________________
प्राचीन चरित्रकोश
हरिवंश, वायु एवं भागवत में प्राप्त है, जिनका रचना- मानवयोनि में जन्म प्राप्त होगा, जिस समय तुम्हे कृष्ण बाल ई. स. तीसरी शताब्दी माना जाता है। से काफी विरह सहना पड़ेगा (नारः २.८१ ब्रह्मवै. २.४९ ) ।
,
राधा
सृष्टिउपकारक पाँच विष्णुशक्तियों में से राधा एक मानी गयी है (दे. भा. ९.९९ नारव २.८१ ) | यह संपत्ति का अधिष्ठात्री है, तथा इसे कान्ता, अतिदान्ता, शास्ता, सुशील, सर्वमंगला, आदि नाम प्राप्त है।
लक्ष्मी के दो रूप माने गये हैं-- एक राधा एवं दूसरा 'लक्ष्मी । इसी प्रकार कृष्ण के भी द्विभुज एवं चतुर्भुज ऐसे दो रूप माने गये है। इनमें से द्विभुज कृष्ण गोलोक में निवास करता है, जहाँ राधा उसकी पत्नी है । चतर्भुज कृष्ण वैकुंठ में निवास करता है, एवं यहाँ उसकी पत्नी लक्ष्मी है (ब्रा २.४९.५६-५७९ दे. भा. ९.१; आदि. ११ ) | यह गो लोक में नही, बल्कि वैकुंठ में ही रह कर श्रीकृष्ण की सेवा करती है, ऐसा निर्देश भी कई पुराणों में प्राप्त है (दे. भा. (१९१८) ।
जन्म- यह गोकुल में वे नृपभानु नामक गोप को कलावती से उत्पन्न नापी हुई थी (ब्रह्म २.४९. ३९-४९१ र २,८१.) । पद्म में इसे नृपभानु राजा की कन्या कहा गया है । यह राजा यज्ञ के लिए पृथ्वी साफ़ कर रहा था, उस समय, उसे भूमिकन्या के रूप में थाम हुई पश्चात् उसने इसे अपनी कन्या मान कर इसका भरणपोषण किया (पद्म ७) कृष्ण के वामांग से यह उत्पन्न हुई ऐसी कथा भी कई पुराणों में प्राप्त है (ब्रह्मपै. २.१२.१६ ) ।
राधा
नारद के अनुसार, एक बार श्रीविष्णु विरजा नामक गोपी को अपने साथ रासमंडल में ले गये। यह सुनते ही राधा बुद्ध दुबी एवं विष्णु के पास गयी। किन्तु वहाँ पहुँचने के पहले ही ये दोनों तुम हो गये। बाद में इसने विश्वा को पुनः एक बार कृष्ण एवं सुदामा के साथ बैठते हुए देखा । इस कारण इसने श्री विष्णु की काफ़ी निंदा की। जब सुदामा ने इसे खूब डाँटा एवं इसे शाप दिया, 'तुम्हे
पश्चात् इसने भी सुदामा को शाप दिया, 'तुमने मुझे बूरा भला कहा है, अतः तुम्हे दानव - योनि में जन्म प्राप्त होगा (वे. मा. ९.१९) । राधा के इस शाप के कारण, सुदामा शंखचूड नामक असुर बन गया (ब्रह्मवै. २.४९. ३४ ) ! पश्चात् कृष्ण ने सुदामा को उःशाप दिया, 'गोलोक का आधा क्षण अर्थात् एक मन्वन्तर तक ही तुम असुर रहोगे । पश्चात् तुम्हे मुक्ति प्राप्त होगी ' । नारद में सुदामा की असुर अवस्था की काम सौ साल दी गयी है ( नारद. २. ८१ ) ।
कृष्ण से विवाह मानव योनि में जन्म लेने के पश्चात् राधा का कृष्ण से विवाह, वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन रोहिणी नक्षत्र पर हुआ था ( आदि. ११) | किन्तु अन्य पुराणों में गोकुलनिवासी राधा को कृष्ण की सखी अताया गया है, एवं इसके पति का नाम 'रापाण दिया गया है (ब्रह्म. २.४९.२७ ) ।
ब्रह्मवैवर्त के माप्य शाखा में राधा का आख्यान प्राप्त है, जहाँ राधा एवं कृष्ण को एक दूसरे का उपासक कहा गया है ( ब्रह्मवै. २. ४८.१२-१३ ) | राधा एवं कृष्ण के उपासक 'राधाकृष्ण' नाम का जाप कर के इनकी उपासना करते हैं।' राधाकृष्ण के स्थान पर कृष्णराधा इस क्रम से नामोच्चारण करने पर नरक की प्राप्ती होती है, ऐसी भक्तों की धारणा है ( ब्रह्मवै. २.४९-५९ ) ।
2
6
|
पृथ्वी पर अवतार - राधा का अवतार पृथ्वी पर किस कारण से हुआ, यह बतानेवाली अनेक कथाएँ पुराणों में प्राप्त है, जो काफी कल्पनारम्य प्रतीत होती है। कृ कतार लेते समय विष्णु ने अपने परिवार के समय देवताओं को पृथ्वी पर अवतार लेने के लिए आज्ञा दी । इस आशा के अनुसार, विष्णु की प्रियसखी राधा ने पृथ्वी पर जाना सीकार किया एवं भद्रपद शुक्ल अगी के दिन, ज्येष्ठा नक्षत्र के चतुर्थ चरण में प्रातःकाल के समय जन्म लिया (आदि. ११ ) ।
राधा के नामस्मरण का माहात्म्य बतानेवाल एक मंत्र का पाठ राधाकृष्ण के उपासक प्रतिदिन करते है, जो निम्नप्रकार है :--
शब्दोच्चारणाद्भक्तो राति मुक्ति सुदुर्लभाम् । यादोच्चारणाद दुर्गे धावत्येव हरेः परम् ॥ रा इत्यादावचनो धा च निर्वाणवाचकः । ततोऽवाप्नोति मुक्तिं च येन राधा प्रकीर्तिता ॥ ( ब्रह्मवै. २.४८. ४०; ४२ )
6
का
राधा की उपासना--राधा एवं कृष्ण की उपासना प्राचीनतम ग्रंथ 'ज्ञानामृतसार' है, जो 'नारद पंचरात्र नामक संहिता में समाविष्ट है। इस ग्रंथ के अनुसार, कृष्ण गोलोक नामक दिव्य येक में निवास करते हैं, जहाँ राधा भी उनकी प्रियतम सखी बन कर रहती है ( ज्ञानामृत. २.३.२४ ) । इस ग्रंथ में राधा को
|
७२३