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राज्यवर्धन
प्राचीन चरित्रकोश
राधा
राज्यवर्धन--(सू. दिष्ट.) वैशाली देश का एक राजा, ऋग्वेद में इसे उषस् की छोटी बहन कहा गया है जो दम राजा का पुत्र था। दक्षिणनरेश विदूरथ राजा की | (ऋ. १.१२४ ) एवं उपस् के साथ इसका अनेक बार कन्या इसकी पत्नी थी।
एक युगल रूप मे निर्देश किया गया है ('उषासानक्ता' यह बड़ा तपस्वी एवं त्रिकालदर्शी राजा था । अपनी | अथवा 'नक्तोषासा')। मृत्यु निकट आयी है यह बात ज्ञात होने पर, यह वार्ता अपनी बहन उषस् की भाँति इसे भी आकाश की इसने अपनी प्रजा को सुनायी, एवं तपस्या के लिए यह वन पुत्री कहा गया है। ऋग्वेद में रात्रि का एक सूक्त प्राप्त चला गया।
है, जहाँ तारों से प्रकाशमान रात्रि का बड़ा ही काव्यमय पश्चात् इसकी प्रजा एवं अमात्यों ने सूर्य की आराधना
| वर्णन प्राप्त है (ऋ. १०.१२७)। यह अपने तारकामय की, एवं उससे वर प्राप्त किया, 'तुम्हारा राज्यवर्धन राजा
नेत्रों से प्रकाशित होती है, एवं अपने प्रकाश के द्वारा दस हजार वर्षों तक रोगरहित, जितशत्रु, धनधान्यसंपन्न
अंधकार को भगाती है । इसके आने पर, अपने घोंसलों में एवं स्थिरयौवन अवस्था में जीवित रहेगा।
लौट आनेवाले पक्षियों की माँति, मनुष्य अपने अपने घर तदोपरान्त इसकी प्रजा ने वन में जा कर इसे सूर्य के
लौट आते हैं । चोरों को एवं भेड़ियों को दूर रखने के द्वारा प्राप्त वर की सुवार्ता कह सुनाई । किन्तु यह वार्ता
लिए, तथा पथिकों को सुरक्षित स्थान पर पहुँचाने के
लिये इसकी प्रार्थना की गयी है। सुन कर इसे सुख के बदले दुख ही अधिक हुआ। यह कहने लगा, 'इतने वर्षों तक जीवित रहने पर, मुझे पुत्र-पौत्रादि
यह अपने मूर्तिमान् स्वरूप धारण कर स्कंद के अभिषेक तथा प्रजा की मृत्यु देखनी पड़ेगी, एवं मेरा सारा जीवित
समारोह में उपस्थित हुई थी (म. श. ४४.१३)। दुःखमय हो जाएगा। इस दुःख से छुटकारा पाने के लिये
| शची ने अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए इसकी इसने स्वयं अपनी प्रजा पौत्र एवं भृत्य आदि के लिए भी
आराधना की थी (म. उ. १३.२१-२३)। दस हजार वर्षों की आयु का वरदान प्राप्त किया (मार्क.
रात्रि भारद्वाजी-एक वैदिक सूक्तद्रष्ट्री (ऋ. १०. १०६-१०७)।
१२७)। . राज्याधिदेव--विदूरथवंशीय राजाधिदेव राजा का
राथीतर-सत्यवचस् नामक आचार्य का पैतृक नाम
(तै. उ. १.९.१)। रथीतर का वंशज होने से उसे यह नामान्तर।
पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा। इसके धर्मविषयक अनेक राड--एक आचार्य, जो वायु एवं ब्रह्मांड के अनुसार
| मतों का निर्देश बौधायन श्रौतसूत्र में प्राप्त है (बौ. श्री. न्यास की सामशिष्य परंपरा में से कृति नामक ऋषि का
७.४)। शिष्य था। .
राथीतरीपुत्र-एक आचार्य, जो भालुकिपुत्र नामक राडवीय--एक आचार्य, जो ब्रह्मांड के अनुसार
| आचार्य का शिष्य था (बृ. उ.६.५.१ काण्व.)। अन्यत्र व्यास की सामशिष्यपरंपरा में से हिरण्यनाभ नामक
इसे क्रौंचिकीपुत्र नामक आचार्य का शिष्य कहा गया है आचार्य का शिष्य था।
(बृ. उ. ६.४.३२ माध्यं.)। इसके शिष्य का नाम राणायनि--एक आचार्य, जो व्यास की सामशिष्य- | शांडिलीपुत्र था। रथीतर के किसी स्त्री वंशज का पुत्र परंपरा में से लोकाक्षि नामक आचार्य का शिष्य था । इसी होने से, इसे 'राथीतरीपुत्र' नाम प्राप्त हुआ था। से ही आगे चल कर सामवेदीय ब्राह्मणों की 'राणाय
राधगौतम-वंश ब्राह्मण में निर्दिष्ट एक आचार्यद्वय नीय' शाखा का निर्माण हुआ। सामवेदी लोगों के ब्रह्मा
। (वं. बा. २)। ये गातुःनामक आचार्य के पुत्र, एवं गौतम यज्ञांगतर्पण में इसका निर्देश प्राप्त है (जै. गु. १.१४; |
नामक आचार्य के शिष्य थे। गोभिल एवं द्राह्यायण देखिये)।
राधा-कृष्ण की सुविख्यात प्राणसखी एवं उपासिका, राणायनीपुत्र--एक आचार्य (ला. श्री. ६.९.१६)। जिसका निर्देश गोपालकृष्ण की बाललिलाओं में पुनः पुनः
रातहव्य आत्रेय-एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (इ. ५. प्राप्त है। गोकुल में रहनेवाले एवं राधा के साथ नानाविध ६५-६६)।
क्रीडा करनेवाले 'गोपालकृष्ण' का निर्देश पतंजलि के रात्रि--रात्रि की एक अधिष्ठात्री देवी, जिसका | व्याकरण महाभाष्य, महाभारत एवं नारायणीय आदि निर्देश ऋग्वेद में 'नक्ता' नाम से किया गया है। ग्रंथों में अप्राप्य है। इसके नाम का सर्वप्रथम निर्देश
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