
प्राचीन चरित्रकोश
राम
कृष्ण के बराबर ही श्रेष्ठ माना गया है, एवं इन दोनो की (पुंडलीकपुर) में आया, तथा श्रीविठ्ठल नाम से प्रसिद्ध उपासना करने से भक्त को भी गोलोक की प्राप्ति होती हुआ। है, ऐसा कहा गया है । इस ग्रंथ का रचना काल ई. स. २. (सो. अनु.) अधिरथ सूत की पत्नी, जिले राधिका ४ थी शताब्दी माना गया है।
नामांतर भी प्राप्त था। कुन्ती के द्वारा नदी में छोड़ा गया (B) निंबार्क सांप्रदाय—राधाकृष्ण संप्रदाय का |
कर्ण इसे मिला था। इसने उसका नाम वसुषेण रखा अन्य एक उपासक निंबार्क माना जाता है, जो ई. स.
| था । कर्ण को मिलने के बाद इसे अन्य औरस पुत्र भी ११ वी शताब्दी में उत्पन्न हुआ था। निंबार्क स्वयं रामानुज
| हुए थे (म. आ. १०४.१४-१५, व. २९३.१२)। । संप्रदाय का था। किंतु जहाँ रामानुज नारायण, एवं उसकी
राधिक-(सो. कुरु.) एक कुरुवंशीय राजा, जो पत्नी लक्ष्मी (भू अथवा लीला) की उपासना पर जोर देते
भागवत के अनुसार जयसेन राजा का पुत्र था। विष्णु, है, यहाँ निंबार्क गोपालकृष्ण एवं राधा के उपासना को
वायु एवं मत्स्य में इसे क्रमशः 'आराविन्', 'आराधि' प्राधान्य देते हैं। निंबार्क का यह तत्त्वज्ञान 'सनक
एवं 'रुचिर' कहा गया है। सांप्रदाय' नाम से सुविख्यात है। निंबार्क स्वयं दक्षिण देश में
राधेय-सांख्यायन आरण्यक में निर्दिष्ट एक आचार्य रहनेवाला तैलंगी ब्राह्मण था, फिर भी वह स्वयं उत्तर भारत
| (सां. आ. ७.६)। राधा का वंशज होने से इसे यह नाम में मथुरा एवं वृन्दावन के पास रहता था। इस कारण
प्राप्त हुआ होगा। इसके सांप्रदाय के बहुत सारे लोग उत्तर प्रदेश एवं बंगला
२. अंगराज कर्ण का मातृक नाम । अधिरथ सूत की. में दिखाई देते हैं। ये लोग अपने भालप्रदेश पर
पत्नी राधा ने कर्ण को पाल-पोस कर बड़ा किया था, जिस गोपीचंदन का टीका लगाते हैं एवं तुलसीमाला पहनते हैं।
कारण, उसे यह मातृक नाम प्राप्त हुआ था (कर्ण १.
देखिये)। (२) वल्लभ सांप्रदाय--राधाकृष्ण सांप्रदाय का अन्य
३. अधिरथ सूत एवं राधा के चार पुत्रों का सामुहिक एक महान् प्रचारक 'वल्लभ' माना जाता है, जो १५ वीं शताब्दी में उत्पन्न हुआ था। गोकुल में नानाविध बाल
नाम । भारतीय युद्ध में ये चार ही पुत्र कौरवों के पक्ष में लीला करनेवाला गोपालकृष्ण एवं उसकी प्रियसखी राधा
शामिल थे, जिनमें से एक अभिमन्यु के द्वारा, एवं अकी
तीन अर्जुन के द्वारा मारे गये (म.द्रो. ३१.७)। . 'वल्लभ संप्रदाय' के अधिष्ठात्री देवता हैं। इस संप्रदाय के अनुसार, गोलोक, जहाँ कृष्ण एवं राधा निवास करते
राम-ऋग्वेद में निर्दिष्ट एक राजा, जहाँ दुःशीम हैं, वह श्रीविष्णु के वैकुंठ से भी श्रेष्ठ है, एवं उस लोक में
पृथवान् एवं वेन नामक राजाओं के साथ इसके दानशूरता
की प्रशंसा की गयी है (ऋ. १०.९३.१४ ) । लुडविग के प्रवेश प्राप्त करना यहीं प्रत्येक साधक का अंतीम ध्येय है।
अनुसार, इसका पैतृक नाम 'मायव' था (लुडविग, (३) सखीभाव सांप्रदाय-राधाकृष्ण की उपासना
ऋग्वेद का अनुवाद. ३.१६६)। का और एक आविष्कार 'सखीभाव' संप्रदाय है, जहाँ
२. (सो. पुरूरवस् .) एक राजा, जो वायु के अनुसार साधक स्वयं स्त्रीवेष धारण कर राधा-कृष्ण की उपासना
सेनजित् राजा का पुत्र था । अन्य पुराणों में इसका निर्देश करते हैं। राधा के समान स्त्रीवेष धारण करने से श्रीकृष्ण अप्राप्य है। का साहचर्य अधिक सुलभता से प्राप्त हो सकता है, ऐसी ३. सावर्णि मन्वन्तर का एक ऋषि । इन लोगों की धारणा है। उन्हें राधाकृष्ण की उपासना का ४. श्रीकृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता बलराम का नामान्तर । एक काफी विकृत रूप माना जा सकता है (भांडारकर,
५. परशुराम जामदग्न्य का नामान्तर वैष्णविजम् , पृ. ९३, ११७,१२३, १२६ ।
राम औपतास्वनि--एक यज्ञवेत्ता आचार्य, जो (४) श्री विठ्ठल-उपासना-महाराष्ट्र में कृष्ण-उपासना | उपतस्विन् का पुत्र एवं याज्ञवल्क्य का समकालीन था। का आद्य प्रवर्तक पुंडलीक माना जाता है, जिसकी परंपरा 'अंसुग्रह' नामक यज्ञ के संबंधी इसके मतों का निर्देश आगे चल कर नामदेव एवं तुकाराम आदि संतों ने चलायी। | शतपथ ब्राह्मण में प्राप्त है (श. ब्रा. ४. ६. १. ७)। किन्तु महाराष्ट्र में प्राप्त श्रीविठ्ठल की उपासना में राधा राम कातुजातेय वैयाघ्रपद्य -एक आचार्य, जो शंग का स्थान श्रीकृष्ण की पत्नी रुक्मिणी के द्वारा लिया गया शात्यायनि आत्रेय नामक आचार्य का शिष्य, एवं प्रतीत होता है। रुक्मिणी के कारण श्रीकृष्ण पंढरपुर शंख बाभ्रव्य नामक आचार्य का गुरु था (जै. उ. ब्रा. ३.
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